भारतीय निर्यात पर अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव
अमेरिका द्वारा नए टैरिफ लागू करने के साथ, भारतीय निर्यातकों को उनके द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं की श्रेणी के आधार पर अलग-अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। टैरिफ के प्रभाव को तीन अलग-अलग श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
1. छूट प्राप्त निर्यात वस्तुएँ
- इसमें फार्मास्यूटिकल्स, स्मार्टफोन और परिष्कृत पेट्रोलियम शामिल हैं।
- अमेरिका की घरेलू जरूरतों, जैसे कि सस्ती जेनेरिक दवाओं और आईफोन की कम कीमतें बनाए रखने के लिए एप्पल की वैश्विक विनिर्माण रणनीति के कारण 50% आयात शुल्क से छूट दी गई है।
- इस श्रेणी में टैरिफ कार्रवाई के लिए भारत को अलग से चिन्हित किए जाने की संभावना कम है।
2. अमेरिका के एकमात्र बाज़ार वाली वस्तुएँ
- इसमें सोलर मॉड्यूल, लिनन और झींगा शामिल हैं।
- इन निर्यातकों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि अमेरिका इनका प्राथमिक खरीदार है। इससे वैकल्पिक बाजार ढूंढना कठिन हो रहा है।
3. विविध निर्यात वस्तुएँ
- इसमें वे वस्तुएं शामिल हैं, जहां अमेरिका कई गंतव्यों में से एक है।
- ये निर्यातक वैकल्पिक बाजार अधिक आसानी से पा सकते हैं, जिसके लिए उन्हें कम सहायता की आवश्यकता होगी, लेकिन फिर भी उन्हें नीतिगत समर्थन की आवश्यकता होगी।
नीतिगत निहितार्थ और रणनीतिक अवसर
- नीतिगत समर्थन को सीमित बाजार विकल्पों वाले निर्यातकों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हुए तैयार किया जाना चाहिए।
- व्यापार साझेदारों में विविधता लाकर तथा लचीलापन बढ़ाकर निर्यात संकेन्द्रण को कम करने का अवसर।
- यद्यपि अमेरिका एक महत्वपूर्ण बाजार है, तथापि संयुक्त अरब अमीरात और नीदरलैंड जैसे अन्य प्रमुख गंतव्य क्षेत्रीय प्रवेश बिंदु के रूप में कार्य करते हैं।
- अमेरिकी टैरिफ के जवाब में कमजोर रुपया, भारतीय वस्तुओं को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाकर कुछ राहत प्रदान कर सकता है।
निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि सोच-समझकर नीति निर्माण के साथ, भारत अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम कर सकता है, व्यापक छूट का लाभ उठा सकता है तथा अपने निर्यात बाजारों का रणनीतिक विविधीकरण कर सकता है।