भारत का समुद्री क्षेत्रक (MARITIME SECTOR OF INDIA) | Current Affairs | Vision IAS
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भारत का समुद्री क्षेत्रक (MARITIME SECTOR OF INDIA)

23 Dec 2025
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों? 

प्रधानमंत्री ने 'इंडिया मैरीटाइम वीक 2025' के दौरान समुद्री क्षेत्रक में संवृद्धि और संधारणीयता को बढ़ावा देने के लिए ऐतिहासिक समुद्री पहलों का अनावरण किया।

इंडिया मैरीटाइम वीक में लॉन्च की गई प्रमुख पहलें:

  • समुद्री निवेश रोडमैप: भारत ने सिंगापुर को अपने $1 लाख करोड़ के समुद्री निवेश रोडमैप में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है। इसमें जहाज निर्माण, बंदरगाह आधुनिकीकरण और हरित-ईंधन सहयोग शामिल है।
  • डिजी बंदर: सभी बंदरगाहों को डेटा-संचालित, AI-सक्षम और परस्पर जुड़े हुए बनाने के लिए एक राष्ट्रीय फ्रेमवर्क।
    • इसका उद्देश्य भारत के बंदरगाहों पर दक्षता, सुरक्षा और पारदर्शिता में सुधार करना है।
  • ग्रीन टग कार्यक्रम (Green Tug Programme): इस कार्यक्रम को लगभग ₹12,000 करोड़ के निवेश के साथ वर्ष 2040 तक 100 पर्यावरण के अनुकूल टग्स नियोजित करने के लिए शुरू किया गया है। यह स्वच्छ और ऊर्जा-कुशल समुद्री लॉजिस्टिक्स की ओर भारत के संक्रमण का समर्थन करता है।

भारत का समुद्री क्षेत्रक और विजन

  • व्यापार: भारत का व्यापार मात्रा के आधार पर लगभग 95% और मूल्य के आधार पर लगभग 70% समुद्री मार्गों के माध्यम से होता है। यह समुद्र को भारत के वाणिज्य की जीवन रेखा के रूप में दर्शाता है।
  • भारतीय बंदरगाह: वित्तीय वर्ष 2024-25 में, प्रमुख बंदरगाहों के माध्यम से लगभग 855 मिलियन टन कार्गो का संचालन किया गया। बंदरगाहों की कुल क्षमता लगभग दोगुनी होकर 1,400 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (MMTPA) से बढ़कर 2,762 MMTPA हो गई है।
    • प्रमुख बंदरगाहों पर जहाजों का औसत टर्नअराउंड समय 93 घंटे से घटकर केवल 48 घंटे रह गया है। इससे समग्र उत्पादकता और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि हुई है।
  • नौवहन क्षेत्रक: भारतीय जहाजों की संख्या 1,205 से बढ़कर 1,549 हो गई है। साथ ही, भारतीय बेड़े का ग्रॉस टन भार 10 मिलियन ग्रॉस टन (MGT) से बढ़कर 13.52 MGT हो गया है।
  • अंतर्देशीय जलमार्ग: परिचालन वाले जलमार्गों की संख्या 3 से बढ़कर 29 हो गई है। इसमें 2014 की तुलना में कार्गो आवाजाही में 710% की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • कार्यबल: भारत का नाविक कार्यबल (seafarer workforce) 1.25 लाख से बढ़कर 3 लाख से अधिक हो गया है, जो अब वैश्विक नाविक कार्यबल का 12% है। इससे भारत प्रशिक्षित नाविकों की आपूर्ति करने वाले विश्व के शीर्ष तीन देशों में शामिल हो गया है।

समुद्री क्षेत्रक में विद्यमान चुनौतियां

  • कनेक्टिविटी संबंधी बाधाएं: सड़क/रेल के माध्यम से बंदरगाहों तक पर्याप्त 'लास्ट-माइल कनेक्टिविटी' (अंतिम छोर तक संपर्क) का अभाव है। इससे व्यापार और बाजार तक पहुंच बाधित होती है तथा लॉजिस्टिक्स लागत में वृद्धि होती है।
  • ट्रांसशिपमेंट प्रतिस्पर्धात्मकता: सीमित ट्रांसशिपमेंट हैंडलिंग क्षमता के कारण भारत को कोलंबो बंदरगाह जैसे नजदीकी ट्रांसशिपमेंट हब से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।
  • भारतीय ध्वज के तहत उपबंधित टन भार: बड़े जहाजों पर उत्तरोत्तर उच्च कर के साथ उच्च कर प्रावधान, भारतीय ध्वज के तहत जहाज पंजीकरण को हतोत्साहित करते हैं।
    • वैश्विक जहाजों में भारत की शिपिंग रजिस्ट्री की हिस्सेदारी केवल 0.8% है।
  • विनिर्माण अंतराल: वैश्विक जहाज निर्माण में भारत की हिस्सेदारी लगभग 1% के साथ अत्यंत कम बनी हुई है। साथ ही, भारत वाणिज्यिक जहाजों में स्थापित होने वाले 95% से अधिक समुद्री इंजनों का आयात करता है।
  • समुद्री सुरक्षा: भारत को विभिन्न समुद्री सुरक्षा खतरों का सामना करना पड़ता है। इनमें गैर-राज्य खतरे (आतंकवाद, मादक पदार्थों/हथियारों की तस्करी, समुद्री डकैती), आर्थिक खतरे (IUU मत्स्यन, प्रदूषण, ग्रीन हाउस उत्सर्जन) और चीन तथा पाकिस्तान के द्वारा उत्पन्न होने वाले राज्य-नेतृत्व वाले खतरे शामिल हैं।

आत्मनिर्भर समुद्री क्षेत्रक के लिए प्रमुख कार्यक्रम

  • मैरीटाइम इंडिया विजन-2030 (MIV 2030): इसे वर्ष 2021 में शुरू किया गया था। यह दस महत्वपूर्ण विषयों की पहचान करता है जो भारत को एक वैश्विक समुद्री शक्ति बनाने की दिशा में आकार देंगे।
  • मैरीटाइम अमृत काल विजन-2047: यह भारत के समुद्री पुनरुत्थान के लिए एक दीर्घकालिक रोडमैप है। इसमें बंदरगाहों, तटीय शिपिंग, अंतर्देशीय जलमार्गों, जहाज निर्माण और 'ग्रीन शिपिंग' में लगभग ₹80 लाख करोड़ का निवेश शामिल है।
  • सागरमाला कार्यक्रम: यह कार्यक्रम लॉजिस्टिक लागत को कम करने, व्यापार दक्षता बढ़ाने और स्मार्ट एवं हरित परिवहन नेटवर्क के माध्यम से रोजगार सृजन पर केंद्रित है।
  • बंदरगाह विकास: भारत ने विझिंजम में अपना पहला 'डीप-वाटर इंटरनेशनल ट्रांस-शिपमेंट हब' संचालित किया है। साथ ही, वन नेशन वन पोर्ट प्रोसेस पहल का उद्देश्य सभी प्रमुख बंदरगाहों पर दस्तावेजों और प्रक्रियाओं को एकीकृत करना है।
  • कानूनी परिवर्तन: संसद ने पांच प्रमुख समुद्री अधिनियम पारित किए हैं। इनमें भारतीय पत्तन अधिनियम, मर्चेंट शिपिंग अधिनियम 2025, समुद्र द्वारा माल वहन अधिनियम,बिल ऑफ़ लैंडिंग अधिनियम और तटीय शिपिंग अधिनियम, 2025 शामिल हैं।
  • अनुकूल निवेश वातावरण: सरकार बंदरगाह विकास में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति देती है।
  • "जलवाहक" कार्गो प्रोत्साहन योजना: इसके तहत अंतर्देशीय जल परिवहन (IWT) को बढ़ावा देने के लिए परिचालन लागत पर 35% प्रतिपूर्ति प्रदान की गई है। साथ ही, प्रमुख राष्ट्रीय जलमार्ग (NW) मार्गों पर अनुसूचित कार्गो सेवाओं की शुरुआत की गई है।

समुद्री क्षेत्रक का हरितीकरण (Greening of Maritime Sector)

आवश्यकता 

  • उत्सर्जन: समुद्री परिवहन वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में लगभग 3% का योगदान देता है। इसके साथ ही बंदरगाह वायु एवं जल प्रदूषण तथा ग्रीन हाउस गैसों के प्रमुख स्रोत हैं।
  • जैव विविधता: समुद्री परिवहन से होने वाले उत्सर्जन तटों के साथ पाए जाने वाले मैंग्रोव, लैगून, प्रवाल भित्तियों और समुद्र तटों की समृद्ध जैव विविधता एवं समुद्री जीवन पर दबाव डालते हैं।
  • ऊर्जा सुरक्षा: पारंपरिक शिपिंग भारी मात्रा में आयातित भारी ईंधन तेल (HFO) और समुद्री डीजल पर निर्भर है। ये वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव और भू-राजनीतिक परिवर्तनों से प्रभावित होते हैं।
  • सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति: SDG लक्ष्यों के अनुरूप, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) ने 2030 तक शिपिंग क्षेत्र से CO2 उत्सर्जन में 40% की कमी का लक्ष्य रखा है।

उपाय 

  • भारतीय पत्तन अधिनियम, 2025: यह वैश्विक हरित मानदंडों के अनुपालन को अनिवार्य बनाता है। साथ ही, संधारणीयता एवं पर्यावरण के अनुकूल बंदरगाह प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए सुदृढ़ प्रदूषण नियंत्रण और आपदा तत्परता उपाय पेश करता है।
    • यह 'जहाजों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन' (MARPOL) और 'बैलस्ट वॉटर मैनेजमेंट' के अनुरूप भी है।
  • मैरीटाइम इंडिया विजन (MIV) 2030: इसके तहत नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग में वृद्धि, वायु उत्सर्जन में कमी, जल उपयोग का अनुकूलन, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार जैसे प्रमुख हस्तक्षेपों की पहचान की गई है।
  • हरित सागर ग्रीन पोर्ट दिशानिर्देश: ये भारतीय बंदरगाहों को सुरक्षित, कुशल, हरित और संधारणीय संचालन विकसित करने में मदद करने के लिए एक व्यापक फ्रेमवर्क के रूप में कार्य करते हैं।
  • ग्रीन टग ट्रांजिशन प्रोग्राम (GTTP): इसका उद्देश्य पारंपरिक ईंधन आधारित 'हार्बर टग्स' को हरित और अधिक टिकाऊ विकल्पों में परिवर्तित करना है। हार्बर टग  का तात्पर्य एक ऐसे समुद्री जहाज से है जो अन्य जहाजों को धकेलने या खींचने में मदद करता है।
  • हरित नौका (ग्रीन वेसल) पहल: इस पहल को अंतर्देशीय जलमार्ग वाले जहाजों में हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया है।

निष्कर्ष

भारत का समुद्री क्षेत्रक व्यापार के लिए एक सहायक सेवा से आगे बढ़कर आर्थिक विकास, स्थिरता और वैश्विक प्रभाव के एक रणनीतिक इंजन के रूप में निर्णायक रूपांतरण के दौर से गुजर रहा है। बंदरगाहों की बढ़ती दक्षता, अंतर्देशीय जलमार्गों के विस्तार, विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी नाविक कार्यबल और 'डीकार्बोनाइजेशन' की दिशा में मजबूत प्रयास के साथ, भारत अपने समुद्री विकास को 'आत्मनिर्भर भारत' और 'जलवायु उत्तरदायित्व' की दोहरी अनिवार्यताओं के अनुरूप आगे बढ़ा रहा है।

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