
सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, 20वां G20 शिखर सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित किया गया था। इस शिखर सम्मेलन की थीम 'एकजुटता, समानता और स्थिरता' (Solidarity, Equality, and Sustainability) थी।
अन्य संबंधित तथ्य
- यह अफ्रीकी धरती पर आयोजित होने वाला पहला G20 शिखर सम्मेलन था।
- दक्षिण अफ्रीका की G20 अध्यक्षता अफ्रीकी दर्शन 'उबुंटू' (Ubuntu - मैं हूं क्योंकि हम हैं) से निर्देशित थी।
G20 शिखर सम्मेलन 2025 के मुख्य परिणाम (जोहान्सबर्ग घोषणा):
- ऋण स्थिरता: इसमें विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए उधार लागत बढ़ाने वाले संरचनात्मक मुद्दों के परीक्षण हेतु कॉस्ट ऑफ कैपिटल कमीशन का प्रस्ताव किया गया।
- वैश्विक समुत्थानशीलता और विकास:

- आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए 2027 तक संयुक्त राष्ट्र की अर्ली वार्निंग्स फॉर ऑल पहल को लागू करके प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के सार्वभौमिक कवरेज का संकल्प लिया।
- अफ्रीकी देशों में कंप्यूटिंग शक्ति और प्रतिभा का विस्तार करने के लिए 'अफ्रीका के लिए AI पहल' की शुरुआत की।
- ऊर्जा और जलवायु संक्रमण:
- विश्व बैंक समूह और अफ्रीकी विकास बैंक के नेतृत्व में 'मिशन 300' का लक्ष्य 2030 तक अफ्रीका में 300 मिलियन लोगों को बिजली से जोड़ना है।
- 2030 तक वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने और ऊर्जा दक्षता में सुधार की औसत वार्षिक दर को दोगुना करने की प्रतिबद्धता दोहराई गई।
- G20 क्रिटिकल मिनरल्स फ्रेमवर्क: यह एक स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी रूपरेखा है। इसका उद्देश्य सतत मूल्य श्रृंखलाओं को सुरक्षित करना, खनिज अन्वेषण में निवेश को बढ़ावा देना तथा सतत खनन प्रथाओं के लिए शासन को सुदृढ़ करना है।
- यह समावेशी आर्थिक विकास के लिए खनिज संपन्न देशों के अपने संसाधनों का उपयोग करने के संप्रभु अधिकार को पूर्णतः संरक्षित करता है।
- युवा एवं लैंगिक लक्ष्य:
- 'नेल्सन मंडेला बे टारगेट' (Nelson Mandela Bay Target) को अपनाया गया। इसका उद्देश्य 2030 तक रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण में शामिल नहीं होने वाले (NEET) युवाओं की दर में 5% तक की कमी करना है।
- संशोधित 'ब्रिस्बेन-ईथेक्विनी लक्ष्य' को अपनाया गया। इसका उद्देश्य 2030 तक श्रम बल भागीदारी में लैंगिक अंतराल को 2012 के स्तर से 25% कम करना है।

G20 का महत्व:
- वैधता और समावेशिता: G20 उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (G7) और उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (BRICS) को एक साथ लाता है। इससे इसके निर्णयों को किसी भी छोटे समूह की तुलना में अधिक वैश्विक वैधता प्राप्त होती है।
- अफ्रीकी संघ (AU) को शामिल किए जाने से इसकी प्रतिनिधिक स्थिति और अधिक सुदृढ़ हुई।
- आर्थिक संकट प्रबंधन: यह वैश्विक आर्थिक नीति के लिए प्राथमिक समन्वय निकाय के रूप में कार्य करता है। इसने 2008 के वित्तीय संकट को वैश्विक मंदी में बदलने से रोकने में अपनी प्रभावकारिता प्रदर्शित की है।
- बहुपक्षीय सुधार का प्रेरक: यह प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संस्थानों, विशेष रूप से IMF, विश्व बैंक और WTO के सुधार एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एक शक्तिशाली सामूहिक आवाज के रूप में कार्य करता है।
- इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ये संस्थान 21वीं सदी की चुनौतियों के लिए उपयुक्त हों और बहुध्रुवीय वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करें।
- वैश्विक एजेंडा निर्धारक: G20 प्रभावी रूप से प्रमुख वैश्विक मानदंडों और नीतियों को स्थापित करता है और मुख्यधारा में लाता है। इसमें अंतरराष्ट्रीय कराधान {बेस इरोसन एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग (BEPS), वैश्विक न्यूनतम कर} से लेकर डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) मॉडल को अपनाना और वैश्विक प्रयासों के लिए फ्रेमवर्क शामिल है।
G20 शिखर सम्मेलन 2025 में ग्लोबल साउथ से संबंधित प्रभावशीलता:
- बदलती शक्ति गतिशीलता: G20 में 'ग्लोबल साउथ' देशों की अध्यक्षताओं (इंडोनेशिया, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका) की चार वर्षीय निरंतरता है। इस निरंतरता के परिणामस्वरूप 'ग्लोबल साउथ' देशों ने वैश्विक स्तर पर ऋण स्थिरता और एक निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के निर्माण जैसी विकासात्मक प्राथमिकताओं को व्यक्त करने के लिए इस मंच का सफलतापूर्वक उपयोग किया है।
- केंद्र में अफ्रीका: प्रमुख भू-राजनीतिक मतभेदों के बावजूद एक सर्वसम्मत घोषणा प्राप्त करने की G20 की क्षमता, 'ग्लोबल साउथ' के बढ़ते प्रभाव और परिचालन संबंधी लचीलेपन को प्रदर्शित करती है।
समकालीन विश्व व्यवस्था में G20 के समक्ष चुनौतियां:

- सहमति का अभाव: प्रमुख शक्तियों के बीच बढ़ते तनाव और अलग-अलग हित (जैसे कि अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता, रूस-अमेरिका संबंधी मुद्दे) गहन कूटनीतिक घर्षण उत्पन्न करते हैं। इसके परिणामस्वरूप संवेदनशील मुद्दों पर घोषणाओं की भाषा अस्पष्ट और कमजोर हो जाती है।
- क्षीण होती वैधता: राजनीतिक मतभेदों के कारण 2025 के शिखर सम्मेलन से प्रमुख वैश्विक नेतृत्वकर्ता (जैसे अमेरिका) की अनुपस्थिति, प्रमुख वैश्विक संचालन समिति के रूप में G20 की वैधता को कम करती है।
- गैर-बाध्यकारी प्रतिबद्धताएं: G20 की प्रतिबद्धताएं प्रकृति में गैर-बाध्यकारी हैं। इसके अलावा, प्रवर्तन तंत्र के अभाव के कारण महत्वपूर्ण प्रतिबद्धताओं, विशेष रूप से जलवायु वित्त और ऋण पुनर्गठन के क्रियान्वयन में दीर्घकालिक विलंब हुआ है।
- असामान्य चुनौतियों के लिए अप्रभावी कॉमन फ्रेमवर्क: उदाहरण के लिए, 'G20 कॉमन फ्रेमवर्क फॉर डेब्ट ट्रीटमेंट' को अत्यधिक धीमा और जटिल होने के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा है।
- अन्य चुनौतियां:
- संरक्षणवाद और व्यापार: मुक्त व्यापार की प्रतिबद्धताओं के बावजूद, प्रमुख सदस्यों के बीच राष्ट्रवादी औद्योगिक नीतियों और सब्सिडियों का पुनरुत्थान हुआ है। इससे भू-आर्थिक विखंडन का निर्माण करने और वैश्विक व्यापार प्रणाली को कमजोर करने का खतरा उत्पन्न होता है, उदाहरण के लिए, अमेरिका में MAGA।
- एजेंडा का अत्यधिक विस्तार: G20 का एजेंडा कई मुद्दों (AI गवर्नेंस, स्वास्थ्य सुरक्षा, लैंगिक समानता, आदि) को शामिल करने के लिए महत्वपूर्ण रूप से विस्तारित हुआ है। इससे इसका ध्यान भटक सकता है और संसाधनों पर दबाव उत्पन्न हो सकता है, जिससे कार्यान्वयन में कठिनाइयां आ सकती हैं।
निष्कर्ष
ऋण राहत, महत्वपूर्ण खनिजों और डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना से संबंधित G20 की प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने की भारत की क्षमता, बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को आकार देने में उसकी भूमिका को निर्धारित करेगी। इसलिए, जोहान्सबर्ग शिखर सम्मेलन भारत के लिए एजेंडा-निर्धारण को सतत वैश्विक नेतृत्व में बदलने हेतु एक रणनीतिक मोड़ को चिह्नित करता है।