सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, नीति आयोग के फ्रंटियर टेक्नोलॉजी हब ने भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) और डेलोइट (Deloitte) के सहयोग से एक 10-वर्षीय रोडमैप जारी किया है। इस रोडमैप का शीर्षक "विनिर्माण की पुनर्कल्पना: उन्नत विनिर्माण में वैश्विक नेतृत्व के लिए भारत का रोडमैप" (Reimagining Manufacturing: India's Roadmap to Global Leadership in Advanced Manufacturing) है।
रोडमैप के मुख्य बिंदु
- मुख्य फ्रंटियर टेक्नोलॉजी घटक: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग, एडवांस्ड मैटेरियल्स, डिजिटल ट्विन्स (भौतिक प्रणालियों की आभासी, डेटा-संचालित प्रतिकृतियां) और रोबोटिक्स।
- रोडमैप की प्रमुख विशेषताएं
- क्षेत्रक-केंद्रित दृष्टिकोण: इसने 13 प्राथमिकता वाले विनिर्माण क्षेत्रकों की पहचान की है जहां फ्रंटियर प्रौद्योगिकियां सबसे अधिक प्रभाव डाल सकती हैं। इन क्षेत्रकों में इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर और फार्मास्यूटिकल्स से लेकर हरित ऊर्जा तक शामिल हैं।
- फ्रंटियर प्रौद्योगिकी का एकीकरण:
- पूर्वानुमानित रखरखाव, गुणवत्ता नियंत्रण और प्रक्रिया अनुकूलन के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तथा मशीन लर्निंग।
- रीयल-टाइम फैक्ट्री परिवेश का अनुकरण करने के लिए डिजिटल ट्विन्स।
- उत्पाद के प्रदर्शन और संधारणीयता को बढ़ाने के लिए उन्नत सामग्री।
- सटीकता, उत्पादकता और सुरक्षा में सुधार के लिए रोबोटिक्स और ऑटोमेशन।

विनिर्माण का महत्त्व
- आर्थिक संरचना को संतुलित करना: विनिर्माण श्रम को कम उत्पादकता वाली कृषि से उच्च उत्पादकता वाले गैर-कृषि रोजगार में स्थानांतरित करता है। सेवा क्षेत्रक इसे वांछित स्तर तक हासिल करने में विफल रहा है।
- रोजगार: किसी भी अन्य क्षेत्रक की तुलना में इस क्षेत्रक में सबसे अधिक पश्चगामी (बैकवर्ड) और अग्रगामी (फॉरवर्ड) लिंकेज हैं। यानी, यह सृजित होने वाले प्रत्येक प्रत्यक्ष रोजगार के लिए परोक्ष रूप से अधिक रोजगार सृजन करता है।
- रणनीतिक स्वायत्तता: एक मजबूत विनिर्माण आधार महत्वपूर्ण क्षेत्रकों, जैसे कि- रक्षा, अर्धचालक, फार्मास्यूटिकल्स और ऊर्जा उपकरण में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है।
- कोविड-19 ने APIs, चिकित्सा उपकरण और अर्धचालकों के लिए आयात पर निर्भरता को उजागर किया है।
- नवाचार का प्रसार: विनिर्माण क्षेत्रक अनुसंधान एवं विकास (R&D) के प्रसार, आपूर्तिकर्ता विकास, कौशल उन्नयन और पूरे इकोसिस्टम में उत्पादकता लाभ को बढ़ावा देता है।
- क्षेत्रीय संतुलन: विनिर्माण टियर-2, टियर-3 शहरों और ग्रामीण इलाकों में रोजगार सृजन करके विकास का विकेंद्रीकरण कर सकता है। इससे महानगरों की ओर होने वाला संकट कालीन प्रवास कम हो सकता है।
- उदाहरण के लिए, सूक्ष्म और लघु उद्यम क्लस्टर विकास कार्यक्रम। यह एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है, जो संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए ग्रामीण क्षेत्रों, उत्तर-पूर्वी, आकांक्षी जिलों पर ध्यान केंद्रित करती है।
भारत में विनिर्माण क्षेत्रक के समक्ष आने वाली चुनौतियां
- वित्तपोषण का अभाव: पायलट-टू-स्केल (पायलट प्रोजेक्ट से बड़े पैमाने पर उत्पादन) की ओर स्थानांतरण का समर्थन करने के लिए सरकार और उद्योग द्वारा फ्रंटियर प्रौद्योगिकियों के लिए वित्त की कमी।
- नीति आयोग के अनुसार, इन प्रौद्योगिकियों को पर्याप्त रूप से न अपनाने पर वर्ष 2035 तक वैश्विक विनिर्माण में भारत की हिस्सेदारी घटकर 2.5% हो सकती है।
- R&D में कम निवेश: उदाहरण के लिए, 2023 में भारत में R&D व्यय GDP का केवल 0.64% था। यह चीन के R&D व्यय (जिसने लगभग 2.5% खर्च किया) से काफी कम है।
- आकार बढ़ाने के लिए हतोत्साहन: कड़े नियमों के कारण MSMEs विनियामक और कर बोझ से बचने के लिए छोटे बने रहने का विकल्प चुनते हैं। इससे रोजगार सृजन और स्केलेबिलिटी (विस्तार क्षमता) कम हो जाती है।
- विनिर्माण उत्पादन का लगभग 35.5% हिस्सा MSMEs के पास है।
- विनिर्माण बनाम सेवा असंतुलन: भारत में सेवा-आधारित विकास हुआ है। इसके कारण पूर्वी एशिया की तरह विनिर्माण आधारित संरचनात्मक परिवर्तन नहीं हो सका है। उदाहरण के लिए, GDP में सेवाओं की हिस्सेदारी लगभग 55% है।
- इसके परिणामस्वरूप बेरोजगारी बढ़ी है, क्योंकि सेवा क्षेत्रक (विशेष रूप से आईटी और वित्त) उच्च-उत्पादकता वाले किंतु कम रोजगार देने वाले क्षेत्रक हैं।
- कम श्रम उत्पादकता: ILO के अनुसार, भारत में प्रति कार्य घंटे की GDP 8 डॉलर थी, जो इसे 133वें स्थान पर रखती है।
- असमान वितरण: विनिर्माण GVA (सकल मूल्य वर्धित) में शीर्ष 5 राज्यों का हिस्सा लगभग 54% है।
![]() विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा की गई पहलें
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निष्कर्ष
विनिर्माण क्षेत्रक की पूरी क्षमता का दोहन करने के लिए, भारत लागत कम करने और व्यापार सुगमता में सुधार करने हेतु विनियमन, भूमि, शुल्क, अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स में समन्वित सुधार कर सकता है। इसके साथ ही, अनुसंधान एवं विकास (R&D) में अधिक निवेश, फ्रंटियर प्रौद्योगिकियों को अपनाना और उद्योगों के अनुरूप कौशल विकास भी अत्यंत आवश्यक है।
