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भारत-अमेरिका रक्षा संबंध (INDIA-US DEFENSE TIES)

23 Dec 2025
1 min

In Summary

भारत और अमेरिका ने 10 साल के रक्षा ढांचे पर हस्ताक्षर किए, जिससे रणनीतिक साझेदारी, सैन्य सहयोग, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा मिलेगा और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय शक्ति संतुलन स्थापित होगा।

In Summary

सुर्ख़ियों में क्यों ?

हाल ही में, भारत और अमेरिका ने रक्षा साझेदारी के लिए 10 वर्षीय फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

अन्य संबंधित तथ्य

  • यह समझौता 2005 और 2015 में हस्ताक्षरित समान 10-वर्षीय फ्रेमवर्क समझौतों का अनुवर्ती है।
  • अमेरिका ने हाल ही में भारत को जेवलिन एंटी-टैंक मिसाइल सिस्टम, एक्सकैलिबर गाइडेड आर्टिलरी गोला-बारूद और संबंधित उपकरणों की बिक्री को भी मंजूरी दी है।

भारत-अमेरिका रक्षा संबंध

  • भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग 1962 के चीन-भारत युद्ध के दौरान शुरू हुआ, जब अमेरिका ने भारत को परिवहन विमान, हथियार और प्रशिक्षण की आपूर्ति की थी।
  • संवाद तंत्र:
    • शीर्ष संवाद: 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता, जिसकी सह-अध्यक्षता भारत के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री तथा अमेरिका के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री द्वारा की जाती है।
    • अन्य: रक्षा नीति समूह (DPG), सैन्य सहयोग समूह (MCG), रक्षा संयुक्त कार्य समूह (DJWG) आदि।
  • बुनियादी समझौते:
    • जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इंफॉर्मेशन एग्रीमेंट (GSOMIA): इसे 2002 में हस्ताक्षरित किया गया था। यह अमेरिकी सरकार और कंपनियों को भारतीय सरकार और राज्य-स्वामित्व वाले उपक्रमों के साथ गोपनीय सूचना साझा करने की अनुमति देता है। 
    • लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA): इसे 2016 में हस्ताक्षरित किया गया था। यह दोनों देशों की सेनाओं को ईंधन भरने और पुनःपूर्ति के लिए एक-दूसरे की सुविधाओं तक पहुँच प्रदान करता है।
    • कम्युनिकेशंस, कम्पैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (COMCASA): इसे 2018 में हस्ताक्षरित किया गया था। यह एन्क्रिप्टेड संचार डेटा और उपकरणों की बिक्री और आदान-प्रदान की अनुमति देता है।
    • बेसिक एक्सचेंज एंड कम्युनिकेशंस एग्रीमेंट (BECA) (2020): इसे 2020 में हस्ताक्षरित किया गया था। यह दोनों देशों को लंबी दूरी के नेविगेशन और मिसाइल लक्ष्यीकरण के लिए उन्नत भू-स्थानिक (सैटेलाइट) डेटा साझा करने में सक्षम बनाता है।
  • रक्षा व्यापार:
    • स्थिति: 2016 में, अमेरिका ने भारत को प्रमुख रक्षा भागीदार नामित किया।
    • व्यापार सरलीकरण: भारत का रणनीतिक व्यापार प्राधिकरण (STA)-1 दर्जा (2018) अमेरिकी सैन्य और दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों की एक विस्तृत श्रृंखला तक तेज, लाइसेंस-मुक्त पहुँच को सक्षम बनाता है।
    • प्रमुख रक्षा अधिग्रहण: भारत P-8IC-17अपाचेMH-60RM777 हॉवित्ज़र जैसे अमेरिकी मूल के प्लेटफॉर्म का परिचालन करता है।
  • संयुक्त सैन्य अभ्यास और इंटरऑपरेबिलिटी:
    • द्विपक्षीय अभ्यास: जैसे, युद्ध अभ्यास (सेना), वज्र प्रहार (विशेष बल), कोप इंडिया (वायु सेना), टाइगर ट्रायम्फ (त्रि-सेवा) आदि।
    • बहुपक्षीय अभ्यास: जैसे, मालाबार (क्वाड नौसेनाएं), RIMPAC, रेड फ्लैग आदि।

भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों का महत्व

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन: यह सहयोग गहन समुद्री सहयोग, सूचना-साझाकरण और संयुक्त अभ्यासों के माध्यम से चीन के आक्रामक रुख को संतुलित करने की भारत की क्षमता को बढ़ाता है।
    • उदाहरण के लिए, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मालाबार अभ्यास।
  • प्रौद्योगिकी और औद्योगिक साझेदारी: यह भारत को उन्नत सैन्य तकनीक तक पहुँच प्रदान करता है और सह-उत्पादन एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (जैसे P-8I विमान; GE F-414 विमान इंजन निर्माण) के माध्यम से इसके रक्षा औद्योगिक आधार को मजबूत करता है।
    • मेक-इन-इंडिया और निर्यात महत्वाकांक्षाओं का समर्थन: अमेरिका भारत के शीर्ष तीन रक्षा-निर्यात ग्राहकों (फ्रांस और आर्मेनिया के साथ) में से एक बनकर उभरा है।
  • लॉजिस्टिक्स और वैश्विक पहुंच: LEMOA जैसे समझौते पारस्परिक सुविधाओं और समर्थन नेटवर्क तक पहुँच सुनिश्चित कर भारत के संचालनात्मक विस्तार को बढ़ाते हैं।
  • आर्थिक और क्षमता लाभ: 20 बिलियन डॉलर से अधिक का रक्षा व्यापार दोनों देशों में रोजगार, आपूर्ति श्रृंखलाओं और प्रौद्योगिकी परिवेश प्रणालियों को बढ़ावा देता है।
  • रूस से परे विविधीकरण: अमेरिका के साथ रक्षा संबंध भारत को रूसी प्लेटफॉर्म्स पर अपनी ऐतिहासिक अत्यधिक निर्भरता को कम करने और तकनीकी विकल्पों को व्यापक बनाने में मदद करते हैं।

भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों में प्रमुख बाधाएं 

  • रणनीतिक स्वायत्तता की चुनौतियां: भारत अमेरिका और रूस दोनों के साथ सहयोग करता है। रूसी तेल और हथियारों की खरीद को प्रतिबंधित करने का अमेरिकी दबाव तनाव पैदा करता है।
    • उदाहरण के लिए, रूस के साथ S-400 सौदे के दौरान CAATSA संबंधी चिंताएं।
  • सीमित प्रौद्योगिकी पहुंच: STA-1 दर्जा मिलने के बाद भी अमेरिका के निर्यात नियंत्रण नियम कई उन्नत प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण को रोकते हैं।
    • उदाहरण: संवेदनशील जेट-इंजन घटक अभी भी अमेरिकी लाइसेंसिंग और नियामकीय स्वीकृतियों के अधीन हैं।
  • विभिन्न क्षेत्रीय प्राथमिकताएं: अमेरिका का पाकिस्तान के साथ निरंतर सुरक्षा सहयोग भारत के लिए असहजता उत्पन्न करता है।
    • उदाहरण के लिए, 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद 2025 में उच्च स्तरीय अमेरिका-पाकिस्तान सैन्य बैठकें।
  • रूसी विरासत प्रणालियां: भारत के पास मौजूद बड़ी संख्या में रूसी मूल के सैन्य हथियार अमेरिकी प्लेटफॉर्मों के साथ अंतर-संचालन में कठिनाई पैदा करते हैं।
    • उदाहरण के लिए, अपाचे जैसे अमेरिकी प्लेटफॉर्म्स के साथ S-400 और Su-30MKI का संचालन।
  • अप्रत्याशित अमेरिकी राजनीति: अमेरिकी घरेलू राजनीति और कांग्रेस प्रमुख रक्षा सौदों में देरी कर सकती है या उन्हें रोक सकती है।
    • उदाहरण के लिए, कांग्रेस की रोक के कारण MQ-9B ड्रोन सौदा पहले रुक गया था।
  • बदलते महाशक्ति समीकरण: अमेरिका-रूस के बीच कोई भी सुधार या मजबूत रूस-चीन साझेदारी भारत के रक्षा विकल्पों को प्रभावित कर सकती है।
    • उदाहरण के लिए, रूस द्वारा पाकिस्तान के साथ नए रक्षा संबंधों की तलाश करना।

निष्कर्ष

नवीनीकृत 10-वर्षीय रक्षा फ्रेमवर्क भारत–अमेरिका संबंधों को क्रेता-विक्रेता से आगे बढ़ाकर एक वास्तविक रणनीतिक एवं औद्योगिक साझेदारी में बदलने का अवसर देता है। सह-विकास को गहन करनेप्रौद्योगिकी हस्तांतरण बाधाएं कम करने, और रणनीतिक स्वायत्तता के अनुरूप सहयोग को संरेखित करने से यह साझेदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन, भारत की दीर्घकालिक रक्षा आत्मनिर्भरता, और उसकी वैश्विक सुरक्षा भूमिका को सुदृढ़ कर सकती है।

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