सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नेता भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में देश भर में जनजातीय गौरव दिवस मनाया गया।
भगवान बिरसा मुंडा: एक परिचय

- प्रारंभिक जीवन:
- उनका जन्म 1875 में वर्तमान झारखंड के खूंटी जिले के उलिहातू में हुआ था।
- वे छोटानागपुर पठार क्षेत्र (वर्तमान झारखंड) की मुंडा जनजाति से संबंधित थे।
- शिक्षाएं और विश्वास:
- एकेश्वरवाद: बिरसा मुंडा ने 'बिरसाहित' नामक एक नए संप्रदाय की स्थापना की और केवल एक ईश्वर में विश्वास रखने का उपदेश दिया।
- जनजातीय आस्था का पुनरुत्थान: उन्होंने ईसाई मिशनरियों के प्रभाव को खारिज कर दिया और पारंपरिक मुंडा धार्मिक प्रथाओं में सुधार करने का प्रयास किया।
- नैतिक अनुशासन: उन्होंने स्वच्छता, कड़ी मेहनत, शराब से परहेज और व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में शुद्धता पर जोर दिया।
- मृत्यु और विरासत:
- 1900 में रांची जेल में हैजा के कारण उनका निधन हो गया।
- उन्हें 'भगवान' के रूप में याद किया जाता है और उन्हें 'धरती आबा' (धरती के पिता) की उपाधि दी गई थी।
- उनकी विरासत के सम्मान में, पूरे भारत में 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- औपनिवेशिक प्रतिरोध (अंग्रेजों के खिलाफ) में योगदान:
- मुंडा विद्रोह: बिरसा मुंडा ने 1899 में 'उलगुलान' (महान हलचल/ विद्रोह) आंदोलन शुरू किया।
- ब्रिटिश राज के खिलाफ नारा: "अबुआ राज सेतेरजाना, महारानी राज तुंडुजाना" (अर्थात: रानी का शासन समाप्त हो और हमारा शासन स्थापित हो)।
मुंडा विद्रोह के बारे मेंविद्रोह के कारण
विद्रोह के उद्देश्य
विद्रोह के परिणाम
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