सुर्ख़ियों में क्यों ?
हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति ने परमाणु हथियारों के परीक्षण को फिर से शुरू करने की घोषणा की है। यह एक ऐसा कदम है जो दशकों से निर्मित परमाणु अप्रसार और निरस्त्रीकरण प्रयासों को कमजोर कर सकता है।
बढ़ते परमाणु जोखिम के पीछे के कारक

- भू-राजनीतिक तनाव: देशों के बीच बढ़ते संघर्ष राज्यों को परमाणु सुरक्षाकरण और तत्परता की ओर अग्रसर करते हैं।
- उदाहरण के लिए, SIPRI वार्षिकी-2024 के अनुसार, परिचालन वारहेड्स की संख्या में प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है।
- सिद्धांतिक अस्पष्टता: परमाणु-प्रतिक्रिया की सीमा पर स्पष्टता का अभाव गलत आकलन के जोखिम को बढ़ाता है।
- उदाहरण के लिए, परमाणु कमांड सिस्टम पर साइबर हमले की स्थिति में जवाबी कार्रवाई को लेकर अनिश्चितता।
- संधि-व्यवस्था का विघटन: हथियार नियंत्रण समझौतों के उल्लंघन से संचार और हथियारों की सीमाएं कमजोर होती हैं। इससे तनाव बढ़ने के जोखिम में वृद्धि होती है।
- उदाहरण के लिए, INF संधि (अमेरिका-रूस) का उल्लंघन, ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका का हटना, आदि।
- तीव्र डिलीवरी सिस्टम: नई मिसाइल प्रौद्योगिकियां निर्णय लेने के समय को कम कर देती हैं और गलत पहचान के जोखिम को बढ़ाती हैं।
- उदाहरण के लिए, हाइपरसोनिक मिसाइलें देशों के लिए प्रतिक्रिया समय को कम कर देती हैं, जिससे त्वरित तनाव वृद्धि का जोखिम बढ़ता है।
- त्रुटिपूर्ण चेतावनी का जोखिम: प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में त्रुटियों के कारण आकस्मिक संघर्ष उत्पन्न हो सकता है, यदि उन्हें मानव हस्तक्षेप द्वारा समय पर न रोका जाए।
- उदाहरण के लिए, 1983 की सोवियत त्रुटिपूर्ण चेतावनी की घटना।
- अंतरिक्ष का सैन्यीकरण: हथियारों की प्रतिस्पर्धा का अंतरिक्ष तक विस्तार नई रणनीतिक अस्थिरता उत्पन्न करता है।
- उदाहरण के लिए, अमेरिकी स्पेस फोर्स का विस्तार।
- AI का शस्त्रीकरण: सैन्य प्रणालियों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का बढ़ता उपयोग निर्णय प्रक्रिया को तीव्र करता है और गलत व्याख्या की संभावना को बढ़ाता है। इसके कारण परमाणु-तनाव का जोखिम बढ़ सकता है, यह जोखिम परमाणु प्लेटफॉर्म्स के बाहर भी उत्पन्न हो सकता है।
परमाणु निरस्त्रीकरण
- इसका उद्देश्य एक परमाणु-मुक्त विश्व के लक्ष्य के साथ, एकतरफा निर्णयों या अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के माध्यम से विश्व स्तर पर परमाणु हथियारों को कम करना या समाप्त करना है।
- मुख्य मुद्दे:
- अप्रभावी वैश्विक मंच: बहुपक्षीय संस्थाओं में प्रगति अत्यंत सीमित रही है, जिससे विश्वास में कमी आती है।
- उदाहरण के लिए, निरस्त्रीकरण सम्मेलन का दशकों से ठहराव रुकी हुई कूटनीति को दर्शाता है।
- संधि की कमियां : अस्पष्ट प्रावधान राष्ट्रों को अपने दायित्वों को टालने या उनसे बचने का अवसर देते हैं।
- उदाहरण के लिए, परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के तहत हथियार भंडार में कटौती के लिए कठोर समय-सीमा का अभाव।
- समझौतों से बाहर निकलना: संधियों से हटना गैर-अनुपालन के लिए अन्य राष्ट्रों को प्रेरित करता है और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों को कमजोर करता है।
- उदाहरण के लिए, उत्तर कोरिया का NPT से बाहर निकलना।
- ढांचे से बाहर के राष्ट्र: वास्तविक रूप से परमाणु-संपन्न देश जो मूल संधियों से बाध्य नहीं हैं, वे सार्वभौमिकता को चुनौती देते हैं।
- उदाहरण के लिए, भारत, इजरायल और पाकिस्तान NPT दायित्वों से बाहर हैं।
- प्रतिबद्धता-कार्यान्वयन अंतराल: कई देश अंतरराष्ट्रीय मंचों पर निरस्त्रीकरण का समर्थन तो करते हैं, किंतु साथ ही अपने हथियारों का आधुनिकीकरण भी जारी रखते हैं।
- उदाहरण के लिए, रूस NPT का समर्थन करता है, परंतु समानांतर रूप से अपनी वितरण प्रणालियों का आधुनिकीकरण भी कर रहा है।
- परमाणु प्रतिरोध पर निर्भरता: सैन्य क्षमताओं में असमानता के कारण कई देश रणनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए परमाणु प्रतिरोध पर अधिक निर्भर हो जाते हैं।
- उदाहरण के लिए, रूस, नाटो की अपेक्षाकृत अधिक सशक्त पारंपरिक सैन्य क्षमताओं के विरुद्ध परमाणु प्रतिरोध को बनाए रखता है।
- वितरण प्रणालियों के लिए बाध्यकारी नियमों का अभाव: विशेष रूप से प्रक्षेपण प्रणालियों को नियंत्रित करने वाले कानूनी फ्रेमवर्क्स की अनुपस्थिति अनियंत्रित मिसाइल प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करती है।
- अप्रभावी वैश्विक मंच: बहुपक्षीय संस्थाओं में प्रगति अत्यंत सीमित रही है, जिससे विश्वास में कमी आती है।

परमाणु निरस्त्रीकरण पर भारत का रुख
- मुख्य सिद्धांत: भारत वैश्विक, गैर-भेदभावपूर्ण और सत्यापन योग्य परमाणु निरस्त्रीकरण का समर्थन करता है जो सभी देशों पर समान रूप से लागू हो।
- परीक्षण प्रतिबंध का आह्वान करने वाला प्रथम देश: भारत 1954 में परमाणु परीक्षणों पर विश्वव्यापी प्रतिबंध लगाने का आह्वान करने वाला पहला देश था।
- परमाणु प्रतिबंध अभिसमय : भारत ने 1978 में परमाणु हथियारों के उपयोग या उनके खतरे को प्रतिबंधित करने के लिए एक वैश्विक अभिसमय का प्रस्ताव रखा था।
- चरणबद्ध निरस्त्रीकरण योजना: भारत ने 1988 में तीन चरणों में परमाणु हथियारों को समाप्त करने के लिए UNGA (संयुक्त राष्ट्र महासभा) कार्य योजना प्रस्तुत की थी।
- वैश्विक संधियों पर रुख:
- NPT (परमाणु अप्रसार संधि): भारत इसका विरोध करता है क्योंकि यह केवल 5 देशों के लिए परमाणु हथियारों को मान्यता देती है।
- CTBT (व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि): भारत ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, क्योंकि इसमें परमाणु निरस्त्रीकरण पर पर्याप्त बल नहीं दिया गया है और इससे भारत की सुरक्षा संबंधी चिंताएं जुड़ी हैं।
- TPNW (परमाणु हथियार निषेध संधि): भारत इसका समर्थन नहीं करता है, क्योंकि इसमें निरस्त्रीकरण के लिए नए और प्रभावी कानूनी मानदंडों का अभाव है।
- बहुपक्षीय दृष्टिकोण: भारत सार्वभौमिक रूप से लागू, वार्ताओं के माध्यम से संपन्न समझौतों का समर्थन करता है और निरस्त्रीकरण सम्मेलन के अंतर्गत एक परमाणु हथियार अभिसमय का समर्थन करता है। भारत इसे वैश्विक परमाणु प्रतिबंध संधि के लिए मुख्य मंच मानता है।
निष्कर्ष
परमाणु जोखिमों को कम करने के लिए नवीनीकृत हथियार नियंत्रण, पारदर्शी सिद्धांतों और उभरती प्रौद्योगिकियों के अनुरूप समावेशी बहुपक्षवाद के माध्यम से विश्वास की पुनर्स्थापना आवश्यक होगी। सार्वभौमिक, भेदभाव-रहित और सत्यापन-योग्य परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए भारत का निरंतर समर्थन, संयम, जोखिम-न्यूनीकरण उपायों और नागरिक नियंत्रण के साथ मिलकर एक व्यावहारिक मार्ग प्रस्तुत करता है। निरंतर संवाद, सुदृढ़ वैश्विक संस्थाएं और क्रमिक विश्वास-निर्माण उपाय मिलकर प्रतिरोध की वास्तविकताओं और परमाणु-शस्त्र-मुक्त विश्व के साझा लक्ष्य के बीच की खाई को समाप्त कर सकते हैं।