बिरसा-101 (BIRSA-101) | Current Affairs | Vision IAS
मेनू
होम

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के लिए प्रासंगिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास पर समय-समय पर तैयार किए गए लेख और अपडेट।

त्वरित लिंक

High-quality MCQs and Mains Answer Writing to sharpen skills and reinforce learning every day.

महत्वपूर्ण यूपीएससी विषयों पर डीप डाइव, मास्टर क्लासेस आदि जैसी पहलों के तहत व्याख्यात्मक और विषयगत अवधारणा-निर्माण वीडियो देखें।

करंट अफेयर्स कार्यक्रम

यूपीएससी की तैयारी के लिए हमारे सभी प्रमुख, आधार और उन्नत पाठ्यक्रमों का एक व्यापक अवलोकन।

ESC

बिरसा-101 (BIRSA-101)

23 Dec 2025
1 min

In Summary

भारत ने सिकल सेल रोग के लिए अपनी पहली स्वदेशी CRISPR-आधारित जीन थेरेपी, BIRSA-101 का शुभारंभ किया, जिसे CSIR-IGIB द्वारा उन्नत जीन-संपादन प्रौद्योगिकी और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सहयोग से विकसित किया गया है।

In Summary

सुर्ख़ियों में क्यों?

भारत ने सिकल सेल रोगों के उपचार के लिए अपनी पहली स्वदेशी क्रिस्पर-आधारित (CRISPR-based) जीन एडिटिंग थेरेपी विकसित की है। इसे बिरसा-101 (BIRSA-101) नाम दिया गया है।

अन्य संबंधित तथ्य

  • इसे CSIR-जीनोमिक्स और एकीकृत जीव विज्ञान संस्थान (IGIB) द्वारा विकसित किया गया है।
  • इसका नाम BIRSA-101 रखा गया है क्योंकि इसे भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर उन्हें समर्पित किया गया है।
  • CSIR-IGIB और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के बीच एक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौता किया गया है। इस समझौते का उद्देश्य सिकल सेल रोगों और अन्य आनुवंशिक विकारों के लिए किफायती और बड़े पैमाने पर उपलब्ध और स्वदेशी 'enFnCas9' क्रिस्पर-आधारित थेरेपी उपलब्ध कराना है।

क्रिस्पर प्रौद्योगिकी और कार्यप्रणाली

  • क्रिस्पर (CRISPR) का पूरा नाम है - क्लस्टर्ड रेग्युलेरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पेलिन्ड्रोमिक रीपीट्स  (Clustered Regularly Interspaced Short Palindromic Repeats)
  • यह जीवित जीवों के डीएनए (DNA) को चयनात्मक रूप से संशोधित करने वाली एक जीन-संपादन तकनीक है।

यह कैसे कार्य करता है?

  • क्रिस्पर तकनीक एक विशिष्ट स्थान पर डीएनए (DNA) को काटने के लिए जीवाणु (बैक्टीरिया) के एक प्राकृतिक रक्षा तंत्र का उपयोग करती है।
  • जब विषाणु (वायरस) किसी जीवाणु पर हमला करता है, तो जीवाणु उस विषाणु के DNA का एक हिस्सा अपने DNA में संग्रहित कर लेता है। 
  • विषाणुओं के आनुवंशिक कोड का यह संग्रह जीवाणुओं को उसे पहचानने और याद रखने में मदद करता है।
  • जब वही विषाणु दोबारा हमला करता है, तो जीवाणु CRISPR-संबंधित प्रोटीन CAS9 की सहायता से विषाणु के DNA को काट देता हैं, जिससे विषाणु नष्ट हो जाता है।
  • प्रयोगशाला में वैज्ञानिक इसी प्रणाली का उपयोग विशिष्ट DNA अनुक्रम की पहचान करने और उसे काटने के लिए करते हैं।

प्रमुख घटक:

  • Cas9 प्रोटीन: इस प्रणाली में Cas प्रोटीन का उपयोग किया जाता है जिसे Cas9 कहा जाता है। यह 'आणविक कैंची' (Molecular Scissors) की तरह काम करता है और DNA को काटता है।
  • गाइड RNA (gRNA): यह Cas9 को निर्देश देता है कि DNA के किस हिस्से को काटना है। डीएनए को ठीक उसी जगह काटा जाता है जिसे इस गाइड द्वारा चुना/निर्धारित किया गया है।

जीनोम संपादन उपकरण

  • CRISPR-Cas9: इसमें एक छोटा आरएनए (RNA) अणु Cas9 प्रोटीन को DNA के निर्धारित स्थान तक ले जाता है, जहाँ कट लगाया जाता है।
  • होमिंग एंडोन्यूक्लीज (मेगा-न्यूक्लीज): ये प्राकृतिक एंजाइम होते हैं, जो DNA के लंबे और विशिष्ट अनुक्रमों को पहचानकर उन्हें काट सकते हैं।
  • जिंक-फिंगर न्यूक्लिएज (ZFNs): ये डीएनए (DNA) में सही स्थान को खोजने और फिर उसे काटने के लिए विशिष्ट प्रोटीन खंडों का उपयोग करते हैं।
  • TALE न्यूक्लिएज (TALENs): ये उपकरण दो भागों का उपयोग करते हैं जो एक साथ मिलकर किसी चुने हुए स्थान पर डीएनए को काटते हैं।

संबंधित सुर्खियां

TnpB-आधारित तकनीक

ICAR–CRRI (केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान), कटक के भारतीय वैज्ञानिकों ने TnpB प्रोटीन का उपयोग करके पौधों के लिए एक नया जीनोम-संपादन उपकरण विकसित किया है, जिसे पेटेंट प्रदान किया गया है।

  • TnpB प्रोटीन: यह एक ट्रांसपोजोन-संबद्ध प्रोटीन है जो DNA को काटने के लिए 'आणविक कैंची' की तरह कार्य करता है। यह Cas9 या Cas12a जैसे जीन-एडिटिंग उपकरणों की तुलना में आकार में बहुत छोटा होता है।
    • ट्रांसपोजोन/ ट्रांस्पोजेबल एलिमेंट्स (TEs): इन्हें "जंपिंग जीन" भी कहा जाता है। ये ऐसे DNA अनुक्रम होते हैं जो जीनोम में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं।
  • TnpB का संहत व छोटा आकार इसे पादप कोशिकाओं में प्रवेश कराने में आसान बनाता है। इसे विषाणु-मध्यस्थ वितरण के माध्यम से भी कोशिकाओं में पहुँचाया जा सकता है।

ग्लो-कैस9 (GlowCas9)

  • कोलकाता स्थित बोस संस्थान (Bose Institute) के वैज्ञानिकों ने ग्लो-कैस9 विकसित किया है। बोस संस्थान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था है।
  • यह एक क्रिस्पर (CRISPR) प्रोटीन है, जो जीन संपादन करते समय चमकता है।
  • यह प्रकाश इसलिए उत्सर्जित करता है क्योंकि इसे गहरे समुद्र में पाई जाने वाली झींगा से प्राप्त 'नैनो-ल्यूसीफेरेज' (Nano-luciferase) अंशों के साथ संयुग्मित किया गया है। जब Cas9 प्रोटीन सही ढंग से मुड़ता है, तब ये अंश पुनः युग्मित हो जाते हैं और प्रकाश उत्सर्जित करते हैं।

Explore Related Content

Discover more articles, videos, and terms related to this topic

Title is required. Maximum 500 characters.

Search Notes

Filter Notes

Loading your notes...
Searching your notes...
Loading more notes...
You've reached the end of your notes

No notes yet

Create your first note to get started.

No notes found

Try adjusting your search criteria or clear the search.

Saving...
Saved

Please select a subject.

Referenced Articles

linked

No references added yet

Subscribe for Premium Features