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भारत में भूमि पंजीकरण प्रणाली (LAND REGISTRATION SYSTEM IN INDIA)

23 Dec 2025
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने समीउल्लाह बनाम बिहार राज्य मामले में देश की भूमि पंजीकरण और स्वामित्व प्रणाली में मूलभूत सुधार करने की मांग की है। 

के. गोपी बनाम सब रजिस्ट्रार केस (2025)

  • उच्चतम न्यायालय ने माना कि पंजीकरण अधिनियम, 1908 उप-पंजीयकों को स्वामित्व अधिकार की जांच करने का प्राधिकार प्रदान नहीं करता है; उनकी भूमिका केवल प्रशासनिक यानी लिपिकवर्गीय (Ministerial) है। उनके लिए एकमात्र अधिदेश यह सत्यापित करना है कि कागजी कार्रवाई सही है और पक्षों ने स्वेच्छा से इस पर हस्ताक्षर किए हैं। 

 

अन्य संबंधित तथ्य 

  • उच्चतम न्यायालय ने बिहार के उस नियम को निरस्त कर दिया, जिसमें संपत्ति पंजीकरण के लिए 'दाखिल-खारिज' या 'नामांतरण (Mutation) प्रमाण अनिवार्य था। साथ ही, यह पुनः स्पष्ट किया कि पंजीकरण में केवल लेन-देन को दर्ज किया जाता है, स्वामित्व को नहीं।
    • न्यायालय ने दोहराया कि पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत दस्तावेज पंजीकरण में केवल लेन-देन को दर्ज किया जाता है, जबकि दाखिल-खारिज (राजस्व अभिलेखों को अद्यतन करना) एक अलग प्रक्रिया है, जो स्वामित्व प्रदान नहीं करती है। 
  • न्यायालय ने भारत में पुराने भूमि अभिलेखों द्वारा निर्मित "नौकरशाही के चक्र" की आलोचना की। साथ ही, स्पष्ट स्वामित्व स्थापित करने के लिए आधुनिक, डिजिटल एवं निर्णायक स्वामित्व हेतु राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास करने का सुझाव दिया।

भारत में भूमि पंजीकरण प्रणाली

  • भूमि संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत शामिल "राज्य सूची का विषय" है और विलेखों या दस्तावेजों का पंजीकरण समवर्ती सूची का विषय है।

भारत में मौजूदा भूमि पंजीकरण प्रणाली से जुड़ी समस्याएं

  • अप्रचलित कानून: भारत में भूमि पंजीकरण और संपत्ति लेन-देन प्रणाली अभी भी औपनिवेशिक युग की विधियों, जैसे- संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882, स्टाम्प अधिनियम 1899 और पंजीकरण अधिनियम 1908 द्वारा शासित है।
  • कोई निर्णायक स्वामित्व नहीं: पंजीकरण अधिनियम के तहत विक्रय विलेख का पंजीकरण स्वामित्व की गारंटी नहीं देता है, बल्कि यह केवल लेन-देन के एक सार्वजनिक अभिलेख के रूप में कार्य करता है। इस प्रकार, यह केवल स्वामित्व का अनुमानित (presumptive) प्रमाण प्रदान करता है, निर्णायक (conclusive) नहीं।
  • मुकदमेबाजी का भार : फर्जी और धोखाधड़ी वाले संपत्ति दस्तावेज, भूमि अतिक्रमण, सत्यापन में देरी, पंजीकरण के माध्यम से अनुमानित स्वामित्व की प्रणाली और खंडित राज्य-स्तरीय प्रक्रियाओं के कारण 66% दीवानी मुकदमेबाजी उत्पन्न होती है।
  • प्रशासनिक समस्याएं: उप-पंजीयक कार्यालयों में सत्यापन, प्रमाणीकरण और रिकॉर्डिंग के लिए क्रेता, विक्रेता एवं दो गवाहों की भौतिक उपस्थिति भूमि पंजीकरण को जटिल व समयसाध्य बना देती है।
    • इसके अलावा, चूंकि भूमि राज्य सूची का विषय है, इसलिए पंजीकरण प्रक्रियाएं राज्यों में अलग-अलग होती हैं। इसके परिणामस्वरूप, विखंडन और एकरूपता की कमी होती है।
  • अधूरा डिजिटलीकरण: DILRMP और NGDRS जैसे कार्यक्रम अभिलेखों को डिजिटल तो करते हैं, लेकिन ये दोषपूर्ण व अस्पष्ट स्वामित्व को ठीक नहीं करते हैं।
    • DILRMP: डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम। 
    • NGDRS: राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज पंजीकरण प्रणाली।

भारत में भूमि अभिलेख प्रणाली में सुधार के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं:

  • DILRMP (डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम): इसका उद्देश्य वर्तमान की 'अनुमानित' (presumptive) भू-स्वामित्व प्रणाली को एक 'डिजिटल निर्णायक' (conclusive) भू-स्वामित्व प्रणाली में परिवर्तित करना है।
  • DILRMP के तहत शुरू की गई पहलें
    • विशिष्ट भू-खंड पहचान संख्या (Unique Land Parcel Identification Number:ULPIN) या भू-आधार: यह एक 14 अंक वाली अक्षरांकीय (Alphanumeric) पहचान संख्या है। यह प्रत्येक भूखंड के अक्षांश और देशांतर निर्देशांकों के आधार पर सृजित की जाती है। इसका उद्देश्य स्थावर संपदा (रियल एस्टेट) के लेन-देन को सुव्यवस्थित करना और संपत्ति विवादों को समाधान करना है।
    • NGDRS (राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज पंजीकरण प्रणाली) या ई-पंजीकरण: यह नागरिकों को विलेख की ऑनलाइन प्रविष्टि, ऑनलाइन भुगतान, ऑनलाइन अपॉइंटमेंट, ऑनलाइन प्रवेश, दस्तावेज खोज और प्रमाणित प्रति प्राप्त करने की सुविधा देकर सशक्त बनाता है।
    • ई-कोर्ट को भूमि अभिलेख/ पंजीकरण डेटाबेस के साथ लिंक करना: यह न्यायालयों को प्रामाणिक और प्रत्यक्ष जानकारी उपलब्ध कराता है। इससे मामलों का त्वरित निपटान होता है और भूमि विवादों में कमी आती है।
    • भूमि अभिलेखों का लिप्यंतरण (Transliteration): इसके तहत भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए, 'अधिकार अभिलेखों' (Records of Rights) को स्थानीय भाषा से संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध 22 भाषाओं में से किसी भी भाषा में अनुवादित/ लिप्यंतरित किया जाता है। 
  • विभिन्न राज्यों की डिजिटल भूमि अभिलेख प्रणालियां
    • धरणी पोर्टल/ भूभारती पोर्टल, तेलंगाना: भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण और संपत्ति लेन-देन को सुव्यवस्थित करके भूमि प्रशासन का आधुनिकीकरण करना।
    • कावेरी पोर्टल, कर्नाटक: भूमि पंजीकरण में सुधार करना।
    • पश्चिम बंगाल: भूमि और संपत्ति अभिलेखों तक आसान पहुंच प्रदान करना।

उच्चतम न्यायालय का प्रणालीगत सुधारों के लिए आह्वान: निर्णायक स्वामित्व और तकनीक

  • निर्णायक स्वामित्व: न्यायालय ने भारतीय विधि आयोग को राज्यों की भागीदारी के साथ एक समिति बनाने का निर्देश दिया है। यह समिति संपत्ति पंजीकरण व्यवस्था की जांच करेगी और इसे निर्णायक स्वामित्व प्रणाली के साथ एकीकृत करेगी।
  • पुरानी  विधियों का पुनर्गठन: विधि आयोग को संपत्ति के लेन-देन को शासित करने वाली औपनिवेशिक युग की विधियों, जैसे- संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम (1882)पंजीकरण अधिनियम (1908), और स्टाम्प अधिनियम (1899) को आधुनिक तकनीकों के अनुसार पुनर्संरचित करने के लिए एक रिपोर्ट तैयार करनी होगी। 
  • समन्वय: पंजीकरण को वास्तविक समय के भूमि-धारण अभिलेखों के साथ जोड़ना होगा। साथ ही, यह सुनिश्चित करना होगा कि दाखिल-खारिज अभिलेख, सर्वेक्षण तथा निपटान कार्य समय पर और सटीक रीति से पूर्ण हों। इससे पंजीकरण वास्तविक भूमि-धारण को दर्शा सकेंगे। 
  • विनियामक प्राधिकरण: पंजीकरण कार्यालयों के लिए एक स्थायी विनियामक निकाय स्थापित करना होगा। इससे संस्थागत स्मृति का निर्माण हो सकेगा और पंजीकरण प्रतिष्ठान के वास्तविक समय के मूल्यांकन एवं उन्नयन को सक्षम बनाया जा सकेगा।
  • ब्लॉकचेन तकनीक आधारित भू-स्वामित्व
    • यह एक सुरक्षित, पारदर्शी और सरल भूमि पंजीकरण प्रणाली बना सकती है। इसमें प्रत्येक अभिलेख एक क्रिप्टोग्राफिक रूप से जुड़े बहीखाते (ledger) का हिस्सा बन जाता है। यदि पुराने अभिलेखों को बदलने का प्रयास किया जाता है, तो आगे के सभी कूट बदल जाएंगे और छेड़छाड़ का पता लगाया जा सकेगा। इस प्रकार, यह स्वामित्व अभिलेखों की समग्रता को मजबूत करता है।
      • ब्लॉकचेन एक विकेंद्रीकृत व अपरिवर्तनीय डिजिटल बहीखाता है। यह कंप्यूटरों के नेटवर्क (नोड्स) पर लेन-देन को सुरक्षित रूप से रिकॉर्ड करता है। 
      • यह डेटा को "ब्लॉक्स" में व्यवस्थित करता है, जो "श्रृंखला" में क्रिप्टोग्राफिक रूप से जुड़े होते हैं। इससे रिकॉर्ड्स बैंक या सरकार जैसे केंद्रीय प्राधिकरण के बिना पारदर्शी एवं सत्यापन योग्य बन जाते हैं।
    • यह भू-संपत्ति के मानचित्रों (Cadastral Maps), सर्वेक्षण डेटा और राजस्व अभिलेखों को एक एकल, सत्यापन योग्य और सुलभ डिजिटल ढांचे में एकीकृत कर सकती है। इससे धोखाधड़ी कम होगी, ट्रेस करने की क्षमता में सुधार होगा और भू-स्वामित्व में जनता का विश्वास बढ़ेगा।

निष्कर्ष

निष्कर्षात्मक स्वामित्व (Conclusive Titling), समन्वित विधियों, सटीक भूमि अभिलेखों तथा ब्लॉकचेन जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों पर आधारित एक भविष्य-उन्मुख भूमि शासन संरचना विवादों को उल्लेखनीय रूप से कम कर सकती है। इसके साथ ही भूमि का लेन-देन आसान होगा और सार्वजनिक व्यवस्था पर लोगों का विश्वास मजबूत होगा। ऐसे सुधार न केवल संपत्ति अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं, बल्कि आर्थिक वृद्धि, शहरी नियोजन और सामाजिक न्याय के प्रेरक के रूप में भूमि की क्षमता के विकास के लिए भी अनिवार्य हैं।

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