सुर्ख़ियों में क्यों?
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने बीज विधेयक, 2025 का प्रारूप जारी किया।
प्रारूप बीज विधेयक, 2025 के बारे में
- यह विधेयक कानून बनने के बाद बीज अधिनियम, 1966 तथा बीज (नियंत्रण) आदेश, 1983 को प्रतिस्थापित करेगा।
- उद्देश्य: यह प्रस्तावित कानून बाजार में उपलब्ध बीजों और रोपण सामग्री की गुणवत्ता को विनियमित करेगा।
विधेयक के मुख्य प्रावधान
- अनिवार्य पंजीकरण: किसानों द्वारा संरक्षित किस्मों तथा केवल निर्यात हेतु उत्पादित बीजों को छोड़कर, कोई भी बीज बिना पंजीकरण के बिक्री हेतु उपलब्ध नहीं कराया जा सकेगा।
- साथी (SATHI) पोर्टल पर अनिवार्य पंजीकरण: यह कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) के सहयोग से विकसित एक राष्ट्रीय पोर्टल है। यह पोर्टल बीजों के विकास से लेकर किसान तक पहुँचने तक पूर्ण निगरानी सुनिश्चित करता है।
- बीजों की बिक्री का विनियमन: बीज की सभी किस्मों को भारतीय न्यूनतम बीज प्रमाणन मानकों के अनुरूप होना होगा।
- बीज समितियां: केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा क्रमशः केंद्रीय बीज समिति और राज्य बीज समितियों का गठन किया जाएगा।
- केंद्रीय बीज समिति बीज कार्यक्रम, योजना-निर्माण, बीज विकास, उत्पादन, भंडारण, प्रसंस्करण, निर्यात और आयात आदि से संबंधित विषयों पर परामर्श देगी।
- पंजीकरण उप-समितियां: ये उप-समितियां नए बीज के विकास के दावों की जांच के बाद बीजों की किस्मों या प्रकारों के पंजीकरण की अनुशंसा करेंगी।
- बीज किस्मों का राष्ट्रीय रजिस्टर: यह सभी प्रकार और किस्मों के बीजों का पंजीकरण प्लेटफार्म होगा। यह रजिस्ट्रार के नियंत्रण एवं प्रबंधन में रहेगा।
- किसानों के अधिकारों का संरक्षण: किसानों को बिना ब्रांड पंजीकरण के अपने संरक्षित फसल बीज (जैसे पारंपरिक किस्में) को बचाने, उपयोग करने, विनिमय करने या बेचने का अधिकार रहेगा; हालांकि वे इन्हें किसी ब्रांड नाम से नहीं बेच सकेंगे।
- केंद्रीय एवं राज्य बीज परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना: इन प्रयोगशालाओं में बीज विश्लेषक और निरीक्षक नियुक्त किए जाएंगे।
बीज अधिनियम, 1966 और प्रारूप बीज विधेयक, 2025 का तुलनात्मक विश्लेषण | ||
विषय-क्षेत्र | बीज अधिनियम, 1966 | प्रारूप बीज विधेयक, 2025 |
विनियमन का विस्तार | केवल अधिसूचित बीज-किस्मों तक सीमित, जिससे बीज बाजार का एक बड़ा हिस्सा विनियमन के दायरे बाहर रह गया। | व्यावसायिक रूप से बिकने वाली बीज की सभी किस्मों को विनियमित करता है, जिससे समान विनियामक व्यवस्था सुनिश्चित होगी। |
बीज का पंजीकरण | पंजीकरण सरकारी अधिसूचना पर निर्भर था और प्रत्येक किस्म का पंजीकरण आवश्यक नहीं था। | व्यापार से पहले बीज की प्रत्येक किस्म का पंजीकरण अनिवार्य है; पुरानी अधिसूचित किस्मों को पंजीकृत माना जाएगा। |
गुणवत्ता आश्वासन तंत्र | अंकुरण और शुद्धता के लिए मूलभूत मानक, बीज परीक्षण की सिमित संरचना। | उच्च गुणवत्ता मानक, डिजिटल लेबलिंग, QR के माध्यम से निगरानी और मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं की अधिक संख्या। |
कृषक अधिकार | कम सुरक्षा; किसानों को उनकी बीज किस्मों के लिए प्रतिपूर्ति करने का कोई निर्धारित तरीका नहीं था। | किसान खुद के द्वारा विकसित बीज किस्म को सुरक्षित रख सकते हैं, आदान-प्रदान कर सकते हैं और बिक्री कर सकते हैं। |
बीज बाजार की निगरानी की ज़िम्मेदारी | कम निगरानी के कारण बीज की कम किस्मों का ही अधिक प्रसार हो पाया। | पंजीकरण, लेबलिंग और निरंतर ट्रेस करने जैसी शर्तों के माध्यम से निगरानी व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया गया है। |
जुर्माना | जुर्माना कम और अप्रासंगिक था। | त्रिस्तरीय दंड व्यवस्था (मामूली, सामान्य और उच्च) जिसमें उच्च जुर्माने का प्रावधान होगा। |
आधुनिक प्रौद्योगिकियों के अनुरूप | हाइब्रिड बीज, GM बीज या जैव-प्रौद्योगिकी में प्रगति को अधिक प्राथमिकता नहीं दी गई थी। | इसमें इसमें जैव प्रौद्योगिकी मानदंडों, विनियमित बीज आयात और आधुनिक प्रौद्योगिकियों के लिए निरीक्षण तंत्र को शामिल किया गया है। |
भारत के बीज क्षेत्रक की स्थिति
- भारत विश्व का पांचवां सबसे बड़ा बीज उद्योग/बाजार है (संयुक्त राज्य अमेरिका सबसे बड़ा बीज उद्योग है)।
- वर्ष 2023–24 में भारत से लगभग 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बीजों का निर्यात किया गया। वैश्विक बीज निर्यात बाजार 15 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य का है (भारत की हिस्सेदारी 1% से भी कम है)।
- भारत का बीज कार्यक्रम चरणबद्ध तरीके से बीज गुणन (seed multiplication) हेतु सीमित "पीढ़ीगत प्रणाली" का अनुपालन करता है। बीज गुणन वास्तव में किसी एक बीज के बोने और फसल तैयार होने पर उससे उत्पन्न होने वाले बीजों की संख्या है।
- तीन पीढ़ी प्रणाली: प्रजनक (ब्रीडर) बीज, आधार बीज और प्रमाणित बीज।
बीजों की तीन पीढ़ियां | |
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बीज क्षेत्रक की वर्तमान चुनौतियां

- निम्न बीज प्रतिस्थापन दर (SRR): भारत में खाद्यान्न और तिलहन की कई मुक्त परागण वाली फसलों की खेती होती है। इनमें प्रमाणित या गुणवत्ता वाले बीज का अनुपात यानी बीज प्रतिस्थापन दर 25%–30% से भी कम है।
- बीज बाजार में एकाधिकार: बहुराष्ट्रीय कंपनियों का (जैसे बेयर, मोनसेंटो) बीज बाजार पर वर्चस्व है, जिससे स्थानीय बीजों की उपलब्धता सीमित हो जाती है।
- बीज उत्पादन में बाधाएं: भारत की अत्यधिक विविधतापूर्ण फसल प्रणाली की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु पर्याप्त और समय पर प्रमाणित बीज का उत्पादन सुनिश्चित करना बड़ी चुनौती है।
- बीज की उपलब्धता: किसान मुख्यतः स्वयं द्वारा संरक्षित बीजों की बुआई करते हैं; लगभग 65% किसान अपने पास संरक्षित या आपस में वितरित बीजों पर निर्भर हैं।
- निम्न गुणवत्ता वाले बीज: खराब गुणवत्ता के बीजों से अंकुरण दर कम होती है और फसल का उत्पादन संतोषजनक नहीं रहता।
- अन्य चुनौतियां: फसल कटाई के बाद बीज प्रबंधन (भंडारण, प्रसंस्करण और वितरण) में दक्षता का अभाव भी बीज की गुणवत्ता और उपलब्धता को सीमित करता है।
प्रमुख पहलें
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आगे की राह
- जैव-प्रौद्योगिकी में नवाचार को प्रोत्साहन देना: यह उच्च उपज देने वाली, तनाव-सहिष्णु और पोषक तत्वों से समृद्ध बीज किस्मों के विकास के लिए आवश्यक है, ताकि जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों का समाधान किया जा सके।
- उदाहरण के लिए: ICAR द्वारा हाल ही में धान की दो जीनोम-संपादित किस्में विकसित की गई है:
- DRR धान 100 (कमला)-सांबा महसूरी/मंसूरी पर आधारित, तथा
- पूसा DST धान 1 (MTU 1010 पर आधारित)।
- उदाहरण के लिए: ICAR द्वारा हाल ही में धान की दो जीनोम-संपादित किस्में विकसित की गई है:
- सामुदायिक बीज बैंकों की स्थापना: ये बैंक स्थानीय बीज किस्मों के संरक्षण और संवर्धन में सहायक सिद्ध होंगे।
- बीज हब की पहचान: ये हब बीज उत्पादन करके विशिष्ट क्षेत्रों में किसानों को आपूर्ति कर सकेंगे।
- यह तरीका न केवल बीज परिवहन की लागत, बल्कि किसानों के लिए बीज आपूर्ति की कुल लागत में भी को कम करता है।
- बीज प्रतिस्थापन दर (SRR) में वृद्धि: समय पर बीज प्रतिस्थापन सुनिश्चित करना चाहिए, विशेष रूप से क्षेत्र की महत्वपूर्ण किस्मों को शामिल करके SRR को क्रमिक रूप से बढ़ाना चाहिए।
- बीज गुणवत्ता आश्वासन में सुधार करना: बीज परीक्षण प्रयोगशालाओं में सुधार, डिजिटल माध्यम से बीज पर निगरानी रखने को बढ़ावा देना तथा बीज किस्म की उच्च अंकुरण क्षमता और शुद्धता सुनिश्चित करने हेतु सख्त गुणवत्ता मानकों को लागू करना चाहिए।
- अन्य उपाय: फसल कटाई के बाद बीजों के प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षित भंडारण सुविधाओं की स्थापना करनी चाहिए, आदि।
निष्कर्ष
प्रारूप बीज विधेयक, 2025 का उद्देश्य गुणवत्ता मानकों को सुदृढ़ करके, किसानों को किफायती प्रमाणित बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करके तथा नवाचार को प्रोत्साहित करके भारत की बीज प्रबंधन प्रणाली को मजबूत बनाना है। बीज विनियमन और उपलब्धता में व्याप्त दीर्घकालिक कमियों को दूर करके यह विधेयक कृषि उत्पादकता बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन अनुकूल कृषि क्षेत्रक के निर्माण में सहायक हो सकता है।