भारत ने जलवायु न्याय, समानता और कार्यान्वयन पर जोर देते हुए विकसित देशों के कानूनी वित्तीय दायित्वों, न्यायसंगत संक्रमण, प्रौद्योगिकी तक पहुंच और संरक्षणवादी व्यापार उपायों को अस्वीकार करने का आह्वान किया।
In Summary
सुर्खियों में क्यों?
बेलेम में आयोजित COP30 में भारत की वार्ताकार रणनीति का केंद्र बिंदु मुख्य रूप से जलवायु न्याय के कार्यान्वयन और उसे व्यवहार में लाने पर रहा।
COP में प्रमुख विकासशील देशों के वार्ता समूह
समूह
सदस्य और संरचना
G77
विकासशील देशों का सबसे बड़ा गठबंधन। इसके अब 134 सदस्य हैं।
LMDC (समान विचारधारा वाले विकासशील देश/लाइक-माइंडेड डेवलपिंग कंट्रीज)
G77 के भीतर अधिक गंभीर समूह। इसमें भारत, चीन, बोलीविया, क्यूबा, मिस्र, ईरान जैसे देश शामिल हैं।
बेसिक/BASIC
चार बड़ी और तीव्र संवृद्धि वाली अर्थव्यवस्थाओं का गठबंधन। ये हैं; ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन।
मुख्य उद्देश्य
G77+चीन, BASIC (BASIC: ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, भारत, चीन) और LMDC (Like-Minded Developing Countries) समूहों के माध्यम से प्रस्तुत भारत की रणनीति निम्नलिखित गैर-समझौतावादी सिद्धांतों पर आधारित रही:
COP 30 में भारत की स्थिति
मुख्य क्षेत्र
भारत का रुख और वक्तव्य
समता और जलवायु न्याय
इस बात को पुनः दोहराया गया कि समता तथा "समान किंतु विभेदित उत्तरदायित्व एवं संबंधित क्षमताएं" (CBDR-RC) वैश्विक जलवायु व्यवस्था के केंद्रीय आधार स्तंभ बने हुए हैं।
इस बात को लेकर सावधान किया गया कि शमन का भार उन देशों पर नहीं डाला जाना चाहिए जिनकी "समस्या उत्पन्न करने में सबसे कम जिम्मेदारी" रही है।
एक कानूनी दायित्व के रूप में जलवायु वित्त
इस बात पर प्रकाश डाला गया कि अनुच्छेद 9.1 का कार्यान्वयन विकसित देशों के लिए वित्त उपलब्ध कराने का एक कानूनी दायित्व है।
यह कहा गया कि वित्तपोषण अब भी उच्चतर महत्वाकांक्षा के मार्ग में "मुख्य बाधा" बना हुआ है। साथ ही, जलवायु वित्त की एक स्पष्ट और सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा की मांग की गई।
अनुकूलन और वैश्विक लक्ष्य
यह घोषित किया गया कि COP30 को "अनुकूलन का CoP" होना चाहिए। वैश्विक अनुकूलन लक्ष्य (GGA) पर हुई प्रगति का स्वागत किया और राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप लचीलापन बनाए रखते हुए न्यूनतम संकेतकों के एक पैकेज का समर्थन किया गया।
न्यायोचित संक्रमण तंत्र (Just Transition Mechanism)
न्यायोचित संक्रमण तंत्र की स्थापना का स्वागत किया गया और इसे समता को व्यवहार में लाने की दिशा में एक "महत्वपूर्ण उपलब्धि" बताया गया।
इस बात पर बल दिया गया कि संक्रमण से जुड़े कार्य प्रोग्रामों का परिणाम जन-केंद्रित "कार्य-उन्मुख संस्थागत व्यवस्थाओं" के रूप में सामने आना चाहिए।
शमन और निवल शून्य दायित्व
इस बात पर बल दिया गया कि विकसित देशों को न्यायोचित कार्बन स्पेस को सुरक्षित रखने के लिए "निवल-शून्य लक्ष्य पहले प्राप्त करना चाहिए।"
विकसित देशों से नकारात्मक उत्सर्जन प्रौद्योगिकियों में अधिक निवेश करने का आह्वान किया गया।
एकतरफा व्यापारिक उपाय
"एकतरफा व्यापार-प्रतिबंधात्मक जलवायु उपायों" को अस्वीकार किए जाने की मांग की गई, क्योंकि ये संरक्षणवाद के उपकरण के रूप में कार्य करते हैं।
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और पहुंच
यह स्पष्ट किया गया कि "प्रौद्योगिकी तक पहुँच एक अधिकार है, सौदेबाजी का साधन नहीं"।
इस बात पर बल दिया गया कि बौद्धिक संपदा और बाज़ार संबंधी बाधाएं विकासशील देशों तक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में बाधक नहीं बननी चाहिए।
बहुपक्षवाद और कूटनीति
बहुपक्षवाद और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के प्रति अटूट समर्थन व्यक्त किया गया।
ब्राज़ीलियाई अध्यक्षता की सराहना की गई, जो "मुतिराओ की भावना" (समावेशन और संतुलन) में निहित नेतृत्व का प्रतीक है।