सुर्ख़ियों में क्यों?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की 'ग्लोबल TB रिपोर्ट' के अनुसार, भारत में TB के मामलों (प्रति वर्ष सामने आने वाले नए मामले) में 21% की कमी आई है।
अन्य संबंधित तथ्य
- इस रिपोर्ट के अनुसार, TB विश्व-भर में मृत्यु के शीर्ष 10 कारणों में से एक है। यह किसी एकल संक्रामक कारक से होने वाली मृत्यु का प्रमुख कारण है।
- रिपोर्ट के अन्य प्रमुख बिंदु
- वैश्विक स्थिति:
- 2024 में इस बीमारी से 1.23 मिलियन (12.3 लाख) लोगों की मृत्यु हुई।
- वैश्विक स्तर पर TB के मामलों की दर: 2015-2024 के बीच 12% की निवल कमी आई।
- वैश्विक स्तर पर TB मृत्यु दर: 2015-2024 के बीच 29% की निवल कमी आई।
- भारत की स्थिति: भारत में TB मृत्यु दर 2015 में 28 प्रति लाख जनसंख्या से घटकर 2024 में 21 प्रति लाख जनसंख्या हो गई है।
- वैश्विक भार: विश्व-भर में TB के रोगियों की सर्वाधिक संख्या भारत में है (लगभग 25% TB रोगी)।
- वर्ष 2024 में 'मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंट' (MDR) या रिफैम्पिसिन-प्रतिरोधी (RR- TB) के अनुमानित वैश्विक मामलों में भारत की हिस्सेदारी 32% से अधिक थी।
- वैश्विक स्थिति:
- एचआईवी (HIV) और बिना एचआईवी वाले लोगों में टीबी से होने वाली 25% मौतें अकेले भारत में होती हैं।
तपेदिक या क्षय रोग (TB) के बारे में
- यह 'माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस' नामक बैक्टीरिया (जीवाणु) से होने वाला एक संक्रामक वायु-जनित रोग है। यह निदानात्मक और उपचारात्मक रोग है।
- संक्रमण के स्थान के आधार पर प्रकार:
- पल्मोनरी (फुफ्फुसीय) टीबी: यह टीबी का सबसे सामान्य रूप है। यह मुख्यतः फेफड़ों को प्रभावित करती है। यह संक्रामक होती है और खाँसने या छींकने से निकलने वाली बूंदों के माध्यम से फैलती है।
- एक्स्ट्रा-पल्मोनरी (फुफ्फुसेतर) टीबी: यह फेफड़ों के अलावा अन्य अंगों, जैसे कि- लसीका ग्रंथियाँ, हड्डियाँ, मस्तिष्क, गुर्दे को प्रभावित करती है। यह अपेक्षाकृत कम संक्रामक होती है और सामान्यतः फेफड़ों से शरीर के अन्य भागों में फैलती है।
- स्पाइनल टीबी: (पॉट रोग): यह रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करती है। इससे तेज पीठ दर्द और चलने-फिरने में समस्या हो सकती है।
- दवाओं के प्रति प्रतिक्रिया के आधार पर प्रकार:
- ड्रग-सेंसिटिव टीबी (औषधि-संवेदनशील): TB का यह रूप मानक 'फर्स्ट-लाइन' एंटी-टीबी दवाओं, जैसे कि आइसोनियाज़िड (Isoniazid) और रिफैम्पिसिन (Rifampicin) से ठीक हो जाती है।
- ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी (औषधि-प्रतिरोधी): टीबी के कुछ रूप मानक/सामान्य दवाओं से ठीक नहीं होते हैं।
- मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट TB (MDR-TB): इस प्रकार की TB 'फर्स्ट-लाइन' की दो सबसे प्रभावी मानक दवाओं रिफैम्पिसिन और आइसोनियाज़िड के प्रति प्रतिरोधी होता है, अर्थात इनसे ठीक नहीं होता है।
- एक्सटेंसिवली ड्रग-रेसिस्टेंट TB (XDR-TB): इस प्रकार के TB के उपचार में सबसे अधिक प्रभावी दवाएं भी उपयोगी नहीं रह जाती हैं।
भारत में टीबी (क्षय रोग) नियंत्रण के प्रमुख कारक:
- प्रमुख सरकारी पहलें
- राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP): 2020 में संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (RNTCP) का नाम बदलकर NTEP किया गया। इसका लक्ष्य 2025 तक भारत से TB का उन्मूलन करना है।
- राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (2017-25): 2025 तक देश से TB का उन्मूलन करने के लिए रुपरेखा।
- प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान (PMTBMBA): इसे वर्ष 2022 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य टीबी रोगियों को अतिरिक्त सहायता प्रदान करना है।
- निक्षय पोषण योजना (NPY): इसकी शुरुआत स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2018 में की थी। इसके तहत प्रत्येक अधिसूचित क्षय रोग (टीबी) रोगी को पोषण संबंधी सहायता के लिए 1,000 रुपये प्रति माह की वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- अवसंरचनात्मक कमियों को दूर करना:
- सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना को मजबूत करना: NTEP के तहत TB निदान केंद्रों, माइक्रोस्कोपी प्रयोगशालाओं और उपचार केंद्रों का विस्तार करना।
- डिजिटल स्वास्थ्य और निगरानी प्रणाली: NTEP के तहत 'निक्षय पोर्टल' का शुभारंभ करना। यह वेब-आधारित रोगी प्रबंधन और निगरानी प्रणाली है।
- नई चिकित्सा/उपचारात्मक पद्धतियों की शुरुआत: BPaLM (बेडाक्विलाइन + प्रेटोमेनिड + लिनज़ोलिड + मोक्सीफ्लोक्सासिन) जैसी नए उपचार व्यवस्थाओं ने विशेषकर दवा-प्रतिरोधी टीबी के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव किया है।
- बेहतर निदान: NTEP के तहत 'यूनिवर्सल ड्रग ससेप्टिबिलिटी टेस्टिंग' (UDST) को लागू किया गया ताकि प्रत्येक पहचाने गए TB रोगी की दवा प्रतिरोध की जांच सुनिश्चित की जा सके।
- उन्नत प्रौद्योगिकियों का उपयोग: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और आणविक निदान तकनीकों {न्यूक्लिक एसिड एम्प्लीफिकेशन टेस्ट (NAAT) और होल-जीनोम सीक्वेंसिंग (WGS)} के उपयोग ने टीबी के मामलों का पहले ही पता लगाने और उनकी निगरानी को मजबूत किया है।
भारत में टीबी उन्मूलन की चुनौतियां
- निदानात्मक अंतराल (कमियां), विशेषकर दूर-दराज और ग्रामीण क्षेत्रों में: ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः उन्नत नैदानिक सुविधाओं की कमी होती है, जिससे निदान में देरी होती है या कुछ मामलों में बीमारी का पता नहीं चल पाता है। उदाहरण के लिए: कश्मीर की गुरेज घाटी में 1250 व्यक्तियों में से केवल 250 सक्रिय मामले पाए गए।
- डिजिटल विभाजन: इंडिया टीबी रिपोर्ट के अनुसार, कई परिधीय (निचले स्तर की) स्वास्थ्य इकाइयों में पर्याप्त कंप्यूटर अवसंरचना, विश्वसनीय इंटरनेट या डेटा एंट्री ऑपरेटरों की कमी है। यह 'निक्षय' (NIKSHAY) पोर्टल के उपयोग में बाधा डालते हैं।
- सामाजिक-आर्थिक विषमताएं: टीबी निर्धनों, कुपोषितों, प्रवासी मजदूरों, आदिवासी समुदायों और शहरी झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों को असमान रूप से प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए: एक अध्ययन के अनुसार, दिल्ली में 60% से अधिक प्रवासी श्रमिक बहुत ही नाजुक और दयनीय परिस्थितियों में रहते हैं।
- बढ़ता कुपोषण संकट: एक अध्ययन के अनुसार, भुखमरी से संबंधित कुपोषण TB के मामलों को छह से आठ गुना तक बढ़ा देता है।
- MDR-/RR-TB का उच्च बोझ: भारत में मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंट (MDR) और रिफैम्पिसिन रेजिस्टेंट (RR-TB) के मामलों की संख्या बहुत अधिक है। उदाहरण: भारत में विश्व स्तर पर अनुमानित MDR/RR-TB के 32% से अधिक मामले पाए जाते हैं।
- दवाओं की बार-बार कमी: टीबी उपचार में प्रयुक्त दवाओं की अनियमित आपूर्ति एक गंभीर समस्या है। उदाहरण: वर्ष 2023 में, महाराष्ट्र को एक माह में केवल 25,000 साइक्लोसेरिन (Cycloserine) टैबलेट प्राप्त हुईं, जबकि इनकी वास्तविक आवश्यकता लगभग तीन लाख टैबलेट थी।
- प्रणालीगत कारक: मानव संसाधन की कमी, टीबी स्वास्थ्य निरीक्षकों और परामर्शदाताओं (कौंसिलर्स) की कमी। उदाहरण के लिए: माइक्रोबायोलॉजिस्ट के पदों में 67% रिक्तियां हैं और लैब असिस्टेंट के पदों में 43% रिक्तियां हैं।
- पर्यावरण और रहन-सहन की दशाएं: भीड़भाड़, कम रोशनी और खराब वातायन (वेंटिलेशन) टीबी के प्रसार को बढ़ाते हैं। उदाहरण: मुंबई में खराब वेंटिलेशन वाली सघन आबादी के इलाकों में 8–10% निवासी टीबी से ग्रस्त पाए गए, जबकि बेहतर वेंटिलेशन वाले क्षेत्रों में यह आँकड़ा केवल 1% था।
- अन्य चुनौतियाँ: अन्य बीमारियों का उच्च बोझ, जैसे कि- मधुमेह, प्राकृतिक आपदाएं (बाढ़, सूखा), बड़ा व अनियमित निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रक आदि। उदाहरण: तमिलनाडु में एक अध्ययन में पाया गया कि 25.3% TB रोगियों को मधुमेह था, और 24.5% को प्री-डायबिटीज थी।
निष्कर्ष
भारत में टीबी उन्मूलन के लिए एक सतत दीर्घकालिक और बहु-क्षेत्रक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इसके अंतर्गत सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना को सुदृढ़ करना, दवाओं की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करना, स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों (गरीबी, कुपोषण, आवास) पर ध्यान देना और सामुदायिक जागरूकता को बढ़ावा देना शामिल है। भारत को टीबी मुक्त बनाने के लिए 'अंतिम छोर तक प्रदायगी', सामाजिक कलंक को कम करने, सुभेद्य आबादी की सुरक्षा करने और सरकारी विभागों के बीच समन्वय में सुधार करने पर केंद्रित एक जन-केंद्रित, प्रौद्योगिकी-संचालित और पोषण-केंद्रित रणनीति आवश्यक है।