इस संहिता के तहत मजदूरी और पारिश्रमिक से संबंधित 4 कानूनों को समेकित किया गया है।
- उद्देश्य: नियोक्ताओं के लिए मजदूरी संबंधी अनुपालन में सरलता और एकरूपता को बढ़ावा देते हुए श्रमिकों के अधिकारों को सुदृढ़ करना।
प्रमुख प्रावधान:
- सार्वभौमिक न्यूनतम मजदूरी: यह संहिता संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रकों के सभी कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन का सांविधिक अधिकार स्थापित करती है।
- मजदूरी निर्धारण के मानदंड: कौशल स्तर, भौगोलिक क्षेत्र और कार्य की परिस्थितियाँ जैसे कि तापमान, आर्द्रता या हानिकारक वातावरण।
- फ्लोर वेज (निम्नतम मजदूरी) की शुरुआत: न्यूनतम जीवन स्तर के आधार पर केंद्र सरकार द्वारा एक सांविधिक 'निम्नतम मजदूरी' निर्धारित की जाएगी। इसमें क्षेत्रीय आधार पर भिन्नता की गुंजाइश होगी।
- कोई भी राज्य इस स्तर से नीचे न्यूनतम मजदूरी निर्धारित नहीं कर सकता है। इससे देश भर में एकरूपता और पर्याप्तता सुनिश्चित होगी।
- मुआवजा: यह समय पर भुगतान अनिवार्य करता है और सामान्य दर से कम-से-कम 2 गुना (2x) ओवरटाइम मुआवजे के लिए प्रावधान करता है।
- सरलीकरण: यह संपूर्ण विधायी ढांचे में 'मजदूरी' और 'कर्मचारी' जैसी प्रमुख परिभाषाओं को मानकीकृत करता है। इससे अनुपालन संबंधी भ्रम कम होता है।
गुण / महत्व (Merits/significance) | चिंताएं / दोष (Concerns/Demerits) |
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