भारत में शहरी गतिशीलता की चुनौतियाँ
भारत में शहरी गतिशीलता में सुधार पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उम्मीद की जाती है कि 2047 तक शहरी भारत एक महत्वपूर्ण विकास इंजन के रूप में काम करेगा। साथ ही, 2060 तक 60% से अधिक आबादी ग्रामीण क्षेत्रों से स्थानांतरित हो जाएगी।
वर्तमान शहरी परिवहन संबंधी पहलें
- सरकार ने शहरी बस परिवहन को बढ़ाने के लिए पीएम ई-बस सेवा-भुगतान सुरक्षा तंत्र जैसी पहल शुरू की है।
- पीएम इलेक्ट्रिक ड्राइव रिवोल्यूशन इन इनोवेटिव व्हीकल एन्हांसमेंट (पीएम ई-ड्राइव) योजना का उद्देश्य नई ई-बसें, ई-रिक्शा, ई-ट्रक और ई-एम्बुलेंस खरीदना है।
- भारत को 2,00,000 शहरी बसों की आवश्यकता है, लेकिन केवल 35,000 ही चालू हैं, जो बुनियादी ढांचे में अंतर को उजागर करता है।
मेट्रो नेटवर्क विकास
- प्रयासों में अधिक धन आवंटन के साथ मेट्रो/ टियर-I शहरों में मेट्रो नेटवर्क का निर्माण करना शामिल है।
- भारत में केवल 37% शहरी निवासियों को सार्वजनिक परिवहन तक आसान पहुंच प्राप्त है, जबकि ब्राजील और चीन में यह संख्या 50% से अधिक है।
मेट्रो प्रणाली की चुनौतियाँ
- मेट्रो नेटवर्क का विकास महंगा और दीर्घकालिक है तथा कई मेट्रो प्रणालियों को अभी भी कुल लागत की वसूली नहीं हुई है।
- किराये के प्रति संवेदनशीलता एक मुद्दा है, क्योंकि किराये में वृद्धि से यात्रियों की संख्या में कमी आती है तथा लास्ट माइल कनेक्टिविटी की उच्च लागत चिंता का विषय है।
वैकल्पिक परिवहन समाधान
- सड़क आधारित सार्वजनिक परिवहन को बेहतर लास्ट माइल कनेक्टिविटी के लिए विकसित करने की आवश्यकता है। साथ ही, शहरी बस प्रणालियों के लिए बजट आवंटन में वृद्धि की आवश्यकता है।
- अनिश्चित रिटर्न के कारण निजी निवेश सीमित है तथा महंगी ई-बसों की ओर रुझान बढ़ता दिख रहा है।
- हालांकि, ट्राम और ट्रॉलीबस पर कम ही विचार किया जाता है, लेकिन वे वित्तीय स्थिरता और जलवायु लक्ष्यों के साथ संरेखण का वादा करते हैं।
परिवहन साधनों की वित्तीय व्यवहार्यता
- ट्रामों की सात दशकों में दीर्घावधि लाभप्रदता 45% है, जो उन्हें व्यवहार्य और स्केलेबल बनाती है।
- उच्च लागत के कारण ई-बसों में सात दशकों में 82% का कुल घाटा हुआ है।
- ट्रॉली बसों में न्यूनतम हानि होती है, लेकिन इनमें ट्रामों के बराबर लाभ नहीं होता।
निष्कर्ष और भविष्य की संभावनाएं
कोच्चि जैसे शहरों में ट्रामों की शुरूआत, शहरी गतिशीलता में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है, क्योंकि इससे भविष्य में परिवहन का अधिक टिकाऊ और आर्थिक रूप से व्यवहार्य मार्ग उपलब्ध होगा। साथ ही, इससे ई-बसों जैसी सब्सिडी वाली, कम लाभप्रद प्रणालियों पर निर्भरता पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा।