भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति अद्यतन
साक्षात्कार अंतर्दृष्टि
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) द्वारा नीतिगत रेपो दर में कटौती के निर्णय के बाद बाजार में व्याप्त असमंजस की स्थिति पर टिप्पणी की।
मुख्य निर्णय और तर्क
- नीतिगत रेपो दर में कमी: एमपीसी ने नीतिगत रेपो दर को 50 आधार अंकों से घटाकर 5.5% कर दिया, जो बाजार की 25 आधार अंकों की कटौती की अपेक्षाओं से अधिक है।
- रुख में परिवर्तन: एमपीसी ने "समायोज्य" रुख से "तटस्थ" रुख अपनाया, जिससे संकेत मिलता है कि सभी नीतिगत विकल्प खुले हैं, लेकिन तत्काल नीतिगत परिवर्तन का संकेत नहीं मिलता है।
सहायक कार्यवाहियाँ
- नकद आरक्षित अनुपात में कटौती: चार चरणों में 100 आधार अंकों की कटौती करके इसे 3% किया जाएगा, जिससे बाजार प्रणाली में 2.5 ट्रिलियन रुपये की तरलता आएगी।
- तरलता प्रबंधन: आरबीआई का लक्ष्य नीति संचरण को बढ़ाने के लिए भारित औसत कॉल दर (डब्ल्यूएसीआर) को तरलता गलियारे के निचले छोर के करीब रखना है।
दूरदर्शी दृष्टिकोण
मौद्रिक नीति भविष्योन्मुखी है, जिसमें मुद्रास्फीति के अनुमान महत्वपूर्ण हैं। एमपीसी को उम्मीद है कि इस वित्तीय वर्ष में औसत मुद्रास्फीति दर 3.7% रहेगी, जो दूसरी छमाही में 4% से थोड़ी अधिक होगी।
शोध निष्कर्ष और भविष्य के अनुमान
- तटस्थ दर: शोध से पता चलता है कि तटस्थता दर 1.4% और 1.9% के बीच है। वास्तविक रेपो दर को इस सीमा के भीतर बनाए रखने से आगे की कटौती की गुंजाइश सीमित हो जाती है, जब तक कि मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान में उल्लेखनीय गिरावट न आ जाए।
- नीतिगत दृष्टिकोण: जब तक मुद्रास्फीति के अनुमानों में कोई बड़ा बदलाव नहीं होता, तब तक मौद्रिक नीति से जुड़ी दरों में लंबे समय तक स्थिरता रहने की आशंका है।