भारत पर अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव
वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ शुरुआती बातचीत के प्रयासों के बावजूद, भारत को अमेरिका द्वारा वस्तुओं पर लगाए गए 25% अतिरिक्त टैरिफ के कारण गंभीर राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे कुल टैरिफ बढ़कर 50% हो जाएगा। इस कदम के राजनीतिक निहितार्थ हैं और इसका भारत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना तय है।
अमेरिका के साथ भारत की प्रारंभिक भागीदारी
- सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP) को वापस लिए जाने से सीख लेते हुए अमेरिकी वार्ताकारों के समक्ष एक दूरदर्शी व्यापार पैकेज प्रस्तुत किया।
- भू-राजनीतिक रुख में यूक्रेन संघर्ष की समाप्ति का स्वागत करना और चीन पर टैरिफ का समर्थन करना शामिल था।
भारत-अमेरिका संबंधों में चुनौतियाँ
- संबंध बदल गए हैं, साझा मूल्यों से लेकर नेतृत्व स्तर पर दंडात्मक उपायों तक का दौर शुरू हो गया है।
- भारत पर कथित तौर पर रूस के युद्ध प्रयासों को वित्तपोषित करने का आरोप लगाया गया है तथा उसे "टैरिफ किंग" करार दिया गया है।
- अमेरिका के वर्तमान रुख को भू-राजनीतिक चूक के रूप में देखा जा रहा है, जो दीर्घकालिक संबंधों को प्रभावित करेगा तथा रणनीतिक स्वायत्तता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करेगा।
व्यापक भू-राजनीतिक चिंताएँ
- संभावित अमेरिकी-चीन या अमेरिकी-रूस समझौतों सहित अमेरिकी विदेश नीति पर अनिश्चितता, भारत की भू-राजनीतिक सुरक्षा को मजबूत करती है।
- भारत में आतंकवाद को समर्थन देने के बावजूद पाकिस्तान का अमेरिका के साथ संपर्क भारत की चिंताओं को बढ़ाता है।
घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय रूख
- ऐसे मुद्दों में उच्च मूल्य वाले रक्षा प्लेटफार्मों, कृषि और डेयरी आयात वार्ता और आव्रजन प्रथाओं पर भारत का रुख शामिल है।
- टैरिफ के कारण अमेरिकी बाजार में भारतीय वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ने का खतरा है, जिससे संभवतः दशकों पुराना संपर्क टूट जाएगा।
भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया
- भारत को शांत रहना चाहिए, तनाव बढ़ाने से बचना चाहिए तथा आंतरिक सुधारों और पुनर्संतुलन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- भारत-अमेरिका संबंध महत्वपूर्ण हैं और अतीत के मतभेदों से उबर चुके हैं; साझा आधार तलाशने के लिए बातचीत जारी रहनी चाहिए।
निष्कर्षतः, यद्यपि वर्तमान समय भारत-अमेरिका संबंधों में अस्थिरता का दौर है, फिर भी रचनात्मक संवाद बनाए रखना तथा आंतरिक लचीलापन बनाए रखना सर्वोपरि है।