राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) संकट
राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) के भीतर चल रहा संकट अस्पष्ट भूमिकाओं और अपर्याप्त निगरानी के साथ एक निजी-सार्वजनिक भागीदारी (PPP) संस्थान शुरू करने से जुड़े जोखिमों को उजागर करता है।
वर्तमान मुद्दे
- वित्तीय अनियमितताओं और ऋण वितरण एवं वसूली में उचित सावधानी न बरतने के कारण मई में CEO को हटा दिया गया।
- ऋण देने की प्रथाओं में चुनौतियाँ, जिनमें अज्ञात प्रशिक्षण केंद्रों या आदतन चूककर्ताओं को ऋण देना शामिल है।
- यह संकट ऐसे समय में आया है जब भारत के कार्यबल में कौशल अंतर को ख़त्म करने की तत्काल आवश्यकता है, जो भारतीय उद्योग जगत के लिए एक सतत चिंता का विषय है।
NSDC की स्थापना और उद्देश्य
2008 में PPP मोड में एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में स्थापित, NSDC का उद्देश्य कौशल विकास कार्यक्रम चलाने वाले प्रशिक्षण संस्थानों को धन उपलब्ध कराने वाली एक वित्तीय संस्था के रूप में कार्य करना था।
- सरकार के पास 51% हिस्सेदारी है, जबकि Nasscom, CII, और FICCI जैसे संगठनों के पास शेष 49% हिस्सेदारी है।
- प्रारंभ में इसका उद्देश्य निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से रोजगार सुनिश्चित करना था।
चुनौतियाँ और विस्तार
2015 तक, NSDC का कार्यक्षेत्र विस्तृत हो गया तथा कौशल भारत मिशन के साथ नई चुनौतियां भी जुड़ गईं:
- विभिन्न प्रबंधकीय योग्यताओं की आवश्यकता वाली विभिन्न कौशल योजनाओं के लिए नोडल कार्यान्वयन एजेंसी बन गई।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) और राष्ट्रीय शिक्षुता संवर्धन योजना सहित चार मुख्य योजनाएं संचालित करता है।
- यह 2,500 से अधिक केन्द्रों की देखरेख करता है तथा इसमें 49,000 नियोक्ताओं को शामिल करता है। साथ ही, यह शिल्पकार प्रशिक्षण योजना जैसी अन्य प्रशिक्षण योजनाएं भी चलाता है।
परिचालन संबंधी चुनौतियाँ
लगभग 200 कर्मचारियों वाले संगठन के लिए, पूरे भारत में इतनी व्यापक जिम्मेदारियों का प्रबंधन करना चुनौतीपूर्ण है, जिसके कारण नियुक्ति रिकॉर्ड में गड़बड़ी होती है और प्रशिक्षण की गुणवत्ता को लेकर चिंताएं पैदा होती हैं।
- कौशल विकास-वितरण संरचना का व्यापक पुनर्गठन आवश्यक है। साथ ही, NSDC की भूमिका का पुनर्मूल्यांकन भी आवश्यक है।
- राष्ट्रीय शिक्षुता संवर्धन योजना निजी उद्यमों में कार्यस्थल पर प्रशिक्षण के माध्यम से अधिक मजबूत पीपीपी मॉडल की पेशकश कर सकती है।
निष्कर्ष
NSDC का अनुभव भारत में सरकारी कार्यों में निजी क्षेत्र को सीधे शामिल करने की जटिलताओं और सीमित सफलता को दर्शाता है।