बदलती वैश्विक आर्थिक आम सहमति
वर्तमान वैश्विक आर्थिक परिदृश्य एक महत्वपूर्ण रूपांतरण का साक्षी बन रहा है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन एक महाशक्ति संघर्ष में संलग्न हैं। यह संघर्ष राष्ट्रीय स्वार्थों को प्राथमिकता देने वाले नए भू-आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र (geo-economic ecosystems) को जन्म दे रहा है। यह बदलाव वैश्विक व्यापार प्रवाह, वित्तीय बाजारों और रणनीतिक गणनाओं को नया आकार दे रहा है, जो एक अधिक न्यायसंगत विश्व व्यवस्था स्थापित करने का अवसर भी प्रस्तुत करता है।
लोकलुभावन-निरंकुश शासक और आर्थिक प्रभाव
- राज्य-पूंजी का जटिल गठजोड़:
- लोकलुभावन-निरंकुश शासक राज्य और पूंजी के हितों को आपस में उलझा रहे हैं, जिससे अल्पाधिकार (oligopolies) और सांठ-गांठ वाले पूंजीपतियों (crony-capitalists) को बढ़ावा मिल रहा है।
- यह दृष्टिकोण राष्ट्रीय संपत्तियों को गिरवी रख रहा है और नीतियों को विकृत कर रहा है, जो राष्ट्रों के सामाजिक अनुबंध (social contract) को प्रभावित कर रहा है।
- अमेरिका का रणनीतिक पुनर्संयोजन:
- अमेरिका व्यापार और आपूर्ति मार्गों तथा डिजिटल-मुद्रा पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जो अक्सर भू-राजनीतिक तनावों की कीमत पर होता है।
- रूस को प्रबंधित करने के लिए यूरोप पर और पश्चिम एशिया को प्रबंधित करने के लिए इज़राइल पर दबाव डालना इसी पुनर्संयोजन को दर्शाता है।
बिग टेक और डिजिटल उपनिवेशवाद
- बिग टेक का प्रभाव:
- ये कंपनियाँ वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं और राजनीतिक परिणामों को नया आकार दे रही हैं और अक्सर लोकलुभावन-निरंकुश शासकों का समर्थन करती हैं।
- डिजिटल उपनिवेशवाद:
- 'एआई एक्शन प्लान' (AI Action Plan) और 'स्विफ्ट' (SWIFT) प्रणाली जैसे प्रयास राष्ट्रों की आर्थिक संप्रभुता को प्रभावित करते हैं।
विकासात्मक सहायता की वापसी
- सुभेद्य आबादी पर प्रभाव:
- जी-7 (G-7) द्वारा $44 बिलियन जैसी वित्तपोषण में कटौती, अफ्रीका और नेपाल जैसे क्षेत्रों में गरीबी और प्रवासन को बढ़ाती है।
- सहायता में कमी 'विश्व खाद्य कार्यक्रम' जैसे कार्यक्रमों को प्रभावित करती है, जिससे सामाजिक-राजनीतिक तनाव उत्पन्न होता है।
व्यापार और आर्थिक व्यवधान
- अमेरिका के टैरिफ और प्रतिबंध:
- अनेक राष्ट्रों पर लगाए गए टैरिफ (प्रशुल्क) और प्रतिबंध वैश्विक व्यापार तथा आर्थिक प्रवाह को बाधित करते हैं।
- ग्लोबल साउथ की प्रतिक्रिया:
- वे द्विपक्षीय संधियों और मुद्रा विकल्पों जैसे आर्थिक विकल्पों की तलाश कर रहे हैं।
भारत और ग्लोबल साउथ के लिए अवसर
- वर्तमान व्यवधान चीन और भारत जैसे देशों के लिए अवसर प्रस्तुत करते हैं। नव-उदारवादी वैश्वीकरण का ऐतिहासिक संदर्भ, जिसकी विशेषता अत्यधिक धन संकेंद्रण और सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ रही हैं, न्यायसंगत विकास के लिए एक 'नई आर्थिक संधि' (New Economic Deal) को आवश्यक बनाता है।
भारत के लिए प्रस्तावित रणनीतिक कार्रवाइयाँ
- अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सुधार:
- भारत को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में व्यापक सुधार की वकालत करनी चाहिए, ताकि ग्लोबल साउथ का अधिक निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके।
- घरेलू और विदेश नीति का पुनर्निर्धारण:
- द्विदलीय संबंधों को मजबूत करना और गुटनिरपेक्षता पर केंद्रित एक सारगर्भित विदेश नीति अपनाना।
- रणनीतिक आर्थिक प्रबंधन:
- महत्वपूर्ण क्षेत्रों में एक नियंत्रक भूमिका अपनाना और मजबूत एकाधिकार-विरोधी मानदंडों के माध्यम से अल्पाधिकारवादी नियंत्रण (oligopolistic control) को रोकना।
- भारत को उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में स्वयं को स्थापित करने के लिए इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। इसके लिए घरेलू नीतियों को संवैधानिक और राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ संरेखित करना होगा, ताकि समावेशी और सतत विकास सुनिश्चित हो सके।