रानी चेन्नम्मा की कहानी, कित्तूर की रानी जिन्होंने अंग्रेजों के सामने डटकर मुकाबला किया | Current Affairs | Vision IAS

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रानी चेन्नम्मा की कहानी, कित्तूर की रानी जिन्होंने अंग्रेजों के सामने डटकर मुकाबला किया

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कित्तूर रानी चेन्नम्मा उत्सव और उनकी विरासत

कित्तूर रानी चेन्नम्मा उत्सव, कर्नाटक के कित्तूर में रानी चेन्नम्मा की वीरता के सम्मान में आयोजित होने वाला तीन दिवसीय उत्सव है। यह उत्सव 23 अक्टूबर को शुरू हुआ, जो साहस और नारीवादी सशक्तिकरण के एक चिरस्थायी प्रतीक के रूप में उनके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है। उनकी कहानी कर्नाटक के इतिहास में गहराई से निहित है और राजनीतिक एवं सामाजिक आंदोलनों को प्रेरित करती रहती है।

रानी चेन्नम्मा के विद्रोह का ऐतिहासिक संदर्भ

  • जन्म और प्रारंभिक जीवन: 23 अक्टूबर 1778 को कर्नाटक के कागती में एक लिंगायत परिवार में जन्मी चेनम्मा का विवाह 15 वर्ष की आयु में कित्तूर के राजा मल्लासराज से हुआ।
  • ब्रिटिश विस्तार: इस समय के दौरान, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में स्थानीय प्रमुखों पर अपना नियंत्रण बढ़ा रही थी।
  • पति और पुत्र की मृत्यु: उनके पति की मृत्यु 1816 में हो गई, और उनके पुत्र शिवलिंगरुद्र की मृत्यु 1824 में हो गई, जिससे सिंहासन रिक्त हो गया।
  • शिवलिंगप्पा को गोद लेना: ब्रिटिश कब्जे को रोकने के लिए, चेनम्मा ने शिवलिंगप्पा को अपना उत्तराधिकारी अपनाया, जिसे अंग्रेजों ने अस्वीकार कर दिया, जिससे संघर्ष हुआ।

अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह

  • प्रारंभिक संघर्ष: अक्टूबर 1824 में, अंग्रेजों के जॉन थैकरी ने कित्तूर पर हमला किया। चेन्नम्मा ने बहादुरी से मुकाबला किया।
  • चेनम्मा की विजय: ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार जॉन थैकरी मारा गया और चेनम्मा ने युद्ध का पहला दौर जीत लिया।
  • ब्रिटिश प्रतिशोध: दिसंबर 1824 में, एक मज़बूत ब्रिटिश सेना ने कित्तूर पर हमला किया। किला गिर गया और चेन्नम्मा को पकड़ लिया गया और 1829 में उनकी मृत्यु तक कैद में रखा गया।

चेन्नम्मा की विरासत

  • रानी लक्ष्मीबाई से तुलना: चेनम्मा की कहानी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के समान है, हालांकि राष्ट्रीय इतिहास में उतनी प्रमुख नहीं है।
  • लिंगायत समुदाय: कर्नाटक के गठन और लिंगायत नेतृत्व ने चेन्नम्मा की कहानी को राष्ट्रीय मंच पर ला दिया।
  • सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व: चेन्नम्मा की बहादुरी को लोककथाओं, गीतों और लावणियों में गुरु सिद्धप्पा और संगोली रायन्ना जैसी हस्तियों के साथ मनाया जाता है।
  • सशक्तिकरण का प्रतीक: आज, वह कन्नड़ गौरव, लिंगायत समुदाय और नारीवादी सशक्तिकरण का प्रतीक हैं, जो महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करती हैं।
  • Tags :
  • Kittur Rani Chennamma
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