भगवान बिरसा मुंडा (BHAGWAN BIRSA MUNDA) | Current Affairs | Vision IAS
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भगवान बिरसा मुंडा (BHAGWAN BIRSA MUNDA)

23 Dec 2025
1 min

In Summary

जनजातीय गौरव दिवस बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है; वे एक आदिवासी नेता, धार्मिक सुधारक थे और उन्होंने भूमि अधिकारों और औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता के लिए मुंडा विद्रोह का नेतृत्व किया था।

In Summary

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नेता भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में देश भर में जनजातीय गौरव दिवस मनाया गया।

भगवान बिरसा मुंडा: एक परिचय 

  • प्रारंभिक जीवन:
    • उनका जन्म 1875 में वर्तमान झारखंड के खूंटी जिले के उलिहातू में हुआ था।
    • वे छोटानागपुर पठार क्षेत्र (वर्तमान झारखंड) की मुंडा जनजाति से संबंधित थे।
  • शिक्षाएं और विश्वास:
    • एकेश्वरवाद: बिरसा मुंडा ने 'बिरसाहित' नामक एक नए संप्रदाय की स्थापना की और केवल एक ईश्वर में विश्वास रखने का उपदेश दिया।
    • जनजातीय आस्था का पुनरुत्थान: उन्होंने ईसाई मिशनरियों के प्रभाव को खारिज कर दिया और पारंपरिक मुंडा धार्मिक प्रथाओं में सुधार करने का प्रयास किया।
  • नैतिक अनुशासन: उन्होंने स्वच्छता, कड़ी मेहनत, शराब से परहेज और व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में शुद्धता पर जोर दिया।
  • मृत्यु और विरासत:
    • 1900 में रांची जेल में हैजा के कारण उनका निधन हो गया।
    • उन्हें 'भगवान' के रूप में याद किया जाता है और उन्हें 'धरती आबा' (धरती के पिता) की उपाधि दी गई थी।
    • उनकी विरासत के सम्मान में, पूरे भारत में 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • औपनिवेशिक प्रतिरोध (अंग्रेजों के खिलाफ) में योगदान:
    • मुंडा विद्रोह: बिरसा मुंडा ने 1899 में 'उलगुलान' (महान हलचल/ विद्रोह) आंदोलन शुरू किया।
    • ब्रिटिश राज के खिलाफ नारा: "अबुआ राज सेतेरजाना, महारानी राज तुंडुजाना" (अर्थात: रानी का शासन समाप्त हो और हमारा शासन स्थापित हो)।

मुंडा विद्रोह के बारे में

विद्रोह के कारण

  • स्थायी बंदोबस्त अधिनियम, 1793: इसने पारंपरिक "खूंटकट्टी" व्यवस्था (संयुक्त भू-जोत/वनों को साफ करने वालों का कुल-आधारित सामूहिक स्वामित्व) को समाप्त कर दिया।
  • पारंपरिक प्रणालियों और संस्थानों का पतन: पारंपरिक कुल परिषदों के स्थान पर औपनिवेशिक न्यायालय स्थापित किए गए। इससे प्रथागत न्याय व्यवस्था कमजोर हो गई।
  • आर्थिक और सामाजिक शोषण:
    • बेथ बेगारी: जनजातियों पर थोपा गया जबरन या बिना वेतन का श्रम।
    • ऋण के लिए साहूकारों पर निर्भरता, जिसके कारण कर्ज और भूमि का छिनना शुरू हुआ।

विद्रोह के उद्देश्य

  • क्षेत्र में ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना और औपनिवेशिक उत्पीड़न को समाप्त करना।
  • मुंडा क्षेत्रों से "दिकुओं" (बाहरी लोगों) जैसे जमींदारों, साहूकारों और अन्य शोषकों को बाहर निकालना।
  • भूमि पर मुंडाओं के पारंपरिक नियंत्रण को बहाल करना और खूंटकट्टी प्रणाली को फिर से शुरू करना या संरक्षित करना।
  • ब्रिटिश कानूनों से मुक्त, "बिरसा राज" के तहत एक स्वतंत्र मुंडा राज्य की स्थापना करना।

विद्रोह के परिणाम

  • बेगारी प्रथा की समाप्ति: इसने संगठित जबरन श्रम को कम करने में मदद की।
  • छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम: इस कानून ने जनजातियों की भूमि को गैर-जनजातियों को हस्तांतरित करने पर रोक लगा दी और भूमि पर उनके स्वामित्व अधिकारों की रक्षा की।
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