सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, श्रम और रोजगार मंत्रालय ने संसद से पारित होने के लगभग 5 वर्ष बाद 4 श्रम संहिताओं (Labour Codes) को लागू कर दिया है। यह भारत के श्रम कानूनों में अब तक का सबसे बड़ा सुधार माना जा रहा है।
संबंधित अन्य जानकारी
- ये चार संहिताएं हैं:
- वेतन संहिता (Code on Wages),
- औद्योगिक संबंध संहिता (Industrial Relations Code),
- सामाजिक सुरक्षा संहिता (Code on Social Security), और
- व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता (Occupational Safety, Health and Working Conditions Code)
- ये संहिताएं 29 मौजूदा केंद्रीय श्रम कानूनों को समेकित करती हैं।
भारत का श्रम कानून ढांचा
- संवैधानिक प्रावधान
- समवर्ती क्षेत्राधिकार: श्रम 7वीं अनुसूची के तहत 'समवर्ती सूची' का विषय है। इसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य दोनों श्रम कानून बना सकते हैं।
- उद्देशिका: सामाजिक न्याय, व्यक्ति की गरिमा और प्रतिष्ठा की समानता पर बल देती है। ये सिद्धांत श्रम कल्याण और श्रम कानूनों के लिए मार्गदर्शक हैं।
- राज्य के नीति निदेशक तत्व
- अनुच्छेद 39: राज्य लैंगिक भेदभाव के बिना समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित करेगा।
- अनुच्छेद 41: राज्य काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी (बेरोजगारी), बुढ़ापा, बीमारी और निःशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा।
- अनुच्छेद 42: यह काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं तथा प्रसूति सहायता का उपबंध करता है।
- अनुच्छेद 43: राज्य सभी कामगारों/श्रमिकों के लिए निर्वाह मजदूरी, काम की दशाएं और शिष्ट जीवन स्तर सुनिश्चित करेगा।
- अनुच्छेद 43A: उद्योगों के प्रबंधन में भाग लेने का श्रमिकों का अधिकार।
- मौलिक अधिकार
- अनुच्छेद 16: लोक नियोजन के मामलों में अवसर की समानता।
- अनुच्छेद 19(1)(c): संघ या यूनियन बनाने के अधिकारों की रक्षा करता है।
- अनुच्छेद 23: मानव तस्करी और बलात श्रम (बंधुआ मजदूरी) को निषिद्ध करता है।
- अनुच्छेद 24: खतरनाक उद्योगों में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के रोजगार पर रोक लगाता है।
- श्रम बल: वर्ष 2024 में कुल श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 59.6% थी। इसमें 90% श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में कार्यरत थे।
- वर्ष 2023-24 में, भारत में 64.33 करोड़ लोग कार्यरत थे। इसमें महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 41.7% था।
- संस्थागत तंत्र
- श्रम और रोजगार मंत्रालय: श्रमिकों के हितों का संरक्षण और रक्षोपाय करना।
- श्रम ब्यूरो: औद्योगिक विवादों, बंदी, छंटनी, ले-ऑफ, वेतन/मजदूरी, आय अर्जन, काम और रहने की दशाओं पर जानकारी प्रकाशित करता है और विभिन्न श्रम अधिनियमों के कामकाज का मूल्यांकन करता है।
- मुख्य श्रम आयुक्त: औद्योगिक विवादों को रोकता है और उनका निपटारा करता है, श्रम कानूनों को लागू करता है और केंद्र सरकार के अधीन श्रमिकों के कल्याण को बढ़ावा देता है।
- कर्मचारी राज्य बीमा (ESI) योजना: यह योजना कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 के तहत शुरू की गई।
- यह योजना कर्मचारियों को बीमारी, मातृत्व, निःशक्तता और रोजगार के दौरान चोट के कारण मृत्यु के एवज में बीमा का प्रावधान करती है और बीमित व्यक्तियों को चिकित्सा देखभाल प्रदान करती है।
- यह योजना गैर-मौसमी इकाइयों और 21,000 रुपये/माह तक कमाने वाले कर्मचारियों को शामिल करती है।
- कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO): कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम, 1952 के तहत इसका गठन किया गया।
- यह कर्मचारी भविष्य निधि योजना 1952 का प्रबंधन करता है। कर्मचारी भविष्य निधि योजना एक सेवानिवृत्ति बचत योजना है जिसमें कर्मचारी और नियोक्ता दोनों हर महीने कर्मचारी के वेतन का एक निश्चित प्रतिशत योगदान करते हैं।
श्रम सुधारों की आवश्यकता
- अनुपालन का सरलीकरण: कानूनों की बहुलता (अधिकता) से उनके अनुपालन में कठिनाई होती है।
- द्वितीय राष्ट्रीय श्रम आयोग ने श्रम कानूनों की अधिकता को रेखांकित किया था और उन्हें 4 या 5 व्यापक श्रम संहिताओं में समेकित करने की सिफारिश की थी।
- अप्रासंगिक कानूनों का आधुनिकीकरण: कई अप्रासंगिक श्रम कानून औपनिवेशिक काल या स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती वर्षों में बने थे। ये श्रम कानून समकालीन आर्थिक एवं तकनीकी वास्तविकताओं रोजगार संरचना के अनुरूप नहीं थे।।
- उदाहरण के लिए: वेतन भुगतान अधिनियम, 1936 (Payment of Wages Act, 1936) केवल एक निश्चित वेतन सीमा (24,000 रुपये/माह) तक कमाने वाले कर्मचारियों पर ही लागू होता था। यह इस बात को नियंत्रित करता था कि वेतन का भुगतान कैसे और कब किया जाए।
- सार्वभौमिक कवरेज का अभाव: लगभग 90% श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में कार्य करते हैं। परंपरागत रूप से उनके पास सामाजिक सुरक्षा लाभों और व्यापक श्रम सुरक्षा/संरक्षण तक पहुंच का अभाव था।
- आर्थिक उद्देश्यों को बढ़ावा देना: नई संहिताओं का उद्देश्य अनुपालन को सरल बनाकर और 'व्यापार सुगमता' में सुधार करके निवेश, वृद्धि और नौकरियों को बढ़ावा देना है।
- कार्य के नए स्वरूपों पर ध्यान देना: गिग (Gig) और प्लेटफॉर्म श्रमिकों तथा अंतर-राज्यीय प्रवासी श्रमिकों जैसी श्रेणियों को औपचारिक रूप से मान्यता देने और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए ये सुधार अत्यंत महत्त्वपूर्ण थे।
- नीति आयोग के अनुसार, वर्ष 2020-21 में 7.7 मिलियन (77 लाख) श्रमिक गिग इकोनॉमी में कार्यरत थे। यह भारत के कुल कार्यबल का 1.5% है।
प्रमुख शब्दावली
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