विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 (World Inequality Report 2026) | Current Affairs | Vision IAS
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विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 (World Inequality Report 2026)

23 Dec 2025
1 min

In Summary

रिपोर्ट में वैश्विक धन और आय असमानताओं, जलवायु अन्याय, प्रणालीगत वित्तीय असमानता और गंभीर राष्ट्रीय असमानता के प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है, और अधिक न्यायसंगत विकास और स्थिरता के लिए तत्काल सुधारों पर जोर दिया गया है।

In Summary

सुर्ख़ियों में क्यों? 

हाल ही में, वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब ने विश्व असमानता रिपोर्ट-2026 जारी की।

असमानता का मापन

गिनी सूचकांक (Gini Index)   

  • गिनी सूचकांक यह मापता है कि किसी अर्थव्यवस्था के भीतर व्यक्तियों या परिवारों के बीच आय (या, कुछ मामलों में, उपभोग व्यय) का वितरण पूर्णतः समान वितरण से किस हद समान या असमान है। इसका मान 0 से 100 के बीच होता है।
  • इसे सामान्यतः लॉरेंज वक्र के माध्यम से परिभाषित किया जाता है।   
  • गिनी सूचकांक 0 का अर्थ है- पूर्ण समानता, यानी सभी की आय समान है, जबकि गिनी सूचकांक 100 का अर्थ है- पूर्ण असमानता, यानी पूरी आय एक व्यक्ति के पास है। 

कुजनेट्स अनुपात (Kuznet Ratio)   

  • समाज के ऊपरी और निचले वर्गों के बीच आय के अंतर को दर्शाता है। 
  • यह शीर्ष आय वर्ग (Top Quantiles) की आय को निचले आय वर्ग (Bottom Quantiles) की आय से विभाजित करके निकाला जाता है।
  • अनुपात जितना अधिक होगा, असमानता उतनी ही अधिक होगी।   
  • पाल्मा अनुपात (Palma Ratio) कुजनेट अनुपात का ही एक विशेष रूप है और इसे अधिक व्यावहारिक माना जाता है।
    • पाल्मा अनुपात में शीर्ष 10% लोगों की आय को निचले 40% लोगों की आय से विभाजित किया जाता है।

 

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

वैश्विक

  • वैश्विक स्तर पर संपत्ति में हिस्सेदारी:
    • वैश्विक जनसंख्या के शीर्ष 10% लोगों के पास कुल संपत्ति का लगभग 75% हिस्सा है।
    • निचले स्तर की 50% जनसंख्या के पास केवल 2% हिस्सा है। 
  • आय का अंतर:
    • वैश्विक आय अर्जित करने वालों में शीर्ष 10% की आय, शेष 90% की संयुक्त आय से भी अधिक है।
    • वैश्विक जनसंख्या के सर्वाधिक निर्धन आधे हिस्से को कुल वैश्विक आय अर्जन का 10% से भी कम प्राप्त होता है। 
  • जलवायु असमानता (कार्बन डिवाइड)
    • अत्यधिक असमानता: वैश्विक जनसंख्या का सबसे निर्धन आधा हिस्सा पूंजी से संबंधित कार्बन उत्सर्जन का मात्र 3% हिस्सा है, जबकि सबसे धनी 10% लोग इस उत्सर्जन के लगभग 77% के लिए जिम्मेदार हैं।
    • जोखिम का असमान वितरण: एक स्पष्ट जलवायु अन्याय बना हुआ है। इसमें सबसे कम उत्सर्जन करने वाले (प्रायः निम्न आय वाले देशों में) लोग ही जलवायु आपदाओं के प्रति सबसे अधिक सुभेद्य और जोखिम में होते हैं।
  • प्रणालीगत वैश्विक वित्तीय असमानता
    • अत्यधिक विशेषाधिकार: वैश्विक वित्तीय प्रणाली अमीर अर्थव्यवस्थाओं को सस्ते में उधार लेने और विदेशी निवेश पर उच्च रिटर्न प्राप्त करने की अनुमति देकर असमानता को और अधिक बढ़ावा देती है।
    • धन हस्तांतरण: इस प्रणाली के परिणामस्वरूप निर्धन देशों से अमीर देशों की ओर प्रतिवर्ष वैश्विक GDP का लगभग 1% निवल आय हस्तांतरण होता है। यह कुल वैश्विक विकास सहायता राशि का लगभग तीन गुना है। 

भारत

  • उच्च आय असमानता: 
    • शीर्ष 10% आय अर्जक राष्ट्रीय आय का 58% प्राप्त करते हैं।
    • जबकि निचले स्तर के 50% को राष्ट्रीय आय का केवल 15% प्राप्त होता है। 
  • संपत्ति के संदर्भ में अत्यधिक असमानता:
    • सबसे अमीर 10% लोगों के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का लगभग 65% हिस्सा है।
    • जबकि अकेले शीर्ष 1% के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का लगभग 40% हिस्सा है।
  • लैंगिक अंतराल: महिला श्रम बल भागीदारी (FLFP) अत्यधिक कम अर्थात 15.7% है। इसमें पिछले एक दशक में कोई सुधार नहीं दिख रहा है। 

उच्च असमानता के परिणाम  

  • आर्थिक अक्षमता और ठहराव: उच्च असमानता के कारण समाज के बड़े हिस्से को पर्याप्त स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा नहीं मिल पाती है। इससे उनकी कार्यक्षमता घटती है और मानव प्रतिभा का पूरा उपयोग नहीं हो पाता है। इसलिए, असमानता समग्र आर्थिक प्रदर्शन को कम करती है। 
    • उदाहरण के लिए, NFHS-5 के अनुसार, एनीमिया (रक्तक्षीणता) कार्यबल की भागीदारी को प्रभावित करती है, घरेलू आय को कम करती है और आर्थिक वृद्धि में बाधा डालती है।
  • अंतर-पीढ़ीगत निर्धनता जाल: जब आय और अवसर असमान होते हैं, तब गरीब परिवारों के बच्चों को भी वही सीमित अवसर मिलते हैं। माता-पिता की आय और शिक्षा बच्चों के भविष्य को तय करने लगती है, जिससे सामाजिक गतिशीलता कम हो जाती है। 
  • जलवायु कार्रवाई का कमजोर होना: अति-धनवान लोगों द्वारा अत्यधिक उपभोग और कार्बन उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देता है। इसके दुष्परिणाम पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ते हैं, लेकिन सबसे अधिक नुकसान गरीब वर्ग/राष्ट्रों को होता है। 
    • उदाहरण: विकासशील देशों में प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन कम होने के बावजूद वे जलवायु परिवर्तन से अधिक प्रभावित होते हैं।
  • सुभेद्यता और ऋण में वृद्धि: निम्न आय वाले और अनौपचारिक (असंगठित) क्षेत्रक के परिवारों को आर्थिक आघातों से उच्च जोखिम होता है। आय में कमी के समय उन्हें ऋण लेना पड़ता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और अस्थिर हो जाती है। 
    • उदाहरण: प्रवासी श्रमिकों और स्ट्रीट वेंडरों (सड़क विक्रेताओं) पर कोविड-19 लॉकडाउन का प्रभाव। 
  • विश्वास और लोकतंत्र का क्षरण: आर्थिक असमानताएं राजनीतिक असमानताओं में में बदल जाती हैं। इससे एक ऐसा दुष्चक्र बनता है जिसमें नियम अमीरों के पक्ष में बनाए जाते हैं। इससे असमानता और बढ़ती है तथा समाज में ध्रुवीकरण होता है।
    • उदाहरण: नाइजीरिया में कुलीन/अभिजात वर्ग के हाथों में तेल संपदा का संकेन्द्रण। 

निष्कर्ष

विश्व बैंक के अनुसार, 25.5 के गिनी सूचकांक के साथ भारत आय समानता में विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है। 2022-23 में भारत की चरम निर्धनता भी गिरकर 2.3% रह गई। 2011-23 के बीच 171 मिलियन लोग चरम निर्धनता से बाहर निकले। यह सुधार PM जन-धन योजना, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, आयुष्मान भारत और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) जैसी योजनाओं के कारण संभव हुआ है। यह दर्शाता है कि भारत सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। हालांकि, इस प्रगति को बनाए रखने और और अधिक मजबूत करने के लिए रोजगार सृजन, शिक्षा, कौशल विकास और सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में और ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। 

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