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जीन एडिटिंग (Gene Editing)

01 Jul 2025
26 min

सुर्ख़ियों में क्यों? 

संयुक्त राज्य अमेरिका की एक शोध टीम ने एक जानलेवा व लाइलाज आनुवंशिक बीमारी से पीड़ित एक शिशु के इलाज के लिए एक व्यक्तिपरक जीन एडिटिंग थेरेपी विकसित की है और इसे सफलतापूर्वक लागू किया है। यह थेरेपी अब तक लाइलाज मानी जाने वाली इस स्थिति के उपचार में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

अन्य संबंधित तथ्य 

  • शिशु को कार्बामोइल फॉस्फेट सिंथेटेस 1 (CPS-1) की कमी नामक आनुवंशिक उपापचय संबंधी विकार (metabolic disorder) से पीड़ित पाया गया था।
    • CPS-1 की कमी तब होती है, जब प्रोटीन के उपापचय (मेटाबॉलिज्म) से निकलने वाले उप-उत्पाद लिवर में पूरी तरह से नहीं टूट पाते हैं। इससे शरीर में अमोनिया विषाक्त स्तर तक बढ़ जाता है।
    • यह मस्तिष्क और लिवर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। बच्चे के लिवर प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) के लिए पर्याप्त उम्र का होने तक कम प्रोटीन वाला आहार लेना ही इसका इलाज है।
  • शोधकर्ताओं की टीम ने CRISPR नामक जीन-एडिटिंग तकनीक का उपयोग करके एक विशेष थेरेपी तैयार की। जिसने बच्चे के लिवर की कोशिकाओं में उस विशिष्ट जीन उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) को ठीक करने में मदद की जिसके कारण यह विकार उत्पन्न हुआ था।

जीन एडिटिंग के बारे में

  • जीन एडिटिंग एक ऐसी तकनीक है जो DNA अनुक्रम (sequence) को एक या अधिक स्थानों पर बदल सकती है। 
  • इसमें किसी एक क्षारक (Base) को हटाना, बदलना या एक नया जीन डालना शामिल हो सकता है। 
    • यह प्रक्रिया तीन मुख्य चरणों में संपन्न होती है: 
      • नए जीन को शामिल करना (insertion)
      • किसी जीन को हटाना (deletion)
      • किसी जीन को रूपांतरित करना (modification) 

जीन एडिटिंग के प्रकार 

  • सोमैटिक जीनोम एडिटिंग: यह उन कोशिकाओं में बदलाव करता है जो युग्मक/ गैमेट्स (शुक्राणु या अंडाणु) नहीं बनाती हैं। इसलिए ये आगामी पीढ़ियों तक नहीं पहुंच पाती हैं। 
    • लक्षित कोशिकाएं: गैर-जनन कोशिकाएं, जैसे- त्वचा, यकृत, गुर्दा, मांसपेशियों की कोशिकाएं आदि। 
  • जर्मलाइन जीनोम एडिटिंग: यह जनन कोशिकाओं या भ्रूण में आनुवांशिक परिवर्तन करता है। इसके प्रभाव आने वाली पीढ़ियों तक पहुंच सकते हैं। 
    • लक्षित कोशिकाएं: जनन कोशिकाएं, जैसे- जर्मलाइन कोशिकाएं, भ्रूण या युग्मक उत्पादक कोशिकाएं। 

जीन एडिटिंग के लिए प्रयुक्त तकनीकें 

विशेषता

ZFNs (जिंक फिंगर न्यूक्लिएसिस) 

TALENs (ट्रांसक्रिप्शन एक्टिवेटर-लाइक इफ़ेक्टर न्यूक्लिएसेस) 

CRISPR-Cas9

घटक 

जिंक फिंगर प्रोटीन (लक्ष्यीकरण) + FokI एंजाइम (कटिंग)

TALE प्रोटीन (लक्ष्यीकरण) + FokI एंजाइम (कटिंग)

गाइडिंग RNA अणु + Cas9 एंजाइम (कटिंग)

कार्य

जिंक फिंगर प्रोटीन विशिष्ट DNA अनुक्रमों को बांधता है; FokI DNA को काटता है

TALE प्रोटीन विशिष्ट DNA अनुक्रमों को बांधते हैं; FokI DNA को काटता है

विशिष्ट DNA के अंशों को काटने के लिए RNA Cas9 का गाइड करता है

उद्देश्य

DNA के सटीक अंशों को काटता है

DNA के सटीक अंशों को काटता है

उच्च परिशुद्धता के साथ जीन में सम्मिलन, विलोपन या संशोधन करता है

मूल स्रोत

जिंक फिंगर प्रोटीन

पौधों के जीवाणुओं से प्राप्त TALE प्रोटीन

वायरस के विरुद्ध जीवाणु प्रतिरक्षा प्रणाली

मुख्य विशेषता

"जीनोम एडिटिंग" न्यूक्लिएसिस में से पहला

ZFN की तुलना में डिजाइन और प्रोग्राम करना आसान

तेज़, किफायती, अधिक सटीक तथा उपयोग में आसान

जीन-एडिटिंग से जुड़ी चुनौतियां

नैतिक चिंताएं

  • भ्रूण अनुसंधान में नैतिकता: कई लोगों की गहरी नैतिक या धार्मिक मान्यता है कि मानव भ्रूण जीवन का एक रूप है, जिसे संरक्षण मिलना चाहिए।
    • इस दृष्टिकोण से, अनुसंधान जैसे उद्देश्यों के लिए भ्रूणों का उपयोग करना नैतिक रूप से ग़लत या यहां तक कि नैतिक रूप से अस्वीकार्य है। इसमें भ्रूणों में बदलाव करना, उन पर प्रयोग करना या अंततः उन्हें नष्ट करना भी अस्वीकार्य है। 
  • सहमति का अभाव: जर्मलाइन थेरेपी से भ्रूण और भावी पीढ़ियां प्रभावित होती हैं, जो स्वयं सहमति नहीं दे सकती हैं। ऐसे में इस बात पर बहस चल रही है कि क्या जर्मलाइन थेरेपी के लिए वास्तव में सहमति संभव है? 
  • न्याय और समानता: कई नई प्रौद्योगिकियों की तरह, इस बात की भी चिंता है कि जीनोम एडिटिंग केवल धनी व्यक्तियों के लिए ही सुलभ होगा। इससे स्वास्थ्य देखभाल संबंधी असमानताएं बढ़ सकती हैं। 

सुरक्षा संबंधी चिंताएं

  • सुरक्षा संबंधी मुद्दे: सबसे बड़ी चिंता यह है कि जीन एडिटिंग प्रक्रिया के दौरान अनचाहे स्थानों पर भी बदलाव (ऑफ-टार्गेट इफेक्ट्स) हो सकते हैं। इसके अलावा, मोजैकिज्म की समस्या भी है, जिसमें केवल कुछ कोशिकाओं में ही एडिटिंग सफल होता है, जबकि बाकी कोशिकाएं बिना बदलाव के रह जाती हैं। ये दोनों ही कारक जीन एडिटिंग की सुरक्षा और प्रभावशीलता पर सवाल उठाते हैं।
    • इन जोखिमों के कारण, शोधकर्ता और नैतिकतावादी आम तौर पर इस बात पर सहमत हैं कि प्रजनन प्रयोजनों के लिए जर्मलाइन जीनोम एडिटिंग का चिकित्सकीय उपयोग तब तक नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि यह सुरक्षित साबित न हो जाए।
  • विनियामक असंगतता: विशेषज्ञों को डर है कि जीन एडिटिंग पर अलग-अलग वैश्विक विनियमनों के कारण डिजाइनर बेबी जैसे विवादास्पद उपयोगों को बढ़ावा मिल सकता है। 

निष्कर्ष

जीन एडिटिंग तकनीकें लाइलाज आनुवंशिक बीमारियों के इलाज, कृषि में सुधार और पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने की क्रांतिकारी क्षमता प्रदान करती हैं। हालांकि, इस लक्ष्य को साकार करने के लिए सुरक्षा, समानता और सहमति के इर्द-गिर्द नैतिक चिंताओं पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। विशेषकर जर्मलाइन एडिटिंग के संदर्भ में विचार करने की आवश्यकता है, जो भविष्य की पीढ़ियों को प्रभावित करता है।

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