सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) और जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं नवाचार परिषद (Biotechnology Research and Innovation Council: BRIC) ने BRIC के प्रथम स्थापना दिवस पर "वन डे वन जीनोम" पहल की शुरुआत की।
जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं नवाचार परिषद (BRIC) के बारे में
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने देश के 14 स्वायत्त जैव प्रौद्योगिकी संस्थानों को एक साथ लाकर BRIC नामक एक शीर्ष स्वायत्त सोसाइटी का गठन किया है।
- उद्देश्य:
- राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अत्याधुनिक अनुसंधान को बढ़ावा देना,
- संस्थागत सीमाओं से परे नवाचार और उसके उपयोग को बढ़ावा देना, तथा
- स्वदेशी प्रौद्योगिकियों और क्षमताओं का विकास करना।
- BRIC का लक्ष्य इंट्रा-मुरल कोर अनुदान के माध्यम से अपने अनुसंधान संस्थानों के लिए एक केंद्रीकृत और एकीकृत गवर्नेंस व्यवस्था स्थापित करना है।
- यह अलग-अलग संस्थानों के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को एक साथ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
वन डे वन जीनोम पहल के बारे में
- उद्देश्य: शोधकर्ताओं के लिए माइक्रोबियल जीनोमिक्स डेटा को अधिक सुलभ बनाने के लिए प्रतिदिन एक एनोटेटेड माइक्रोबियल जीनोम सार्वजनिक रूप से जारी करना।
- यह हमारे देश में पाई जाने वाली जीवाणुओं की विशिष्ट प्रजातियों एवं पर्यावरण, कृषि और मानव स्वास्थ्य में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करेगी।
- इस पहल का महत्त्व:
- जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में रोजगार सृजन और स्टार्ट-अप को बढ़ावा देना।
- अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए भारत की जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology for Economy, Environment, and Employment: BioE3) नीति को लागू करने में सहायता करना।
- भारत के माइक्रोबियल संभावनाओं को साकार करना, जिससे अज्ञात सूक्ष्मजीवों की खोज होगी।
- माइक्रोबियल जीनोमिक्स में नवाचार को प्रेरित करना।
माइक्रोबियल जीनोमिक्स के बारे में
- इसके तहत सूक्ष्मजीवों की संपूर्ण आनुवंशिक सामग्री का अध्ययन किया जाता है, ताकि उनकी संरचना, कार्य, विकास और अन्य जीवों के साथ परस्पर क्रिया को समझा जा सके।
- सूक्ष्मजीवों को माइक्रोब भी कहा जाता है, जिन्हें माइक्रोस्कोप के बिना ठीक से नहीं देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए- जीवाणु, आर्किया, शैवाल, प्रोटोजोआ और डस्ट माइट जैसे सूक्ष्म जीव।
सूक्ष्मजीवों के अध्ययन का महत्त्व
- मानव स्वास्थ्य के लिए:
- रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु और उनकी आनुवंशिक संरचना के बीच संबंध को समझकर शोधकर्ता उभरते रोगजनकों की निगरानी कर सकते हैं।
- जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ाना: लाभकारी गुणों वाले सूक्ष्मजीवों के उपभेदों (स्ट्रेंस) की पहचान करने से जैव ईंधन उत्पादन, बायो-मैन्युफैक्चरिंग, बायो-फार्मास्युटिकल्स के विकास आदि में मदद मिल सकती है।
- सूक्ष्मजीवों की विविधता को समझना: यह शोधकर्ताओं को सूक्ष्मजीव प्रजातियों के भीतर और उनके बीच विविधता के आनुवंशिक आधार को समझने में मदद करता है।
- पर्यावरणीय संधारणीयता के लिए:
- जैव-उपचार (Bioremediation): सूक्ष्मजीव सभी जैव-भू-रासायनिक चक्रों, मृदा निर्माण, मिनरल प्युरिफिकेशन, जैविक अपशिष्टों और विषैले प्रदूषकों के विघटन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- उदाहरण के लिए- जीनोमिक्स के माध्यम से आइडियोनेला साकाइनेसिस की पहचान की गई है। ये ऐसे एंजाइम का उत्पादन करते हैं, जो PET प्लास्टिक को पुनः उपयोग योग्य मोनोमर्स में विघटित कर देते हैं।
- जैव-उपचार (Bioremediation): सूक्ष्मजीव सभी जैव-भू-रासायनिक चक्रों, मृदा निर्माण, मिनरल प्युरिफिकेशन, जैविक अपशिष्टों और विषैले प्रदूषकों के विघटन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- मानव स्वास्थ्य और रोग प्रबंधन: जीनोमिक्स का अध्ययन मानव स्वास्थ्य में सूक्ष्मजीवों की भूमिका का पता लगाने में मदद करता है। उदाहरण के लिए-
- आंतों के माइक्रोबायोटा (Gut microbiota) में बदलाव करना दीर्घकालिक जठरांत्रीय रोगों (Gastrointestinal diseases) के इलाज के लिए एक संभावित उपचार का विकल्प हो सकता है।
- माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के जीनोम अनुक्रमण से दवा प्रतिरोधी स्ट्रेंस का पता लगाने में मदद मिलती है।
- कृषि: यह पोषक चक्र, नाइट्रोजन स्थिरीकरण, मृदा उर्वरता बनाए रखने, कीट और खरपतवारों पर नियंत्रण तथा पर्यावरणीय तनाव को सहने में मदद करता है।
- उदाहरण के लिए- राइजोबियम जुवाणु नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने के लिए फलीदार पौधों के साथ सहजीवी संबंध में रहता बनाता है, जिससे उर्वरक की आवश्यकता कम हो जाती है।