सुर्ख़ियों में क्यों?
भारत ने पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान-प्रायोजित सीमा-पार आतंकवाद को लक्षित करते हुए एक वैश्विक राजनयिक अभियान शुरू किया।
अन्य संबंधित तथ्य
- भारत ने 30 से अधिक देशों में उच्च स्तरीय बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजे। इनमें अलग-अलग राजनीतिक दलों के संसद सदस्य, वरिष्ठ राजनेता और अनुभवी राजनयिक शामिल थे।
- इन प्रतिनिधिमंडलों का उद्देश्य पाकिस्तान द्वारा प्रस्तुत किए गए 'दो-राष्ट्र सिद्धांत' की साम्प्रदायिकता (हिन्दू-मुस्लिम) पर आधारित विचारधारा का खंडन करना और भारत के दृष्टिकोण को मजबूती देना था। साथ ही, भारत की स्थिति को विश्व के सामने स्पष्ट करना भी इसका एक उद्देश्य था।
- सफलता: कोलंबिया ने अपने पिछले बयान को वापस लेते हुए भारत के आतंकवाद विरोधी रुख का समर्थन किया।
- कूटनीतिक प्रयास के प्रमुख उद्देश्य
- कश्मीर मुद्दे को फिर से परिभाषित करना: कश्मीर को भारत का आंतरिक संवैधानिक विषय बताते हुए इसे द्विपक्षीय मुद्दा मानने से इनकार करना।
- आतंकवाद को राज्य की नीति के रूप में उजागर करना: यह बताना कि पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद का उपयोग केवल भारत की समस्या नहीं है, बल्कि यह अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद-विरोधी मानदंडों के लिए एक वैश्विक खतरा भी है।
राज्य प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत की वैश्विक पहुंच की प्रभावशीलता
- आत्मरक्षा को वैध बनाना: भारत ने पहलगाम हमले के बाद अपनी आत्मरक्षा के अधिकार की पुष्टि करते हुए संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 51 का आह्वान किया। इसने सशस्त्र आक्रामकता के खिलाफ एक कानूनी प्रतिक्रिया के रूप में ऑपरेशन सिंदूर को उचित ठहराया।
- आतंक पर शून्य-सहिष्णुता नीति के लिए समर्थन: भारत ने किसी भी स्रोत से किसी भी रूप में आतंकवाद के खिलाफ एक दृढ़ और कानूनी दृष्टिकोण पर जोर दिया।
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय (CCIT) को अपनाने की अपनी मांगों को नवीनीकृत किया।
- वैश्विक समर्थन का निर्माण: संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, सऊदी अरब, इजरायल और जापान जैसी प्रमुख शक्तियों ने पहलगाम हमले की निंदा की तथा भारत के रुख का समर्थन किया। इस प्रकार वैश्विक प्रतिक्रिया ने राज्य-प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ बढ़ती आम सहमति को दर्शाया।
- मुस्लिम-बहुल राष्ट्रों से समर्थन हासिल करना: भारत ने इस मुद्दे को आतंक के खिलाफ लड़ाई के रूप में प्रस्तुत किया, न कि धर्म-आधारित या द्विपक्षीय समस्या के रूप में।
- इंडोनेशिया, मिस्र और बहरीन ने इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) में पाकिस्तान के भारत-विरोधी प्रयासों को विफल कर दिया।
- OIC 57 देशों की सदस्यता के साथ संयुक्त राष्ट्र के बाद दूसरा सबसे बड़ा संगठन है। यह मुस्लिम जगत के हितों की रक्षा और सुरक्षा करने का प्रयास करता है।
- इंडोनेशिया, मिस्र और बहरीन ने इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) में पाकिस्तान के भारत-विरोधी प्रयासों को विफल कर दिया।
राज्य प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत के कूटनीतिक प्रयासों में मुख्य बाधाएं

- भारत और पाकिस्तान का री-हाइफनेशन: हाल की तनातनी के चलते, वैश्विक मंच पर विशेष रूप से कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत और पाकिस्तान को एक बार फिर एक ही संदर्भ में देखा जाने लगा है।
- इस आशंका को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के संघर्ष विराम की मध्यस्थता करने के दावे से बल मिलता है।
- चीन के बढ़ते प्रभाव से चिंतित पश्चिमी देशों के लिए, कश्मीर कानूनी और राजनीतिक स्पष्टता की बजाय प्रतीकात्मक विवाद का एक विषय बन सकता है।
- समन्वित वैश्विक कार्रवाई का अभाव: पाकिस्तान के खिलाफ कोई संयुक्त अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई (जैसे प्रतिबंध या प्रस्ताव) नहीं की गई है। इससे भारत के कूटनीतिक प्रयासों का प्रभाव सीमित हो गया है।
- वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान को लाभ: चीन के समर्थन से पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तालिबान प्रतिबंध समिति का अध्यक्ष और आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष बनाया गया है।
- यह पाकिस्तान को आतंकवाद के प्रायोजक के रूप में प्रकट करने के भारत के प्रयासों को कमजोर करता है।
- वैश्विक वित्तीय निकायों में भारत का सीमित प्रभाव: भारत की आपत्तियों के बावजूद, पाकिस्तान को बड़े ऋण (1 बिलियन डॉलर IMF ऋण, 40 बिलियन डॉलर विश्व बैंक साझेदारी ऋण और ADB से 800 मिलियन डॉलर ऋण) प्राप्त हुए।
- यह पाकिस्तान को आर्थिक रूप से अलग-थलग करने में आई चुनौतियों को उजागर करता है। ज्ञातव्य है कि भारत के लिए यह चिंतनीय इसलिए भी है क्योंकि पाकिस्तान इस धन का सैन्य व आतंकवादी उद्देश्यों के लिए दुरूपयोग कर सकता है।
- पाकिस्तान के लिए लगातार द्विपक्षीय समर्थन: चीन और तुर्किये जैसे देश आतंकवाद में पाकिस्तान की भूमिका का या तो समर्थन करते हैं या उसकी भूमिका को नकारते हैं।
- पाकिस्तान ने भारत के कूटनीतिक प्रयासों को विफल करने के लिए विदेशों में राजनयिक प्रतिनिधिमंडल भी भेजे थे। इससे भारत के कूटनीतिक प्रयास प्रभावित हुए थे।
- वैश्विक मीडिया द्वारा अधिक ध्यान न देना: मौजूदा वैश्विक संकट (यूक्रेन-रूस युद्ध, इजरायल-हमास संघर्ष या ईरान के साथ परमाणु तनाव) के कारण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने भारत-पाकिस्तान विवाद पर कम ध्यान दिया। इससे आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले पाकिस्तान जैसे देश को अपनी स्थिति को मजबूत करने का अवसर प्राप्त हुआ है।
निष्कर्ष
भारत द्वारा अपनी संप्रभु प्राथमिकताओं पर जोर देना और अपनी सुरक्षा नीति को बाहरी ताकतों के हवाले करने से इनकार करना उसकी रणनीतिक परिपक्वता का प्रतीक है। वैश्विक व्यवस्था में समझौतों की तुलना में स्पष्टता को अधिक सम्मान मिलता है। आने वाले समय में यह संघर्ष सीमाओं पर नहीं, बल्कि सोच और विचारों में होगा और, बातों में स्पष्टता ही यह तय करेगी कि वर्तमान पर किसका नियंत्रण रहेगा और भविष्य किसके हाथ में जाएगा। भारत के सामने चुनौती केवल लड़ाइयाँ जीतने की नहीं, बल्कि अपनी कहानी का स्वामी बनने की है। भू-राजनीति में, ठीक वैसे ही जैसे युद्धनीति में, जो पक्ष सवाल की रूपरेखा तय करता है, वही अक्सर उत्तर को नियंत्रित करता है। अंततः, सफलता उसी की होगी जो अपनी बातों को सबसे बेहतर तरीके से कह सके।