वर्तमान विनियमों के अनुसार, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPIs) किसी भारतीय कंपनी में उसकी कुल पेड-अप इक्विटी पूंजी का अधिकतम 10% तक ही पोर्टफोलियो निवेश के रूप में निवेश कर सकते हैं। गौरतलब है कि वह राशि जो कंपनी को शेयरधारकों से शेयरों के बदले में प्राप्त होती है उसे पेड-अप इक्विटी पूंजी कहते हैं।
- इससे पहले FPIs के लिए निर्धारित इस 10% की सीमा को पार करने पर FPIs के पास दो विकल्प होते थे- अधिशेष शेयरों को बेचना या प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के रूप में रीक्लासिफ़ाइ हो जाना।
- यदि कोई FPI अपने संस्थागत विदेशी निवेश को FDI में रीक्लासिफ़ाइ करने का इरादा रखता है, तो उस FPI को नीचे दिए गए ऑपरेशनल फ्रेमवर्क का पालन करना होगा:
FPI को FDI के रूप में रीक्लासिफ़ाइ करने के संबंध में RBI का नया ऑपरेशनल फ्रेमवर्क
- FDI के लिए प्रतिबंधित क्षेत्रकों में इस रीक्लासिफिकेशन की सुविधा की अनुमति नहीं दी जाएगी। जैसे, चिट फंड, गैंबलिंग आदि।
- विशेष रूप से सीमावर्ती देशों से FPI निवेश के लिए सरकारी अनुमोदन अनिवार्य है, तथा संबंधित भारतीय कंपनी की सहमति भी आवश्यक है।
- साथ ही, निवेश को FDI के नियमों के तहत प्रवेश मार्ग, सेक्टोरल कैप्स, निवेश सीमा, मूल्य निर्धारण दिशा-निर्देश और अन्य संबंधित शर्तों का पालन करना चाहिए।
- FPI का रीक्लासिफिकेशन “विदेशी मुद्रा प्रबंधन (भुगतान की विधि और गैर-ऋण लिखतों की रिपोर्टिंग) विनियमन, 2019” द्वारा निर्देशित होगा।
इस कदम का महत्त्व:
- इससे अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने में मदद मिलेगी;
- FPI को अधिक रणनीतिक निवेश में तब्दील करने में सुगमता प्रदान की जा सकेगी;
- भारतीय बाजार में विदेशी निवेशकों के लिए स्पष्टता और पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा आदि।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के बारे में
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