रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ने वाली अत्यधिक गर्मी और चरम मौसमी घटनाएं बच्चों की सीखने की प्रक्रिया को बाधित कर रही हैं। साथ ही, रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि शिक्षा प्रणाली जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों से निपटने और अनुकूलन के लिए युवाओं को सशक्त, तैयार व कौशल प्रदान कर सकती है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदुओं पर एक नजर
- स्कूली शिक्षा एवं सीखने की प्रक्रिया पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण स्कूल बंद होने से देशों में सालाना औसतन 11 शिक्षा दिवसों का नुकसान होता है। कम आय वाले देश इससे अधिक प्रभावित हैं।
- जलवायु जागरूकता पर सूचना संबंधी अंतराल: निम्न और मध्यम आय वाले देशों में जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरूकता अभी भी केवल 65% है।
- स्किलिंग/ री-स्किलिंग/ अप-स्किलिंग की आवश्यकता: वैश्विक ग्रीन ट्रांजीशन के लिए निम्नलिखित की आवश्यकता होगी-
- अनुमानित 100 मिलियन नई नौकरियों के लिए कुशल श्रमिकों और कामगारों की;
- अधिकांश मौजूदा नौकरियों के लिए अप-स्किल्ड कामगारों की; तथा
- अन्य 78 मिलियन नौकरियां जो कि समाप्त हो जाएंगी, उनके लिए री-स्किल्ड कामगारों की।
- शिक्षा वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ की जा रही कार्रवाई में मदद कर सकती है: भारत में, बच्चों तक जलवायु-संबंधी शिक्षा की पहुंच से न केवल उनके जलवायु-अनुकूल व्यवहार में वृद्धि हुई, बल्कि माता-पिता के जलवायु-अनुकूल व्यवहार में लगभग 13% की वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट में सरकारों के लिए की गई सिफारिशें
- जलवायु अनुकूल व्यवहार परिवर्तन के लिए स्कूली शिक्षा का उपयोग करना: इसके लिए स्कूली बच्चों के आधारभूत कौशल में सुधार एवं STEM शिक्षा में निवेश करना चाहिए। साथ ही, स्कूली बच्चों को अच्छी तरह से डिजाइन की गई जलवायु शिक्षा प्रदान करने पर भी सरकारों को ध्यान देना चाहिए।
- STEM विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित का संक्षिप्त रूप है।
- ग्रीन स्किलिंग और नवाचार के लिए तृतीयक शिक्षा का उपयोग करना: मजबूत आधार, लचीले माध्यम और सूचना प्रवाह के माध्यम से छात्रों की अनुकूलनशीलता को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए।
- शिक्षा प्रणालियों का संरक्षण करना: इसके लिए शिक्षा प्रणाली को बदलती जलवायु के प्रति अधिक अनुकूलनीय और लचीला बनाने का प्रयास करना चाहिए।