ज्ञातव्य है कि 1924 में, सत्येंद्र नाथ बोस ने क्वांटम सिद्धांत के आधार पर कणों या फोटॉनों के व्यवहार को समझने के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया था।
- अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ उनके सहयोग से अंततः B–E सांख्यिकी परिकल्पना का प्रतिपादन हुआ था।
B–E सांख्यिकी के बारे में
- B–E सांख्यिकी यह वर्णन करती है कि गैर-परस्पर क्रियाशील और अविभाज्य कणों का एक समूह थर्मोडायनामिक संतुलन में उपलब्ध विविध पृथक ऊर्जा अवस्थाओं को किस प्रकार ग्रहण कर सकता है।
- सरल शब्दों में यह बताता है कि कण स्वयं को उपलब्ध ऊर्जा अवस्थाओं में कैसे वितरित करते हैं।
- वे कण जो B–E सांख्यिकी सिद्धांत का पालन करते हैं, उन्हें बोसॉन कहा जाता है। इनका नाम एस. एन. बोस के नाम पर रखा गया है।
- बोसॉन वे मौलिक कण हैं, जिनके स्पिन के पूर्णांक मान (0, 1, 2, आदि) होते हैं। उदाहरण के लिए फोटॉन, ग्लूऑन, आदि।
B–E सांख्यिकी की प्रासंगिकता/ महत्त्व
- 20वीं सदी में पहली क्वांटम क्रांति संभव हुई थी। इससे लेजर, ट्रांजिस्टर, चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग और अर्द्ध चालक जैसी प्रौद्योगिकियों के विकास में मदद मिली थी।
- दूसरी क्वांटम क्रांति को क्वांटम कंप्यूटिंग और क्वांटम सेंसिंग जैसी प्रौद्योगिकियों के विकास द्वारा परिभाषित किया जाता है।
- इससे पदार्थ की पांचवीं अवस्था अर्थात बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट (BEC) की खोज संभव हुई।
- BEC पदार्थ की वह अवस्था है, जिसका निर्माण तब होता है जब कणों को परम शून्य तापमान (-273.15 डिग्री सेल्सियस/ 0 केल्विन) के करीब ठंडा किया जाता है।