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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री ने ‘बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी’ (B–E सांख्यिकी) के शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया

Posted 14 Nov 2024

Updated 18 Nov 2024

8 min read

ज्ञातव्य है कि 1924 में, सत्येंद्र नाथ बोस ने क्वांटम सिद्धांत के आधार पर कणों या फोटॉनों के व्यवहार को समझने के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया था।

  • अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ उनके सहयोग से अंततः B–E सांख्यिकी परिकल्पना का प्रतिपादन हुआ था।

B–E सांख्यिकी के बारे में

  • B–E सांख्यिकी यह वर्णन करती है कि गैर-परस्पर क्रियाशील और अविभाज्य कणों का एक समूह थर्मोडायनामिक संतुलन में उपलब्ध विविध पृथक ऊर्जा अवस्थाओं को किस प्रकार ग्रहण कर सकता है।
    • सरल शब्दों में यह बताता है कि कण स्वयं को उपलब्ध ऊर्जा अवस्थाओं में कैसे वितरित करते हैं।
  • वे कण जो B–E सांख्यिकी सिद्धांत का पालन करते हैं, उन्हें बोसॉन कहा जाता है। इनका नाम एस. एन. बोस के नाम पर रखा गया है।
    • बोसॉन वे मौलिक कण हैं, जिनके स्पिन के पूर्णांक मान (0, 1, 2, आदि) होते हैं। उदाहरण के लिए फोटॉन, ग्लूऑन, आदि।

B–E सांख्यिकी की प्रासंगिकता/ महत्त्व

  • 20वीं सदी में पहली क्वांटम क्रांति संभव हुई थी। इससे लेजर, ट्रांजिस्टर, चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग और अर्द्ध चालक जैसी प्रौद्योगिकियों के विकास में मदद मिली थी।
    • दूसरी क्वांटम क्रांति को क्वांटम कंप्यूटिंग और क्वांटम सेंसिंग जैसी प्रौद्योगिकियों के विकास द्वारा परिभाषित किया जाता है।
  • इससे पदार्थ की पांचवीं अवस्था अर्थात बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट (BEC) की खोज संभव हुई।
    • BEC पदार्थ की वह अवस्था है, जिसका निर्माण तब होता है जब कणों को परम शून्य तापमान (-273.15 डिग्री सेल्सियस/ 0 केल्विन) के करीब ठंडा किया जाता है।
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  • बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी
  • क्वांटम सिद्धांत
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  • एस. एन. बोस
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