यह सैटेलाइट कम्युनिकेशन को सामान्य उपभोक्ताओं तक पहुंचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अभी तक सैटेलाइट कम्युनिकेशन केवल आपातकालीन सेवाओं और सैन्य उपयोग तक ही सीमित था।
- कुछ वैश्विक पहलें भी D2D प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रही हैं, जैसे- AST स्पेस मोबाइल, लिंक ग्लोबल, कांस्टेलेशन ग्लोबल, स्पेसएक्स-स्टारलिंक।
डायरेक्ट-टू-डिवाइस (D2D) सैटेलाइट के कार्य:
- सिद्धांत: अंतरिक्ष में मौजूद सैटेलाइट्स धरती पर मौजूद सेल टावर्स की तरह काम करती हैं। इससे पारंपरिक मोबाइलों में कनेक्टिविटी के लिए जरूरी सेल टावर्स की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
- यह प्रौद्योगिकी जमीन पर स्थित संचार उपकरणों तक सीधे संकेत भेजने के लिए कक्षा में स्थित सैटेलाइट्स का उपयोग करती है।
- गैर-स्थलीय नेटवर्क (NTN) प्रौद्योगिकी: यह उपकरणों और सैटेलाइट्स के बीच निर्बाध तरीके से दो-तरफा संचार को सक्षम बनाती है।
- BSNL 36,000 किलोमीटर ऊपर स्थित वायसैट के जियोस्टेशनरी एल-बैंड सैटेलाइट्स का उपयोग करेगा। इससे जमीन पर स्थित सेल टावर्स की आवश्यकता नहीं रहेगी। इस कारण से यह दुर्गम क्षेत्रों में कवरेज के लिए संचार का एक आदर्श तरीका बन जाएगा।
इस कदम का महत्त्व:
- विश्वसनीय कनेक्टिविटी: हर मौसम में निर्बाध इंटरनेट कनेक्टिविटी मिलेगी, चाहे मौसम कितना भी ख़राब हो।
- हाई-स्पीड इंटरनेट और व्यापक कवरेज: यहां तक कि सबसे दूरदराज के क्षेत्रों में भी जहां सेलुलर या वाई-फाई नेटवर्क उपलब्ध नहीं हैं, वहां भी हाई-स्पीड इंटरनेट और व्यापक कवरेज मिलेगा।
- UPI भुगतान को सपोर्ट करता है: ग्रामीण क्षेत्रों या जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी बहुत कम है, उन क्षेत्रों में लोगों को डिजिटल लेन-देन करने के लिए सशक्त बनाएगा।
- आपातकालीन कॉल्स और SOS संदेश: यह ऐसी आपातकालीन स्थितियों में संचार का एक विश्वसनीय स्त्रोत होगा, जहां सेलुलर या वाई-फाई नेटवर्क काम नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए- जोखिम भरी या साहसिक यात्रा करने वाले लोगों के लिए उपयोगी।
चुनौतियां
- विलंबता: वॉयस कॉल और वीडियो स्ट्रीमिंग जैसी रियल टाइम सुविधाओं में कुछ न्यूनतम समय के लिए विलंब हो सकता है।
- विनियामक चुनौतियां: चूँकि D2D सेवा भौगोलिक सीमाओं को पार कर सकती है। इस कारण से दूरसंचार संबंधी विनियमों के अनुपालन में लापरवाही देखने को मिल सकती है
- स्पेक्ट्रम आवंटन: निर्बाध सैटेलाइट-से-भूमि पर संचार के लिए पर्याप्त बैंडविड्थ प्राप्त करना भी एक प्रमुख चुनौती है।
- डिवाइस संगतता (compatibility): यह सुनिश्चित करना कठिन हो सकता है कि प्रौद्योगिकी अलग-अलग स्मार्टफोन्स और ऑपरेटिंग सिस्टम्स पर बेहतर तरीके से काम करेगी या नहीं।
- प्रसार संबंधी चुनौतियां: अलग-अलग परिवेशों में सिग्नल लॉस और व्यवधान जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।