NCQG के तहत देशों को जलवायु आपदाओं से अपने लोगों और अर्थव्यवस्थाओं की रक्षा करने में मदद करने के लिए वित्त-पोषण का नया लक्ष्य निर्धारित किया गया है। साथ ही, यह देशों को स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में मिली सफलता के लाभों को साझा करने में मदद करने का प्रावधान भी करता है।
- गौरतलब है कि NCQG पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते का एक प्रमुख प्रावधान भी है। इसे 2025 के बाद विकासशील देशों को उनकी जलवायु कार्रवाइयों में सहायता करने के लिए वित्त-पोषण का नया लक्ष्य निर्धारित करने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
NCQG के तहत निर्धारित जलवायु वित्त-पोषण लक्ष्य
- बाकू वित्त-पोषण लक्ष्य: इसके तहत 2035 तक विकासशील देशों को जलवायु वित्त के रूप में 1.3 ट्रिलियन डॉलर उपलब्ध कराने का नया वैश्विक लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- विकासशील देशों को ट्रिपल फाइनेंस: इसमें विकसित देशों द्वारा 2035 तक विकासशील देशों के लिए कम-से-कम 300 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष जुटाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
- गौरतलब है कि 2009 में UNFCCC के पक्षकारों ने 2020 तक सालाना 100 बिलियन डॉलर जुटाने का फैसला किया था। बाद में इस लक्ष्य को 2025 तक बढ़ा दिया गया था।
भारत का रुख
- भारत ने COP-29 सम्मेलन के दौरान जलवायु वित्त पर NCQG समझौते को अस्वीकार कर दिया है। इसके लिए भारत ने निम्नलिखित तर्क दिए हैं:
- वित्त-पोषण पर्याप्त नहीं है: NCQG के तहत 2035 तक सालाना 300 बिलियन डॉलर जुटाने का लक्ष्य रखा गया है। भारत के अनुसार यह राशि बहुत कम है और इसे प्राप्त करने के लिए भी विकसित देशों को 2035 तक का लंबा समय दिया गया है।
- निर्णय लेने में सभी पक्षकारों के सुझाव पर विचार नहीं किया गया है। इस तरह नया वित्त-पोषण लक्ष्य ग्लोबल साउथ के देशों की प्राथमिकताओं को शामिल नहीं करता है।
- NCQG को अस्वीकार करने के भारत के पक्ष का नाइजीरिया और मलावी जैसे देशों ने भी समर्थन किया है।