इस पॉलिसी ब्रीफ के अनुसार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत कई वास्तविक लाभार्थियों को अनाज नहीं मिलने और अनाज का अन्य उद्देश्यों में उपयोग की शिकायतें शामिल हैं। इस ब्रीफ में लीकेज को समाप्त करने तथा खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु PDS में सुधार के तरीके बताए गए हैं।
पॉलिसी ब्रीफ के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- PDS लीकेज: भारतीय खाद्य निगम (FCI) और राज्य सरकारों द्वारा आपूर्ति किया गया 28% आवंटित अनाज वास्तविक लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाता है।
- इससे लगभग 69,108 करोड़ रुपये का वित्तीय नुकसान हुआ है।
- हालिया सुधारों का प्रभाव: राशन कार्ड को आधार नंबर से जोड़ने और 95% उचित मूल्य की दुकानों (FPS) पर पॉइंट ऑफ सेल (PoS) मशीनों की उपलब्धता से अनाज वितरण में दक्षता बढ़ी है। हालांकि, अभी भी लीकेज पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।
- अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग स्थिति: बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने PDS लीकेज को कम करने में अधिक सुधार दर्ज किए हैं। वहीं, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड जैसे पूर्वोत्तर राज्यों और गुजरात में उच्च लीकेज की स्थिति बनी हुई है।
- विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में PDS का डिजिटलीकरण नहीं होने की वजह से उच्च लीकेज जारी है।
मुख्य सुझाव
- वास्तविक लाभार्थियों की पहचान करना: वर्तमान में देश की लगभग 57% आबादी को PDS के तहत मुफ्त अनाज वितरित किया जा रहा है। इसके बदले में सबसे गरीब 15% लाभार्थियों को मुफ्त अनाज देना चाहिए।
- शेष लाभार्थियों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की 50% की दर से खाद्यान्न वितरित करना चाहिए।
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) का विस्तार करना चाहिए। इसके निम्नलिखित लाभ हैं:
- DBT अनाज के लीकेज को कम करता है,
- यह प्रशासनिक लागत को कम करता है और
- यह नागरिकों को अपनी इच्छा और जरूरत के अनुसार आहार चुनने में सशक्त बनाता है।
- उचित मूल्य की दुकानों (FPS) को पोषण केंद्रों में बदलना: अनाज की हेराफेरी की समस्या से निपटने के लिए चुनिंदा FPS में फ़ूड कूपन जारी करने की व्यवस्था लागू की जा सकती है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के बारे में
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