भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और मालदीव मौद्रिक प्राधिकरण (MMA) ने सीमा-पार लेन-देन के लिए स्थानीय मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु एक फ्रेमवर्क स्थापित करने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
- उल्लेखनीय है कि भारत, रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने और अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करने के प्रयासों के तहत स्थानीय मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा दे रहा है।
मुद्रा (रुपये) के अंतर्राष्ट्रीयकरण के बारे में:
- मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण को राष्ट्रीय मुद्रा के मूलभूत कार्यों के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार के रूप में वर्णित किया जाता है। राष्ट्रीय मुद्रा मुख्यतः लेखा इकाई, विनिमय के माध्यम और मूल्य के भंडार के रूप में कार्य करती है।
- उदाहरण के लिए, इसमें चालू खाता लेन-देन और विदेश व्यापार के लिए रुपये के उपयोग को बढ़ावा देना शामिल है।
रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण का महत्त्व
- व्यापार संबंधी जोखिमों को कम करना: रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण घरेलू कंपनियों को स्थानीय मुद्रा में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का इनवॉइस बनाने और निपटान करने में सक्षम बनाता है। इससे विनिमय दर से जुड़े जोखिम कम हो जाते हैं।
- व्यापक वित्तीय पहुंच: घरेलू संस्थाएं अंतर्राष्ट्रीय बाजारों का लाभ उठा सकती हैं। ऐसा इस कारण, क्योंकि रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण होने से बाह्य स्रोतों से पूंजी प्राप्त करने की लागत कम जाएगी और वित्त-पोषण विकल्पों का विस्तार होगा।
- रिजर्व प्रबंधन: भुगतान संतुलन को स्थिर रखने के लिए अपेक्षाकृत कम विदेशी मुद्रा भंडार की आवश्यकता होगी। साथ ही, विदेशी मुद्राओं पर भी निर्भरता कम होगी। इससे वैश्विक मुद्रा आघातों के प्रति अर्थव्यवस्था की सुभेद्यता में कमी आएगी।
रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण में मौजूद चुनौतियां
- शुरुआती दौर में रुपये की विनिमय दर में अस्थिरता बढ़ सकती है।
- ट्रिफिन दुविधा की स्थिति उत्पन्न होगी। इसका अर्थ है कि वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए अपनी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा की आपूर्ति करने हेतु देश का दायित्व उसकी घरेलू मौद्रिक नीतियों के साथ टकराव पैदा कर सकता है।
- अप्रतिबंधित सीमा-पार पूंजी प्रवाह के कारण अंतर्राष्ट्रीय आघातों के प्रति जोखिम में वृद्धि होगी।
रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में उठाए गए कदम
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