अंतरिक्ष विभाग का मिशन शुक्रयान या वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM) शुक्र ग्रह की सतह व उपसतह, वायुमंडलीय प्रक्रियाओं तथा इसके वायुमंडल पर सूर्य के प्रभाव की बेहतर समझ प्रदान करेगा।
वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM) के बारे में:
- लॉन्च: इसरो द्वारा यह मिशन 2028 में भेजा जाएगा।
- VOM के मुख्य उद्देश्य:
- शुक्र के वायुमंडल में मौजूद धूल की जांच करना;
- उसकी सतह की स्थलाकृति का मानचित्रण करना;
- शुक्र के निकट सौर एक्स-रे स्पेक्ट्रम का अध्ययन करना; और
- शुक्र के वायुमंडल में मौजूद प्राकृतिक एयर-ग्लो का विश्लेषण करना।
- VOM के जरिए प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन: उदाहरण के लिए, शुक्र के कठोर वातावरण में एयरोब्रेकिंग और ताप प्रबंधन तकनीकों का परीक्षण करना।
- एयरोब्रेकिंग: यह अंतरिक्ष अभियानों में उपयोग की जाने वाली एक तकनीक है। इसमें किसी ग्रह के वायुमंडल का उपयोग करके किसी अंतरिक्ष यान को धीमा किया जाता है।
- मिशन के साथ भेजे जाने वाले पेलोड्स:
- 16 भारतीय पेलोड्स;
- 2 भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी पेलोड्स (VISWAS/ विश्वास व RAVI/ रवि); तथा
- 1 अंतर्राष्ट्रीय पेलोड (VIRAL/ विरल)।
मिशन का महत्त्व:
- वैज्ञानिक अन्वेषण: यह सौरमंडल की उत्पत्ति के साथ-साथ ग्रहीय वातावरण की गतिशीलता को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकता है।
- जलवायु परिवर्तन को समझना: शुक्र का वायुमंडल मुख्य रूप से CO2 से बना है। इसलिए, इसकी संरचना का अध्ययन ग्रीनहाउस प्रभाव और अन्य पर्यावरणीय मुद्दों पर बेहतर जानकारी प्रदान कर सकता है।
- अन्य: वायुमंडलीय संरचना, पृथ्वी के विकास आदि को समझना।
मिशन के समक्ष चुनौतियां:
- अत्यधिक विषम परिस्थितियां: शुक्र ग्रह का उच्च तापमान और दाब अंतरिक्ष यान के घटकों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- संक्षारक वातावरण: शुक्र ग्रह की सतह पर विद्यमान सल्फ्यूरिक एसिड के बादल संभावित रूप से स्टील और टाइटेनियम से बने घटकों को संक्षारित कर सकते हैं।
- अन्य चुनौतियां: दुर्गम भू-भाग, सौर पैनल्स के लिए सूर्य के प्रकाश की कमी, तकनीकी चुनौतियां आदि।
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