फरवरी 2025 में, आर्कटिक के एक द्वीप समूह स्वालबार्ड में असाधारण रूप से उच्च तापमान और वर्षा के कारण बड़े पैमाने पर बर्फ पिघली थी और इस पिघली हुई बर्फ के जल का जमाव हुआ था।
- मानवजनित गतिविधियों से प्रेरित ग्लोबल वार्मिंग आर्कटिक में ज़्यादा तेज़ी से अपना असर दिखा रही है। इस कारण आर्कटिक का मौसम पृथ्वी के शेष हिस्सों की तुलना में ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है। इस घटना को आर्कटिक एम्प्लीफिकेशन कहा जाता है।
आर्कटिक एम्प्लीफिकेशन के लिए जिम्मेदार कारक
- एल्बिडो में कमी: जब तापमान बढ़ता है, तो आर्कटिक में बर्फ और हिम आवरण की परावर्तक परतें धीरे-धीरे गहरे समुद्री जल एवं खुली ज़मीन में बदल जाती हैं। ये दोनों अधिक मात्रा में सूरज की गर्मी को अवशोषित करते हैं।
- यह अवशोषण वातावरण के तापमान को और तेजी से बढ़ाता है, जिससे बर्फ व हिम की परत और ज्यादा पिघलती है। इसे फीडबैक लूप कहते हैं।
- लैप्स रेट फीडबैक: आर्कटिक में ग्रीनहाउस गैसों से होने वाली गर्मी ज्यादातर सतह के पास मौजूद रहती है। इसके विपरीत, उष्णकटिबंधों में संवहन के कारण यह अतिरिक्त गर्मी ऊपर की तरफ ऊर्ध्वाधर रूप से फैल जाती है।
- जलवाष्प का तीन तरह से प्रभाव:
- जलवाष्प से ज्यादा बादल बनते हैं, जिससे गर्मी बढ़ती है;
- जलवाष्प का जब संघनन होता है अर्थात जब जलवाष्प पानी की बूंदों में बदलती है तो उस दौरान गर्मी निर्मुक्त होती है, तथा
- जलवाष्प स्वयं भी एक ग्रीनहाउस गैस की तरह काम करते हैं।
- वायुमंडलीय ऊष्मा परिवहन: उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में नमी में वृद्धि होने से वहां से आर्कटिक की ओर ऊष्मा परिवहन की दर बढ़ जाती है।
आर्कटिक एम्प्लीफिकेशन के प्रभाव
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