यह रिपोर्ट राज्यों की विज्ञान और प्रौद्योगिकी (S&T) परिषदों से जुड़ी समस्याओं और चुनौतियों को रेखांकित करती है। साथ ही, इन परिषदों को नवाचार के रणनीतिक प्रवर्तकों के रूप में विकसित करने के लिए मार्गों की पहचान करती है। यह रोडमैप ‘विकसित भारत 2047’ के राष्ट्रीय विज़न के अनुरूप होगा।
- राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषदों की स्थापना 1971 में राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद की पहल पर की गई थी।
राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषदों के कामकाज में समस्याएं और चुनौतियां
- पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की कमी और उपयोग में समस्याएं: जैसे – फंडिंग के असमान वितरण एवं बजट में देरी के कारण कार्य व शोध (रिसर्च) की निरंतरता प्रभावित होती है।
- कुशल कर्मचारियों की कमी: जैसे – वैज्ञानिक पद रिक्त पड़े हैं और खराब कार्य संस्कृति के कारण शोध की गुणवत्ता एवं मात्रा दोनों घट जाती है।
- संस्थानों और उद्योगों के बीच कमजोर सहयोग: वैश्विक स्तर पर कार्यरत संस्थाओं से कम संपर्क और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की कमी।
- विनियामक और प्रशासनिक बाधा: इससे कार्य में देरी होती है और जिम्मेदारी तय करना मुश्किल हो जाता है।
नीति आयोग की सिफारिशें
- वित्तीय सहायता और संसाधन:
- राज्य सरकारों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी (S&T) के लिए अपने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का कम-से-कम 0.5% बजट देना चाहिए।
- केंद्र सरकार की ओर से दिए जाने वाले कोर अनुदान को परियोजना आधारित और प्रदर्शन आधारित अनुदान में बदला जाना चाहिए।
- मानव संसाधन:
- परिषदों में वैज्ञानिक और गैर-वैज्ञानिक कर्मचारियों का अनुपात 70:30 रखा जाना चाहिए।
- कौशल बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार के सेवानिवृत्त वैज्ञानिकों की मदद ली जानी चाहिए। साथ ही, फैकल्टी व शोधकर्ताओं की अन्यत्र अस्थायी विशेष नियुक्ति (secondment) की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- उद्योगों से सहयोग और संपर्क तथा कार्यक्रमों का पुनर्निर्धारण: राज्य के संसाधनों को संस्थागत साझेदारी के साथ जोड़ते हुए उद्योगों के साथ सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके अलावा, कार्यक्रमों को दोबारा इस प्रकार तैयार किया जाए कि वे स्थानीय आवश्यकताओं और क्षमताओं के अनुसार प्रभावी ढंग से काम कर सकें।