सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो नागरिक आवारा कुत्तों को खाना खिलाना चाहते हैं, उन्हें अपने घरों के भीतर ऐसा करने पर विचार करना चाहिए। न्यायालय कि यह टिप्पणी आवारा कुत्तों को लेकर समाज में मौजूद नैतिक मतभेद को उजागर करती है।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि कानून के अनुसार आवारा कुत्तों की रक्षा की जानी चाहिए, लेकिन साथ ही प्रशासन को आम लोगों की चिंता को भी ध्यान में रखना होगा, ताकि सड़क पर चलने-फिरने में कुत्तों के हमलों से बाधा न आए।
आवारा कुत्तों से संबंधित नैतिक मुद्दे:
- करुणा बनाम लोक व्यवस्था: कुछ नागरिक आवारा कुत्तों को खाना खिलाने में करुणा दिखाते हैं, जबकि अन्य का मानना है कि इससे क्षेत्रीय आक्रामकता और लोक असुविधा बढ़ती है।
- पशु कल्याण बनाम लोक सुरक्षा: आवारा कुत्तों को जीवन और गरिमा का अधिकार है, लेकिन समुदायों को भी कुत्तों के काटने और रेबीज से सुरक्षा का अधिकार है।
- NCDC के अनुसार, वर्ष 2024 में भारत में 37 लाख से अधिक कुत्तों के काटने के मामले दर्ज किए गए थे।
- पारिस्थितिक वहन क्षमता बनाम आबादी नियंत्रण: यह तर्क दिया जाता है कि मनुष्य कुत्तों को खाना खिलाकर उनकी संख्या को बढ़ा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पशु आबादी नियंत्रण के अनैतिक उपाय भी अपना रहे हैं।
- उपयोगितावाद बनाम आचरण-शास्त्रीय दृष्टिकोण: परित्याग बनाम उत्तरदायित्व: मनुष्यों और कुत्तों के बीच का उपयोगितावादी रिश्ता अब कमजोर पड़ गया है। इससे पालतू कुत्तों को त्यागने की प्रवृत्ति बढ़ी है, जबकि आचरण-शास्त्रीय दृष्टिकोण कहता है कि आवारा कुत्तों के प्रति हमारी ज़िम्मेदारियों को निभाना चाहिए।
भारत में आवारा कुत्तों से संबंधित प्रावधान:
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