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यू.एस. कांग्रेस ने स्टेबलकॉइन्स को विनियमित करने के लिए ‘जीनियस एक्ट’ पारित किया | Current Affairs | Vision IAS
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यू.एस. कांग्रेस ने स्टेबलकॉइन्स को विनियमित करने के लिए ‘जीनियस एक्ट’ पारित किया

Posted 19 Jul 2025

14 min read

यह एक्ट स्टेबलकॉइन्स के लिए एक विनियामक ढाँचा (नियम और कानून) स्थापित करेगा।

  • स्टेबलकॉइन एक प्रकार की क्रिप्टोकरेंसी है, जिसका मूल्य किसी अन्य मुद्रा, वस्तु या वित्तीय साधन से जुड़ा होता है। उदाहरण के लिए- टेथर (USDT), जिसकी कीमत अमेरिकी डॉलर से जुड़ी होती है। 
  • इनसे भुगतान करने में आसानी और तेजी आ सकती है।

स्टेबलकॉइन्स का उपयोग क्यों बढ़ा है?

  • आधारभूत/ अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Asset) से संबद्ध: इससे स्टेबलकॉइन्स अपनी कीमत को ज्यादा स्थिर बनाए रखते हैं। इसी वजह से वे बिटकॉइन जैसी ज्यादा उतार‑चढ़ाव वाली क्रिप्टोकरेंसी की तुलना में लेन‑देन के लिए ज्यादा भरोसेमंद बन गए हैं।
    • आधारभूत/ अंतर्निहित परिसंपत्तियों के पीछे कोई न कोई संस्था या व्यक्ति होता है, जो उन्हें जारी करता है और उनकी कीमत के लिए जिम्मेदार होता है। वहीं, कई क्रिप्टोकरेंसीज (जैसे बिटकॉइन) के पीछे कोई केंद्रीय संस्था या जारीकर्ता नहीं होता, जो उन्हें समर्थन दे। इस कारण स्टेबलकॉइन्स के जारीकर्ता की आसानी से पहचान की जा सकती है। 
    • जारीकर्ता कोई बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान, या बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां हो सकती हैं।
  • विनियमन (Regulation): स्टेबलकॉइन्स से जुड़े नियमों और फैसलों को आमतौर पर एक संचालन निकाय द्वारा तय किया जाता है।

भारत में क्रिप्टोकरेंसी या क्रिप्टो परिसंपत्तियों का विनियमन:

  • वर्तमान में, भारत में क्रिप्टो परिसंपत्तियों के लिए कोई प्रत्यक्ष विनियमन नहीं है।
  • हालांकि, सरकार ने वित्त अधिनियम, 2022 के माध्यम से वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्तियों (VDAs) के लेन-देन के लिए एक व्यापक कराधान व्यवस्था लागू की है।
  • इस व्यवस्था के जरिए VDAs से होने वाले पूंजीगत लाभ पर 30% कर लगाया गया है।
    • आयकर अधिनियम, 1961 के अनुसार VDA का अर्थ है– क्रिप्टोग्राफिक माध्यमों या अन्य माध्यमों से उत्पन्न कोई भी जानकारी, कोड, संख्या या टोकन जिन्हें इलेक्ट्रॉनिक रूप से ट्रांसफर, स्टोर या ट्रेड किया जा सके। उदाहरण: क्रिप्टोकरेंसी, नॉन-फंजिबल टोकन (NFT) आदि।
  • 2023 में, VDAs को धन-शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 के दायरे में भी ला दिया गया था।

क्रिप्टोकरेंसी कैसे काम करती है?

  • यह एक डिस्ट्रिब्यूटेड पब्लिक लेजर के सिद्धांत पर काम करती है, जिसे ब्लॉकचेन कहते हैं।
    • यह पब्लिक लेजर (बहीखाता) सभी लेन‑देन का रिकॉर्ड रखता है, जिसे लगातार अपडेट किया जाता है और यह रिकॉर्ड मुद्रा रखने वाले लोगों के पास रहता है।
  • क्रिप्टोकरेंसी को बनाने की प्रक्रिया को माइनिंग कहते हैं।
    • माइनिंग में, कंप्यूटर की प्रोसेसिंग पावर का उपयोग करके जटिल गणितीय समस्याएं हल की जाती हैं, जिससे नए कॉइन्स बनाए जाते हैं।
  • उपयोगकर्ता इन मुद्राओं को ब्रोकर्स (दलालों) से खरीद सकते हैं और फिर उन्हें क्रिप्टोग्राफिक वॉलेट्स में सुरक्षित रखकर खर्च कर सकते हैं।
  • Tags :
  • क्रिप्टोकरेंसी
  • स्टेबलकॉइन्स
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