सिंधु घाटी सभ्यता में कृषि | Current Affairs | Vision IAS
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सिंधु घाटी सभ्यता में कृषि

Posted 01 Jun 2025

Updated 29 May 2025

27 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

एक नई रेडियोकार्बन स्टडी में, मेहरगढ़ की कृषि बस्तियों की समयावधि 8000 ईसा पूर्व की जगह 5200 ईसा पूर्व बताई गई है। मेहरगढ़ पाकिस्तान में स्थित दक्षिण एशिया की सबसे पुरानी ज्ञात नवपाषाणकालीन कृषि बस्ती है। 

अन्य संबंधित तथ्य

  • प्रारंभ में शोधकर्ताओं ने मेहरगढ़ में कृषि गतिविधि का समयकाल निर्धारित करने के लिए रेडियोकार्बन डेटिंग पद्धति के माध्यम से जली हुई लकड़ी के अवशेष से तिथि निर्धारित की थी। हालांकि, लकड़ी का चारकोल ऐसा पदार्थ है जो वास्तविक घटना की तिथि से कई सदियों पुराना हो सकता है। इसलिए शोधकर्ताओं ने नई पद्धति को अपनाया।
    • नई शोध टीम ने जली हुई लकड़ी की बजाय दांतों के इनेमल में मौजूद कार्बन से तिथि निर्धारित की। इससे किसी व्यक्ति की मृत्यु का वास्तविक वर्ष का पता चल जाता है और इस अवशेष के आसपास के पर्यावरण से प्रभावित होने की संभावना भी बहुत कम होती है।
  • चूंकि सिंधु घाटी में सभ्यता का उदय नवपाषाणकालीन प्रयोग और विकास की एक लंबी अवधि के परिणाम के रूप में माना जाता है। इसलिए, यह नवीन अध्ययन सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) में कृषि की शुरुआत की टाइमलाइन को भी आगे बढ़ाता है।

सिंधु घाटी सभ्यता में कृषि

प्रारंभिक शिकारी-संग्राहक समुदायों की मौसम के अनुसार गतिशीलता धीरे-धीरे एक अधिक स्थायी कृषि आधारित जीवन शैली में बदल गई। पहले ये समुदाय अपने निर्वाह के लिए जंगली पौधों व जंगली जानवरों पर निर्भर थे। बाद में इन समुदायों ने फसल उगाना और पशुओं को पालना शुरू कर दिया, जो मानव सभ्यता में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है।

सिंधु घाटी और आस-पास के क्षेत्रों में किए गए पुरातात्विक उत्खनन से प्रारंभिक कृषि पद्धतियों के ठोस प्रमाण मिलते हैं, जैसा कि अनाज भंडारणगृह, मिट्टी के बर्तन, टेराकोटा मूर्तियों और सजावटी कलाकृतियों की खोज में देखा गया है।

उगाई जाने वाली फसलें: 

  • गेहूँ और जौ मुख्य रबी फसलें थीं, जबकि सरसों, तिल, कपास, खजूर और दलहनी फसलें खरीफ फसलों के रूप में उगाई जाती थीं। 
    • हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से गेहूं के साक्ष्य मिले हैं, जबकि जौ के साक्ष्य शोर्तुघई में मिले हैं।
  • चावल की खेती के साक्ष्य सीमित हैं, जो केवल गुजरात के लोथल और रंगपुर से प्राप्त हुए हैं, वहीं रंगपुर में चावल की भूसी पाई गई है।
  • दालें: मूंग, उड़द और कुल्थी विभिन्न स्थलों एवं बालाथल में उगाए जाती थी, जबकि मटर के साक्ष्य हड़प्पा से मिले हैं।
  • ब्रेसिका: ब्रेसिका कैम्पेस्ट्रिस (भूरी सरसों, पीली सरसों व तोरिया) और ब्रेसिका जंसिया (सरसों) के साक्ष्य चन्हूदड़ो एवं सुरकोटदा से प्राप्त हुए हैं। विद्वानों के अनुसार इनका उपयोग तेल, औषधि या पक्षियों के चारे के रूप में किया जाता था।
  • कपास: सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) विश्व की पहली कपास उत्पादक सभ्यता थी। कपास के लिए बेबीलोनियन और ग्रीक नाम क्रमशः सिंधु एवं सिंदों, इस तथ्य की ओर संकेत करते हैं कि कपास की उत्पत्ति सिंधु घाटी में हुई थी।
    • मोहनजोदड़ो से कपड़े का टुकड़ा और 24 प्लाई (fold) वाले धागे के अवशेष मिले हैं।
  • फल: 
    • बेर (जुजूब) के साक्ष्य मेहरगढ़ से मिले हैं।
    • खजूर के बीज नौशारो और मोहनजोदड़ो में पाए गए हैं।
    • अंगूर के बीज मेहरगढ़, नौशारो और शोर्तुघई से प्राप्त हुए हैं।
    • अखरोट और पीपल का फल हुलास से प्राप्त हुए हैं।

कृषि तकनीक और उपकरण:

  • हल: हड़प्पावासियों ने संभवतः हल की तकनीक सुमेरियन सभ्यता से सीखी थी। वे लकड़ी के हल का उपयोग करते थे, जो समय के साथ लकड़ी के सड़ने के कारण बच नहीं पाते थे।
    • मोहनजोदड़ो से प्राप्त टेराकोटा हल मॉडल उनके डिजाइन को दर्शाता है, हालांकि उसमें हैंडल नहीं है।
  • पहिएदार गाड़ियां: ठोस पहियों वाली बैलगाड़ियां खेत की खाद जैसे सामान को ले जाने के लिए इस्तेमाल की जाती थीं। यह पशु बल और पहिये की तकनीक को उजागर करता है।
    • हड़प्पा और चन्हूदड़ो से बैलगाड़ियों के कई कांस्य मॉडल पाए गए हैं। साथ ही, हड़प्पा में गाड़ियों के पहियों के निशान (Cart-ruts) भी पाए गए हैं, जो उनके उपयोग को प्रमाणित करते हैं।
  • फसल पैटर्न: कालीबंगन में उत्खनन से ग्रिड पैटर्न वाले एक जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है, जहां मिश्रित फसल (जैसे- सरसों और चना) उगाई थी। यह संभवतः विश्व में हल से जुताई वाले खेत का सबसे पहला सबूत है।
  • सैडल-क्वेर्न (अवतल चक्की): जिसे आधुनिक सिल और बट्टे (वट्टे) का समकक्ष माना जाता है। इसका उपयोग भुने हुए जौ जैसे अनाज को पीसने के लिए किया जाता था। जैसा कि मोहनजोदड़ो में एक टेराकोटा मूर्ती में एक महिला को आटा गूंथते हुए दिखाया गया है। यह प्रथा, यानी हाथ से पत्थर पर पीसने की विधि (जो सैडल-क्वेर्न जैसी है), आज भी भारतीय घरों में सिल और बट्टे (वट्टे) के रूप में मौजूद है।
  • फसल सुरक्षा: हिरण, जंगली सूअर, तोते जैसे जंगली जानवर फसलों को नुकसान पहुंचाते थे।
  • हड़प्पा स्थलों पर पाए गए टेराकोटा गोफन/ गुलेल की गेंदों से पता चलता है कि किसान गुलेल का इस्तेमाल जंगली जानवरों, पक्षियों आदि को डराने के लिए करते थे। यह तरीका आज भी उत्तरी भारत के ग्रामीण इलाकों में देखा जाता है।

भूमि और सिंचाई पद्धतियां:

  • खेत मुख्य रूप से नदी के किनारे स्थित थे, जहां सिंचाई के लिए मौसमी बाढ़ का लाभ उठाया जाता था।
  • रबी की फसलें बाढ़ के बाद बोई जाती थीं, जबकि खरीफ की फसलें बाढ़ की शुरुआत में बोई जाती थीं और इसके समाप्त होने पर काटी जाती थीं।
  • उन्नत सिंचाई (गबरबंद, नहरें व कुएं) से साल भर विशेषकर शुष्क मौसम के दौरान खेत की सिंचाई करने में सहायता मिलती थी।

 

निष्कर्ष

सिंधु घाटी सभ्यता अपनी मजबूत कृषि व्यवस्था/ पद्धति के कारण सदियों तक फलती-फूलती रही। उसकी उन्नत कृषि पद्धति ने विकसित शहरों, सुंदर कला और व्यापक-व्यापार नेटवर्क का समर्थन किया। यह कृषिगत सफलता ही थी, जिसने उन्हें मानव इतिहास पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ने में सक्षम बनाया।

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  • सिंधु घाटी सभ्यता
  • नवपाषाणकालीन कृषि
  • शिकारी-संग्राहक
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