सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और उपभोक्ता व्यवहार | Current Affairs | Vision IAS
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सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और उपभोक्ता व्यवहार

Posted 01 Jun 2025

Updated 29 May 2025

32 min read

परिचय

डिजिटल युग ने न केवल वाणिज्य को बल्कि लोगों की पहचान और मूल्यों को गढ़ने के तरीके को भी नया रूप दिया है। इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म अब लोगों की इच्छाओं और व्यवहारों को आकार देने के शक्तिशाली साधन बन गए हैं। कभी कोई कंटेंट सामान्य रूप से फिटनेस टिप्स, लाइफस्टाइल व्लॉग्स के रूप में शुरू होता है, वह अक्सर आकांक्षा, चतुराई से किए गए सूक्ष्म हेरफेर और उपभोक्तावाद का मिश्रण बन जाता है। वास्तविक राय और सशुल्क प्रचार के बीच की रेखा तेजी से धुंधली होती जा रही है।

E&Y रिपोर्ट के अनुसार, भारत के इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग उद्योग के तेजी से बढ़ने की उम्मीद है, जो 2026 तक 3,375 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा। यह डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स के बढ़ते प्रभाव को उजागर करता है।

उपभोक्ता के व्यवहार को प्रभावित करने में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर द्वारा निभाई गई सकारात्मक भूमिका

  • सामाजिक बदलाव को बढ़ावा देना: इन्फ्लुएंसर मानसिक स्वास्थ्य, बॉडी पॉजिटिविटी और महिलाओं के अधिकारों पर जागरूकता को बढ़ाते हैं।
    • भारत के #MeToo आंदोलन ने कार्यस्थल पर उत्पीड़न को उजागर किया और सुधारों को बढ़ावा दिया।
  • सचेत उपभोक्तावाद: कुछ उपभोक्ता अब इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग का विरोध कर रहे हैं, इसे "डि-इन्फ्लुएंसिंग" कहा जाता है। इस ट्रेंड में इन्फ्लुएंसर सोच समझ कर खर्च करने को बढ़ावा देते हैं और अनावश्यक खरीदारी से बचने की सलाह देते हैं।
  • समावेशिता और विविधता: कई इन्फ्लुएंसर लैंगिक रूढ़ीवाद को चुनौती देते हैं और हाशिए पर मौजूद समुदायों की आवाज़ों को उठाते हैं। इससे स्वीकृति और जागरूकता को बढ़ावा मिलता है।
  • सूचनाओं की उपलब्धता: अधिकारी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स का उपयोग अपडेटस, करियर टिप्स और सार्वजनिक योजनाओं को साझा करने के लिए कर सकते हैं। इससे शासन और नागरिकों के बीच की खाई को पाटा जा सकता है।

इन्फ्लुएंसर संस्कृति से जुड़े नैतिक मुद्दे

  • विवेकहीन उपभोग: इन्फ्लुएंसर अक्सर उत्पादों को आवश्यकता के लिए नहीं, बल्कि स्टेटस सिंबल के रूप में बढ़ावा देते हैं। इससे भौतिकवाद को बढ़ावा मिलता है और यह सादगी एवं संधारणीयता को कमजोर करता है। यह गांधीवादी नैतिकता के आत्म-संयम के विपरीत है।
  • मनोवैज्ञानिक हेरफेर: 'फियर ऑफ़ मिसिंग आउट' (FOMO) और सामाजिक स्तर पर तुलना को ट्रिगर करके, इन्फ्लुएंसर्स खासकर युवाओं के बीच तत्काल उपभोग की प्रवृति को बढ़ावा देते हैं। इससे उनकी स्वतंत्रता और सूचित चयन की क्षमता पर असर पड़ता है।
  • जवाबदेही की कमी: कई इन्फ्लुएंसर्स अनौपचारिक राय बनाने वाले नेतृत्वकर्ता के रूप में कार्य करते हैं। हालांकि उन पर कोई नियंत्रण नहीं होता है, जिससे उपभोक्ता गलत सूचनाओं और धोखाधड़ी का शिकार हो जाते हैं।
  • बेईमानी: कंटेंट की चोरी करना या क्रियेटर्स को श्रेय देने में विफल रहना बौद्धिक संपदा का अनादर और फॉलोवर्स के साथ धोखा है। यह नैतिक एवं कानूनी मानदंडों का उल्लंघन करता है।
  • गोपनीयता का उल्लंघन: बड़े इन्फ्लुएंसर्स अक्सर उपयोगकर्ता के डेटा को उचित सुरक्षा उपायों के बिना एकत्र और हैंडल करते हैं। इससे गंभीर नैतिक और कानूनी चिंताएं उत्पन्न होती हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान: ऑनलाइन आदर्श जीवन-शैली व्याकुलता, आत्म-सम्मान में कमी और असंतोष को बढ़ावा देती है। उपयोगितावादी दृष्टिकोण से देखें तो यह सामूहिक कल्याण को कम करता है।

इन्फ्लुएंसर जवाबदेही के लिए भारत में मौजूदा विनियामक फ्रेमवर्क

  • केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA): यह उपभोक्ताओं के अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार प्रथाओं एवं झूठे या भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों को विनियमित करता है।
  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI): इसने निवेशकों की सुरक्षा के लिए विनियमित वित्तीय संस्थाओं और अपंजीकृत फिनफ्लुएंसर्स के बीच साझेदारी पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI): इसने कुछ दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसके तहत इन्फ्लुएंसर्स के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सशुल्क प्रचार को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करना अनिवार्य बनाया गया है।
  • उपभोक्ता मामले का विभाग: इसके द्वारा इन्फ्लुएंसर्स और मशहूर हस्तियों को नैतिक और पारदर्शी प्रचार प्रथाओं का पालन करने में मदद करने हेतु 'एंडोर्समेंट नो-हाउज़' प्रकाशित किया गया है।
  • इंडिया इन्फ्लुएंसर गवर्निंग काउंसिल (IIGC): इसे उद्योग जगत के नेतृत्व कर्ताओं द्वारा शुरू किया गया है। यह इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग के लिए एक स्व-विनियामक निकाय है, जिसमें मेटा और गूगल जैसी प्रमुख कंपनियों के सदस्य शामिल हैं।
    • इसने हाल ही में भारत के डिजिटल इकोसिस्टम में पारदर्शिता, जवाबदेही और नैतिक रूप से अनुकूल कंटेंट क्रिएशन सुनिश्चित करने के लिए आचार संहिता और साप्ताहिक इन्फ्लुएंसर रेटिंग (इन्फोग्राफिक देखें) शुरू की है।

आगे की राह

  • एंडोर्समेंट संबंधी स्पष्ट नियम: पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए इन्फ्लुएंसर्स को "एंडोर्समेंट नो-हाउज़" जैसे दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए। इसके तहत "विज्ञापन," "स्पोंसर्ड," या "सशुल्क प्रचार" जैसे स्पष्ट लेबल लगाना अनिवार्य किया गया है।
  • मीडिया साक्षरता: युवाओं को ऑनलाइन कंटेंट का सोच समझ कर मूल्यांकन करने और इसमें निहित हेरफेर से बचने में मदद करने के लिए मीडिया संबंधी साक्षरता को स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
  • लोकप्रियता से अधिक विश्वसनीयता को प्राथमिकता देना: ब्रांड्स को इन्फ्लुएंसर के फॉलोअर्स की संख्या से आगे बढ़कर सोचना होगा। उन्हें इन्फ्लुएंसर की शैक्षिक पृष्ठभूमि, संबंधित क्षेत्र में विशेषज्ञता और दर्शकों की प्रासंगिकता का आकलन करना चाहिए।
  • जिम्मेदार परक कंटेंट क्रिएशन: इन्फ्लुएंसर्स द्वारा जानकारी देने वाला और शिक्षित करने वाला कंटेंट बनाया जाना चाहिए, जो दर्शकों की बुद्धिमत्ता को बढ़ाए, उन्हें शिक्षित करे और उसका सम्मान करे।

अपनी नैतिक अभिक्षमता का परीक्षण कीजिए

हाल के वर्षों में, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के तेजी से विकास ने सार्वजनिक हस्तियों की एक नई श्रेणी जैसे सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के उदय को बढ़ावा दिया है। इस विशाल लोकप्रियता के साथ, इन्फ्लुएंसर्स के पास सार्वजनिक राय को आकार देने, उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने तथा फैशन, स्वास्थ्य और जीवन-शैली जैसे क्षेत्रों में लोगों के खरीद संबंधी निर्णयों को प्रभावित करने की शक्ति है।

उपर्युक्त केस स्टडी के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

  1. समाज पर सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों का विश्लेषण कीजिए। (150 शब्द)
  2. सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के विनियमन के लिए मार्गदर्शक नैतिक सरोकार पर चर्चा कीजिए। (150 शब्द)
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  • सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर
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