राज्यों द्वारा स्वायत्तता की मांग (STATES’ DEMAND FOR AUTONOMY) | Current Affairs | Vision IAS
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राज्यों द्वारा स्वायत्तता की मांग (STATES’ DEMAND FOR AUTONOMY)

Posted 01 Jun 2025

Updated 28 May 2025

45 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

तमिलनाडु राज्य सरकार ने राज्य की स्वायत्तता और संघवाद को मजबूत करने हेतु उपाय सुझाने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है।

अन्य संबंधित तथ्य

  • सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया है।
  • समिति को सौंपे गए कार्य:
    • केंद्र-राज्य संबंधों के संवैधानिक, वैधानिक और नीतिगत पहलुओं की समीक्षा करना,
    • राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित विषयों को वापस राज्य सूची में लाने के  तरीके सुझाना,
    • प्रशासनिक चुनौतियों से निपटने में राज्यों की मदद करने के लिए उपायों की सिफारिश करना, 
    • राष्ट्रीय एकता को प्रभावित किए बिना राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने हेतु सुधारों का प्रस्ताव करना,
    • राजमन्नार समिति और संबंधित विषयों पर अलग-अलग रिपोर्ट्स की सिफारिशों पर फिर से विचार करना, 
    • वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थितियों पर विचार करना। 
  • समिति से यह अपेक्षा की गई है कि वह जनवरी, 2026 तक अपनी अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी और आगामी दो वर्षों के भीतर अंतिम रिपोर्ट सौंपेगी।
  • तमिलनाडु सरकार ने यह कहते हुए समिति का गठन किया है कि राज्य के अधिकारों का हनन हो रहा है और इस तथ्य की अनदेखी की जा रही है कि "भारत राज्यों का संघ है, न कि एकात्मक राज्य (India is a Union of States and not a unitary states)"

भारतीय संविधान में संघीय व्यवस्था

  • भारत राज्यों का एक संघ है, और राज्यों को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं है।
    • संघ एवं राज्यों के बीच समान संस्थाएं और साधन हैं, जैसे- एकल संविधान, एकल नागरिकता, समान अखिल भारतीय सेवाएंभारतीय निर्वाचन आयोग और एकीकृत न्यायपालिका।
  • विधायी शक्तियों का विभाजन:
    • संविधान का अनुच्छेद 246 संसद और राज्य विधान-मंडलों को सातवीं अनुसूची में सूचीबद्ध विषयों पर विधायी शक्तियां प्रदान करता है।
      • संघ सूची में 97 प्रविष्टियां हैं,
      • राज्य सूची में 66 प्रविष्टियां हैं, और
      • समवर्ती सूची  में 47 प्रविष्टियां हैं
  • भारतीय संघवाद को अक्सर अर्ध-संघीय स्वरुप वाला बताया जाता रहा है। इस तरह की व्यवस्था में संविधान में एक मजबूत केंद्र की वकालत की जाती है और उसे राज्यों की तुलना में अधिक शक्तियां प्राप्त होती हैं। 

केंद्र-राज्य संबंधों पर पूर्व में गठित समितियां और उनकी सिफारिशें

  • राजमन्नार समिति (1969): तमिलनाडु सरकार द्वारा गठित इस समिति ने सातवीं अनुसूची में शामिल विषयों के पुनर्वितरण के लिए एक उच्च अधिकार प्राप्त आयोग के गठन की सिफारिश की थी।
  • आनंदपुर साहिब संकल्प (1973): केंद्र की शक्तियां केवल रक्षा, विदेश मामले, संचार, मुद्रा आदि तक सीमित रखने की मांग की गई, जबकि शेष सभी शक्तियां राज्यों को सौंपे जाने की बात कही गई थी।
  • पश्चिम बंगाल ज्ञापन (1977): अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) को हटाने और संविधान में "संघात्मक" शब्द जोड़ने की मांग की गई थी।

 

भारत ने केंद्रीकृत संघवाद के स्वरूप को क्यों अपनाया?

एक मजबूत केंद्र की परिकल्पना निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए की गई है:

  • भारत की एकता और अखंडता की रक्षा करना: स्वतंत्रता के समय विभाजन की विभीषिका की वजह से विभाजनकारी शक्तियों के उभरने की आशंका को देखते हुए  मजबूत केंद्र सरकार का समर्थन किया गया। 
  • संपदा और विकास का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना: केंद्र की भूमिका को एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में देखा गया, जो अमीर राज्यों से गरीब राज्यों की ओर धन के हस्तांतरण को सुविधाजनक बनाकर समानता स्थापित करने में मदद करती है।
  • मूल संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा देना: भारत के संविधान का उद्देश्य न्याय, संसदीय लोकतंत्र, स्वतंत्रता आदि के सिद्धांतों को बढ़ावा देकर एक विविध, बहुलवादी और बहुसांस्कृतिक संघीय समाज का निर्माण करना है। इसे एक मजबूत केंद्र के माध्यम से और सुदृढ़ बनाया जा सकता है।
  • एकरूपता को बढ़ावा देना: सार्वभौमिक या सर्व-स्वीकृत मानक निर्धारित करने वाले कानूनों को संघ द्वारा लागू किया जाना चाहिए जिसके लिए सशक्त केंद्र सरकार का होना आवश्यक है।

हालांकि, पिछले कई वर्षों से कई राज्यों, विशेष रूप से तमिलनाडु ने, केंद्र पर न केवल सामान्य नीतियों में बल्कि राज्यों के अनन्य अधिकार क्षेत्र में भी अत्यधिक प्रभुत्व स्थापित करने का आरोप लगाया है, जिससे राज्यों की स्वायत्तता कम हुई है।

राज्यों की स्वायत्तता को कम करने वाले प्रमुख मुद्दे

  • राज्य सूची के विषयों में केंद्र का हस्तक्षेप: दक्षिणी राज्यों ने विश्वविद्यालय की फैकल्टी और कुलपतियों (वीसी) की नियुक्ति और पदोन्नति से संबंधित UGC के मसौदा विनियमों को चुनौती दी है। इन राज्यों के मुताबिक ये विनियम राज्य विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता कम करते हैं। 
    • तमिलनाडु सरकार केंद्र द्वारा कथित रूप से थोपे गए मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (National Eligibility cum Entrance Test: NEET) का विरोध कर रही है।
    • 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के द्वारा निम्नलिखित 5 विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया था: 
      • शिक्षा,
      • वन,
      • माप और तौल,
      • वन्य जीव और पक्षियों का संरक्षण, तथा
      • न्याय प्रशासन
  • राजकोषीय शक्तियों का केंद्रीकरण: वस्तु एवं सेवा कर (GST) के कारण राज्यों की कराधान शक्तियां सीमित हो गई हैं। राज्यों को कर हस्तांतरण में देरी की जाती है और अनुदान में कटौती की जा रही है।
    • वर्ष 2015-16 में राज्यों को दिया गया अनुदान 1.95 लाख करोड़ रुपये था, जो घटकर 2023-24 में 1.65 लाख करोड़ रुपये रह गया।
  • राज्यों की विविधता को नजरअंदाज करते हुए सभी के लिए एक जैसी नीतियां अपनाना:  तमिलनाडु त्रिभाषा फार्मूला का विरोध करता है, क्योंकि उसका मानना है कि यह नीति तमिल पहचान को समाप्त कर सकती है।
  • संस्थागत निगरानी में कमी: कार्यपालिका के आदेश द्वारा स्थापित योजना आयोग (अब नीति आयोग) संविधान के प्रावधानों के तहत स्थापित संस्था नहीं है। साथ ही, राज्य विधान सभाओं द्वारा पारित विधेयकों (जैसे- तमिलनाडु के मामले में) को अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल की मंजूरी मिलने में अनावश्यक देरी की जाती है।
  • केंद्रीकरण की बढ़ती घटनाएं: हाल ही में तमिलनाडु राज्य विधान सभा द्वारा पारित विधेयकों पर अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा मंजूरी देने की शक्तियों के अनुचित दुरूपयोग ने सत्ता के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति को को उजागर किया।
    • इसी प्रकार, पश्चिम बंगाल ने राज्य की सहमति के बिना राज्य में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा जांच का विरोध किया।

केंद्र-राज्य संबंधों को सुधारने की प्रमुख पहलें

  • अन्तर्राज्यीय परिषद: इसका गठन अनुच्छेद 263 के तहत हुआ है। यह केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय को बढ़ावा देती है।
  • योजना आयोग की जगह नीति आयोग का गठन: नीति आयोग सहकारी संघवाद को बढ़ावा देता है, जिसमें राज्यों की अधिक भागीदारी सुनिश्चित की गई है।
  • कर हस्तांतरण में वृद्धि: 14वें वित्त आयोग ने केंद्र से राज्यों को मिलने वाले करों की हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी।
  • GST परिषद: यह संविधान के अनुच्छेद 279A के तहत गठित एक संयुक्त फोरम है जिसमें केंद्र और राज्यों, दोनों के सदस्य शामिल हैं। यह परिषद GST से संबंधित नीतिगत निर्णय लेती है।
  • केंद्र प्रायोजित योजनाओं (Centrally Sponsored Schemes: CSS) की संख्या में कमी: केंद्र प्रायोजित योजनाओं की संख्या 130 से घटाकर 75 कर दी गई है, और भविष्य में इसे कम करके 50 तक लाने का लक्ष्य रखा गया है। इससे राज्यों को अपने फंड के व्यय में स्वायत्तता मिल सकेगी।
  • विकेन्द्रीकरण को मजबूत किया गया: 73वें और 74वें संविधान संशोधन के द्वारा पंचायतों और नगरपालिकाओं को अधिकार दिए गए हैं। इससे सरकार की तीसरी इकाई का निर्माण हुआ।

राज्य स्वायत्तता की मांग का प्रभावी रूप से समाधान करने के उपाय

  • सरकारिया आयोग (1983) की प्रमुख सिफारिशों को लागू करना चाहिए:
    • अवशिष्ट शक्तियां: सभी अवशिष्ट शक्तियों (कराधान को छोड़कर) को समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया जाए। 
    • विधेयक पारित करने से पूर्व परामर्श करना: समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने से पहले केंद्र सरकार को राज्यों से परामर्श करना चाहिए।
    • न्यूनतम हस्तक्षेप: समवर्ती सूची के विषयों पर संघीय कानूनों को केवल बुनियादी राष्ट्रीय मुद्दों पर एकरूपता सुनिश्चित करनी चाहिए और स्थानीय मामलों को राज्यों पर छोड़ देना चाहिए।
  • समतामूलक विकास को बढ़ावा देना: पुंछी आयोग (2007) की सिफारिशों के अनुसार पिछड़े राज्यों को वित्तीय हस्तांतरण बढ़ाया जाए। साथ ही, भौतिक और मानव संसाधन अवसंरचना को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
  • संस्थाओं के बीच संवाद को बढ़ावा देना: वेंकटचलैया आयोग की सिफारिश के अनुसार अन्तर्राज्यीय परिषद का उपयोग अलग-अलग राज्यों से व्यक्तिगत स्तर पर या सामूहिक रूप से, दोनों तरीके से परामर्श लिया जाए। क्षेत्रीय परिषदों को फिर से सक्रिय किया जाए ताकि वे सार्थक संवाद और सहयोग के मंच बन सकें।
  • प्रमुख संस्थानों के माध्यम से आम सहमति को बढ़ावा देना चाहिए: अंतर-राज्यीय परिषद, GST परिषद, नीति आयोग और अन्य सहकारी मंचों के माध्यम से समन्वय और नीतिगत सहमति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। 

निष्कर्ष

राज्य स्वायत्तता की मांग केवल संवैधानिक शक्तियों के कम होने की धारणा से उत्पन्न नहीं होती, बल्कि यह क्षेत्रीय दलों के उदय, असमान क्षेत्रीय विकास और पहचान आधारित राजनीति जैसे गहन मुद्दों से भी जुड़ी है।  जैसा कि अन्नादुरई ने 1967 में कहा था, "आपसी सद्भावना और समझदारी के माध्यम से हमें भाईचारे और परस्पर लाभकारी संबंध की स्थापना करनी चाहिए।" एक संतुलित संघीय ढांचा राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय विविधता, दोनों का सम्मान करता है।

  • Tags :
  • अनुच्छेद 246
  • राज्य की स्वायत्तता
  • राजमन्नार समिति
  • संघवाद
  • न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ समिति
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