सार्क वीज़ा-छूट योजना (SAARC Visa Exemption Scheme: SVES)
भारत सरकार ने घोषणा की है कि पाकिस्तान के नागरिक अब सार्क वीज़ा छूट योजना (SVES) के अंतर्गत भारत की यात्रा नहीं कर सकेंगे।
सार्क वीज़ा छूट योजना (SVES) के बारे में
- शुरुआत: यह योजना 1992 में शुरू की गई थी। 1988 में इस्लामाबाद में आयोजित चौथे सार्क शिखर सम्मेलन में इस वीज़ा की शुरुआत के बारे में निर्णय लिया गया था।
- उद्देश्य: सार्क सदस्य देशों के बीच जनसंपर्क को बढ़ावा देना और क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करना।
- लाभार्थी वर्ग: इस योजना के अंतर्गत 24 श्रेणियों के व्यक्ति बिना वीज़ा के यात्रा करने के लिए पात्र थे। इनमें गणमान्य व्यक्ति, उच्चतर न्यायालयों के न्यायाधीश, सांसद आदि शामिल हैं।
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ब्रिक्स सदस्य देशों के श्रम एवं रोजगार मंत्रियों की 2025 की बैठक में एक घोषणा-पत्र अपनाया गया (BRICS LABOUR & EMPLOYMENT MINISTER’S MEET 2025 ADOPTS DECLARATION)
बैठक में अपनाए गए घोषणा-पत्र में दो महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई है: “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एंड द फ्यूचर ऑफ़ वर्क” तथा “द इम्पैक्ट ऑफ़ क्लाइमेट चेंज ऑन द वर्ल्ड ऑफ़ वर्क एंड ए जस्ट ट्रांजीशन।”
- बैठक का आयोजन ब्राजील की अध्यक्षता में ब्रासीलिया में किया गया। इस बैठक की थीम थी- “अधिक समावेशी और सतत गवर्नेंस के लिए ग्लोबल साउथ के सहयोग को मजबूत करना”।
घोषणा-पत्र की मुख्य विशेषताओं पर एक नज़र
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने श्रमिक अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए इसका समर्थन किया है।
- घोषणा-पत्र में ब्रिक्स देशों ने निम्नलिखित प्रतिबद्धता जताई है:
- नवाचार और श्रमिक संरक्षण के बीच संतुलन बनाते हुए समावेशी AI नीतियों को बढ़ावा देंगे।
- न्यायसंगत जलवायु संक्रमण सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक संवाद को प्रोत्साहित करेंगे।
- विशेष रूप से लेबर गवर्नेंस, डिजिटल समावेशन और हरित नौकरियों के सृजन में दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मजबूत करेंगे।
श्रमिकों के लिए घोषणा-पत्र का महत्त्व
- गरिमापूर्ण कार्य के लिए AI का उपयोग: यह सभी श्रमिकों की AI तक समान पहुंच सुनिश्चित करने में सहायक साबित होगा, जिससे उनकी अभिव्यक्ति को सार्थक सामाजिक संवाद के माध्यम से सुनना आसान हो जाएगा।
- ILO के अनुसार ब्रिक्स देश दक्षिण-दक्षिण सहयोग के माध्यम से कार्यस्थलों पर AI के अधिकार-आधारित उपयोग के संबंध में आवश्यक परिवर्तनों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- जस्ट ट्रांजीशन-हरित नौकरियां व समावेशी नीतियां: पारिस्थितिकी-तंत्र के पतन से 1.2 बिलियन आजीविका खतरे में हैं; लगभग 2.4 बिलियन श्रमिक हानिकारक अत्यधिक गर्मी में काम करने हेतु मजबूर हैं।
- सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा: सामाजिक सुरक्षा में व्याप्त अंतर तेजी से बढ़ रहा है। इससे प्लेटफॉर्म वर्कर्स जैसा असुरक्षित वर्ग भी और अधिक प्रभावित हो रहा है। आज भी 83 प्रतिशत लोगों के लिए बुनियादी सामाजिक सुरक्षा का कोई प्रावधान नहीं है।
- सामाजिक न्याय को प्रोत्साहन: ILO ने ब्रिक्स देशों को "वैश्विक सामाजिक न्याय गठबंधन" के माध्यम से समर्थन देने की प्रतिबद्धता जताई है। इसके तहत उन्हें मानक मार्गदर्शन तथा शोध संबंधी और तकनीकी सहयोग प्रदान किया जाएगा।
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आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौता (ASEAN-INDIA TRADE IN GOODS AGREEMENT: AITIGA)
भारत ने आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौते (AITIGA) पर संयुक्त समिति की 8वीं बैठक की मेजबानी की।
- दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन (आसियान/ ASEAN) की स्थापना 1967 में बैंकॉक (थाईलैंड) में 10 देशों के एक समूह के रूप में की गई थी।
AITIGA के बारे में
- उत्पत्ति: AITIGA पर 2009 में हस्ताक्षर किए गए थे और यह 2010 में लागू हुआ था।
- अधिदेश: इस समझौते के तहत, प्रत्येक पक्ष को GATT, 1994 के अनुसार दूसरे पक्षों की वस्तुओं को नेशनल ट्रीटमेंट प्रदान करना होगा।
- व्यापार: भारत और आसियान के बीच द्विपक्षीय व्यापार 121 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2023-24) तक पहुंच गया है।
- भारत के वैश्विक व्यापार में आसियान की हिस्सेदारी लगभग 11% है।
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प्रत्यर्पण (EXTRADITION)
26/11 मुंबई आतंकी हमले के एक आरोपी को अमेरिका से भारत प्रत्यर्पित किया गया।
- यू.एन. ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) के अनुसार, प्रत्यर्पण (Extradition) का अर्थ है “किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति को दूसरे देश को सौंपना, ताकि वहाँ उस पर कानूनी कार्रवाई की जा सके।” हालांकि, इसमें एक शर्त यह है कि आरोपी द्वारा किया गया अपराध प्रत्यर्पण योग्य अपराध (Extraditable offence) की श्रेणी में आता हो।
- प्रत्यर्पण योग्य अपराध वह होता है जो या तो किसी देश के साथ हुई प्रत्यर्पण संधि में उल्लिखित हो, या अगर कोई संधि नहीं हुई है, तो ऐसा अपराध जिसके लिए भारत या संबंधित देश में कम-से-कम 1 साल की सजा का प्रावधान हो।
प्रत्यर्पण से जुड़े फ्रेमवर्क

- भारत में:
- प्रत्यर्पण अधिनियम 1962 (1993 में पर्याप्त संशोधन): यह कानून भारत से विदेशों में अपराधियों को सौंपने और उन्हें विदेशों से भारत लाने के नियमों को निर्धारित करता है।
- विदेश मंत्रालय भारत में प्रत्यर्पण संबंधी मामलों के लिए नोडल प्राधिकरण है।
- प्रत्यर्पण अधिनियम 1962 (1993 में पर्याप्त संशोधन): यह कानून भारत से विदेशों में अपराधियों को सौंपने और उन्हें विदेशों से भारत लाने के नियमों को निर्धारित करता है।
- भारत ने बांग्लादेश और अमेरिका सहित 48 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधियां की है।
- प्रत्यर्पण से संबंधित मामलों पर निर्णय लेने की अंतिम शक्ति भारत सरकार के पास है, लेकिन सरकार के निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
- प्रत्यर्पण से जुड़े मामलों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रावधान:
- प्रत्यर्पण पर संयुक्त राष्ट्र मॉडल संधि (1990),
- प्रत्यर्पण पर संयुक्त राष्ट्र मॉडल कानून (2004),
- सीमा-पारीय संगठित अपराध के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (2000), आदि।
प्रत्यर्पण कानून में चुनौतियां
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भारत-थाईलैंड रणनीतिक साझेदारी (INDIA-THAILAND STRATEGIC PARTNERSHIP)
भारत-थाईलैंड ने रणनीतिक साझेदारी स्थापित करने की दिशा में संयुक्त घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए।
- रणनीतिक साझेदारी एक कम औपचारिक लेकिन महत्वपूर्ण सहयोग होता है। इसमें मुख्य रूप से सुरक्षा से जुड़ा साझा सहयोग शामिल होता है, लेकिन यह व्यापार, अर्थव्यवस्था, प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों तक भी विस्तृत होता है।
भारत-थाईलैंड रणनीतिक साझेदारी का महत्त्व

- पारस्परिक रूप से लाभकारी लक्ष्य: दोनों देश एक स्वतंत्र, खुला, पारदर्शी, नियम आधारित, समावेशी और लचीले हिंद-प्रशांत क्षेत्र को महत्त्व देते हैं। दोनों देश आसियान केंद्रीयता का भी समर्थन करते हैं।
- ‘आसियान केंद्रीयता’ का अर्थ है कि इस क्षेत्र की भू-राजनीति और भू-अर्थव्यवस्था में ASEAN (दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन) की प्रमुख भूमिका बनी रहे।
- रणनीतिक अवस्थिति: थाईलैंड भारत का समुद्री पड़ोसी है और क्षेत्रीय शांति में उसकी महत्वपूर्ण रुचि है।
- पूरक नीतियां: भारत की “एक्ट ईस्ट” नीति और थाईलैंड की “एक्ट वेस्ट” नीति एक-दूसरे की पूरक हैं।
- अपने क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय समूहों में भूमिका: थाईलैंड भारत का एक महत्वपूर्ण साझेदार है, खासकर आसियान और BIMSTEC/ बिम्सटेक जैसे मंचों में।
किए गए अन्य प्रमुख समझौते
- अलग-अलग क्षेत्रों में सहयोग पर समझौता ज्ञापन: लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC) और पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास (MDoNER) हेतु समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
- लोगों के बीच संपर्क को सुविधाजनक बनाना: भारत-थाईलैंड कॉन्सुलर डायलॉग की स्थापना की गई।
- व्यापार सुविधा: स्थानीय मुद्रा-आधारित निपटान तंत्र की स्थापना की संभावना पर विचार किया गया।
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भारत ने महाद्वीपीय मग्न-तट पर अपने दावे को बढ़ाया (INDIA’S EXTENDED CONTINENTAL SHELF CLAIM)
भारत ने अपने “विस्तारित महाद्वीपीय मग्न-तट (Extended Continental Shelf)” के तहत मध्य अरब सागर जलक्षेत्र में लगभग 10,000 वर्ग किलोमीटर तक अपने दावे को बढ़ा दिया है। साथ ही, भारत और पाकिस्तान के बीच समुद्री सीमा को लेकर लंबे समय से चले आ रहे विवाद से बचने के लिए अपने पहले के दावे में भी संशोधन किया है।
समुद्री सीमा विवाद के बारे में

- अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone: EEZ): समुद्र तटीय देशों के पास "अनन्य आर्थिक क्षेत्र" होता है। यह उनकी तटरेखा से समुद्र में 200 नॉटिकल मील तक विस्तृत होता है। इस जल क्षेत्र में इन देशों को खनन और मछली पकड़ने के अनन्य अधिकार होते हैं।
- इसके अतिरिक्त, ऐसे देश महासागर में और अधिक जल-क्षेत्र पर दावा कर सकते हैं, बशर्ते वे “महाद्वीपीय मग्न-तट की सीमाओं पर आयोग (Commission on the Limits of the Continental Shelf - CLCS)” के समक्ष वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध कर सकें कि उनका दावा किया गया जलक्षेत्र उनकी स्थलीय सीमा से निर्बाध रूप से समुद्री नितल तक फैला हुआ है।
- यह आयोग संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है।
- यह पूरा महासागरीय जलक्षेत्र संबंधित देश के विस्तारित महाद्वीपीय मग्न-तट का हिस्सा माना जाता है।
- इसके अतिरिक्त, ऐसे देश महासागर में और अधिक जल-क्षेत्र पर दावा कर सकते हैं, बशर्ते वे “महाद्वीपीय मग्न-तट की सीमाओं पर आयोग (Commission on the Limits of the Continental Shelf - CLCS)” के समक्ष वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध कर सकें कि उनका दावा किया गया जलक्षेत्र उनकी स्थलीय सीमा से निर्बाध रूप से समुद्री नितल तक फैला हुआ है।
- भारत ने 2009 में अरब सागर के विस्तृत जल क्षेत्रों पर “CLCS” के समक्ष अपना पहला दावा प्रस्तुत किया था।
- पाकिस्तान ने 2021 में भारत के दावे पर आपत्ति जताई थी। पाकिस्तान का कहना था कि भारत द्वारा दावा किए गए क्षेत्र “विवादित” हैं। पाकिस्तान ने विशेष रूप से सर क्रीक को विवादित माना।
- मार्च 2023 में, CLCS ने अरब सागर क्षेत्र में भारत के पूरे दावे को अस्वीकार कर दिया था। हालांकि, आयोग ने पक्षकार देशों को 'संशोधित दावे' प्रस्तुत करने की अनुमति दी थी।
सर क्रीक के बारे में
- यह 96 किलोमीटर लंबा विवादित ज्वारनदमुख (Tidal estuary) है।
- यह अरब सागर तक विस्तृत है और मोटे तौर पर पाकिस्तान के सिंध प्रांत को भारत के गुजरात के कच्छ क्षेत्र से अलग करता है।
- वर्ष 1947 में, भारत चाहता था कि इसे अंतर्राष्ट्रीय समुद्री जल क्षेत्र कानून के सिद्धांत यानी थालवेग सिद्धांत (Thalweg Principle) के अनुसार सुलझाया जाए। इस सिद्धांत के अनुसार यदि राष्ट्रों की सीमाएं जलमार्ग में स्थित हैं तो फिर सीमा केवल नौगम्य जल-क्षेत्र (Navigable channel) के मध्य में निर्धारित की जानी चाहिए।
- हालांकि, पाकिस्तान ने दावा किया कि सर-क्रीक नौगम्य नहीं है, इसलिए इस पर थालवेग सिद्धांत लागू नहीं हो सकता।
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- विस्तारित महाद्वीपीय मग्न-तट
बांग्लादेश के लिए ट्रांसशिपमेंट फैसिलिटी (TRANSSHIPMENT FACILITY FOR BANGLADESH)
भारत ने औपचारिक रूप से बांग्लादेश के साथ किए गए ट्रांसशिपमेंट फैसिलिटी को रद्द कर दिया है।
- 2020 के एक समझौते के तहत बांग्लादेश को यह सुविधा दी गई थी कि वह अपने देश की वस्तुओं को भारतीय भूमि पर स्थित सीमा शुल्क स्टेशनों (LCSs) के माध्यम से यूरोप, पश्चिम एशिया आदि क्षेत्र के अन्य देशों को निर्यात कर सकता है।

- भारत ने इस समझौते को रद्द करने का प्राथमिक कारण लॉजिस्टिक्स से जुड़ी चुनौतियों को बताया है। इसमें विशेष रूप से इस बात का उल्लेख किया गया है कि भारतीय बंदरगाहों और हवाई अड्डों पर अत्यधिक भीड़भाड़ हो रही है, जिससे भारत के अपने निर्यात कार्यों में बाधा उत्पन्न हो रही है।
- हालांकि, सरकार ने यह फैसला तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों और बांग्लादेशी सरकार के मुख्य सलाहकार द्वारा हाल ही में की गई टिप्पणियों के बाद लिया है। गौरतलब है कि बांग्लादेशी सरकार के सलाहकार ने यह कहते हुए हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की नेट सुरक्षा प्रदाता की भूमिका को नकार दिया था कि ‘बांग्लादेश ही हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में सभी के लिए एकमात्र सुरक्षा प्रदाता है।’
हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में नेट सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका
- भू-रणनीतिक: हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की केंद्रीय स्थिति; लगभग 7,500 किलोमीटर की तटरेखा; और मलक्का जलडमरूमध्य, बाब अल-मंदेब जैसे प्रमुख चोकपॉइंट्स से भारत की निकटता; आदि इसे IOR में एक महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करते है।
- भारत ने ‘महासागर/ MAHASAGAR’ (क्षेत्र में सुरक्षा और विकास के लिए पारस्परिक और समग्र उन्नति) विजन, 2025 जारी किया है। यह 2015 के सागर/ SAGAR नीति का ही विस्तार है।
- समुद्री सुरक्षा: भारत हिंद महासागर क्षेत्र में एंटी-पायरेसी और तस्करी-रोधी अभियान संचालित करता है। इससे समुद्री व्यापार मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- विकास और मानवीय सहायता: भारत ने हिंद महासागर में 2004 में आई सुनामी, 2014 के मालदीव जल संकट और 2022 के श्रीलंकाई आर्थिक संकट जैसी स्थितियों में तुरंत मदद पहुँचाई। इस त्वरित प्रतिक्रिया ने भारत को इस क्षेत्र में “संकट के समय सबसे पहले मदद करने वाले देश” के रूप में पहचान दिलाई है।
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हर्ड और मैकडोनाल्ड द्वीप (HEARD AND MCDONALD ISLAND)
अमेरिकी राष्ट्रपति ने हर्ड और मैकडोनाल्ड द्वीप सहित कई अमेरिकी व्यापार भागीदारों के लिए पारस्परिक 10% टैरिफ की घोषणा की।
- राष्ट्रपति ने 2 अप्रैल को "मुक्ति दिवस" की संज्ञा दी और इसे "अमेरिकी इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक" घोषित किया।
हर्ड और मैकडोनाल्ड द्वीपों के बारे में
- हर्ड द्वीप और मैकडोनाल्ड द्वीप दक्षिणी महासागर में निर्जन उप-अंटार्कटिक द्वीप हैं। यहां कोई स्थायी मानव आबादी नहीं रहती है।
- इन द्वीपों को ऑस्ट्रेलिया प्रशासित करता है।
- ये दक्षिणी महासागर के एकमात्र सक्रिय उप-अंटार्कटिक ज्वालामुखीय द्वीप हैं। ये पृथ्वी की भूगर्भीय प्रक्रियाओं और हिमनदों की गतिशीलता को समझने का अवसर प्रदान करते हैं।
- ये द्वीप यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं।
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मोराग एक्सिस (MORAG AXIS)

इजरायल ने मोराग एक्सिस के नाम से विख्यात एक नए सिक्योरिटी कॉरिडोर को अपने अधीन कर लिया।
मोराग एक्सिस बारे में
- यह क्षेत्र खान यूनिस और राफा के बीच स्थित है। यह मुख्यतः कृषि भूमि है, जो गाजा पट्टी में पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई है।
- "मोराग" नाम एक अवैध इजरायली बस्ती को संदर्भित करता है, जो 1972 और 2005 के बीच इस क्षेत्र में स्थापित की गई थी।
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