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इलेक्ट्रॉनिक घटक विनिर्माण योजना (ELECTRONICS COMPONENT MANUFACTURING SCHEME: ECMS)

01 Jun 2025
39 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इलेक्ट्रॉनिक घटक विनिर्माण योजना को अधिसूचित किया।

इलेक्ट्रॉनिक घटक विनिर्माण योजना (ECMS) के बारे में

  • मंत्रालय: केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeiTY)
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य भारत में इलेक्ट्रॉनिक घटकों (कंपोनेंट्स) के विनिर्माण के लिए एक अनुकूल माहौल बनाकर भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग को मजबूत करना है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग को ग्लोबल वैल्यू चेन के साथ एकीकृत किया जाएगा और वैल्यू चेन में घरेलू एवं विदेशी स्रोतों से निवेश आकर्षित किया जाएगा।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स वैल्यू चेन में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के विनिर्माण, उत्पादन और वितरण से संबंधित सभी गतिविधियां शामिल होती हैं।
  • निम्नलिखित सेग्मेंट्स पर अधिक बल दिया जाएगा:
    • सब-असेंबली (जैसे- डिस्प्ले मॉड्यूल, कैमरा मॉड्यूल)
    • बेयर कंपोनेंट (जैसे- मल्टी लेयर प्रिंटेड सर्किट बोर्ड, आदि)
    • सेलेक्टेड बेयर कंपोनेंट (जैसे- फ्लेक्सिबल प्रिंटेड सर्किट बोर्ड, आदि)
    • आपूर्ति श्रृंखला इकोसिस्टम और पूंजीगत उपकरण (जैसे- इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में प्रयुक्त पूंजीगत सामान, आदि)
  • अलग-अलग सेग्मेंट्स के लिए प्रस्तावित राजकोषीय प्रोत्साहन के प्रकार:
    • टर्नओवर के आधार पर (वृद्धिशील टर्नओवर/ बिक्री पर): सब-असेंबली और बेयर कंपोनेंट के लिए। 
    • कैपेक्स या पूंजीगत व्यय के आधार पर (पात्र पूंजीगत निवेश पर): इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण हेतु आपूर्ति श्रृंखला इकोसिस्टम और पूंजीगत उपकरणों के लिए। 
    • हाइब्रिड प्रोत्साहन (उपर्युक्त दोनों सेग्मेंट्स के लिए): उद्योग की जरूरतों के आधार पर चुनिंदा बेयर कंपोनेंट के लिए।
  • योजना अवधि:
    • टर्नओवर आधारित प्रोत्साहन: 6 वर्षों के लिए, जिसमें शुरुआती एक वर्ष का गेस्टेशन पीरियड (निवेश या व्यवसाय की शुरुआत से लेकर लाभ या रिटर्न मिलने में लगने वाला समय) शामिल है। 
    • कैपेक्स प्रोत्साहन: 5 वर्ष तक। 
  • पात्रता: इस योजना के तहत, पात्र सेग्मेंट्स में ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड, दोनों प्रकार की परियोजनाओं की अनुमति दी गई है।
  • कार्यान्वयन एजेंसी: इस योजना को MeitY द्वारा एक नोडल एजेंसी के माध्यम से क्रियान्वित किया जाएगा। यह नोडल एजेंसी परियोजना प्रबंधन एजेंसी (PMA) की भूमिका निभाएगी।

भारत में इलेक्ट्रॉनिक घटक क्षेत्रक का महत्व

  • आर्थिक क्षमता: इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग भारत में सबसे तेजी से वृद्धि करने वाले क्षेत्रकों में शामिल है। वित्त वर्ष 2014-15 से 2023-24 के बीच देश में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के घरेलू उत्पादन में पांच गुना वृद्धि दर्ज की गई है।
    • वर्तमान समय में भारत में इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्रक 150 बिलियन डॉलर से अधिक का है। इस दशक के अंत तक इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्रक की वैल्यू 500 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।
  • निर्यात वृद्धि: इस क्षेत्रक ने वित्त वर्ष 2024 में भारत के कुल निर्यात में 29.12 बिलियन डॉलर का योगदान दिया। भारत में वित्त वर्ष 2014-15 से 2023-24 के बीच इलेक्ट्रॉनिक सामानों के निर्यात में 20% से अधिक की चक्रवृद्धि औसत वृद्धि दर (Compound Average Growth Rate: CAGR) दर्ज की गई है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: विशेष रूप से रक्षा क्षेत्रक में विदेशी इलेक्ट्रॉनिक्स पर निर्भरता देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। साथ ही, भारतीय डेटा के दुरुपयोग होने और संकट के समय आपूर्ति श्रृंखला या आयात बाधित होने का खतरा बना रहता है।
    • भारत-संयुक्त राज्य अमेरिका संयुक्त सहयोग के तहत भारत का पहला राष्ट्रीय सुरक्षा सेमीकंडक्टर फेब्रिकेशन प्लांट स्थापित किया जाएगा। यह प्लांट सैन्य हार्डवेयर के लिए चिप का विनिर्माण करेगा।
  • उद्योगों में तकनीकी इनोवेशन को बढ़ावा: उदाहरण के लिए, 5G प्रौद्योगिकी से रिमोट-सर्जरी (दूर से ही सर्जरी) और ऑटोनोमस वाहनों को बढ़ावा मिल रहा है।

भारत में इलेक्ट्रॉनिक घटक क्षेत्रक के समक्ष चुनौतियां

  • विनिर्माण की उच्च लागत: कई तरह के टैरिफ स्लैब एवं सरचार्ज, कच्चे माल और लॉजिस्टिक्स की उच्च लागत जैसे कारक भारत में विनिर्मित उत्पादों को विश्व के बाजारों में महंगा बना देते हैं।
    • भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण से जुड़ी कंपनियों को इनपुट की ऊंची लागत और अधिक आयात शुल्क का सामना करना पड़ता है, जिसके चलते उन्हें चीन की तुलना में विनिर्माण सामग्री पर 4% से 5% तक की प्रतिस्पर्धात्मक हानि उठानी पड़ती है।
    • उत्पादन बढ़ाने की चुनौतियां: भारत में ऐसे घटकों के विनिर्माण को बढ़ावा देने की संभावनाएँ मौजूद हैं जो कम तकनीकी जटिलता वाले हैं या जिन्हें स्थानीय स्तर पर तैयार किया जा सकता है, जैसे- केसिंग, कांच आदि। 
  • अनुसंधान एवं विकास (R&D) तथा डिजाइन के लिए अनुकूल माहौल का अभाव: भारत R&D पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1% से भी कम खर्च करता है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन (2.5% से अधिक) की तुलना में बहुत कम है।
  • वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स की मांग में भारत की कम हिस्सेदारी: जिन मुख्य ग्लोबल ब्रांड्स का 80% इलेक्ट्रॉनिक बाजार पर प्रभुत्व है, उनमें से अधिकांश भारत से इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स की आपूर्ति नहीं लेते, जिससे इस क्षेत्र में भारत की भागीदारी बेहद सीमित रह जाती है। 
  • क्रिटिकल मिनरल्स के आयात पर बहुत अधिक निर्भरता: क्रिटिकल मिनरल्स की निरंतर आपूर्ति पर हमेशा खतरा बना रहता है। साथ ही, मूल्य में भी उतार-चढ़ाव देखा जाता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स विनिर्माण के लिए अनुकूल माहौल की कमी: इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्रक में जो संवृद्धि दर देखी जा रही है उसकी तुलना में इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स विनिर्माण की दर कम है। इसकी वजहें हैं- अधिक पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) की जरूरत और निवेश पर कम टर्नओवर प्राप्त होना।
    • लंबा गेस्टेशन पीरियड: कंपोनेंट्स विनिर्माण में निवेश और इनके उत्पादन के बीच 1-2 वर्ष का अंतराल देखा जाता है। इसका मतलब है कि निवेश पर रिटर्न जल्दी प्राप्त नहीं होता है। 
  • तकनीकी चुनौतियां: भारतीय विनिर्माताओं के पास वर्तमान में एडवांस्ड इलेक्ट्रॉनिक्स और कंपोनेंट्स के विनिर्माण के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों और कौशल का अभाव है। इन्हें अन्य  देशों से प्रौद्योगिकी प्राप्त होने का इंतजार करना पड़ता है।

आगे की राह (नीति आयोग की एक रिपोर्ट "इलेक्ट्रॉनिक्स: वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में भारत की भागीदारी को सशक्त बनाना" के अनुसार)

  • राजकोषीय उपाय:  
    • इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स के विनिर्माण के लिए राजकोषीय प्रोत्साहन:
      • ओपेक्स/Opex (ऑपरेटिंग व्यय) में मदद करना: कम जटिलता वाले/ स्थानीय रूप से उत्पादित कंपोनेंट्स (नॉन-SMT ग्रेड, केसिंग, ग्लास, आदि) के विनिर्माण को बढ़ाने के लिए ऑपरेटिंग व्यय में सहायता प्रदान करनी चाहिए।
      • पूंजीगत व्यय में सहायता: अधिक जटिल कंपोनेंट्स {मैकेनिक्स, पूंजीगत वस्तु, विशेष घटक (SMD ग्रेड), लिथियम-आयन सेल} के विनिर्माण में वित्तीय मदद दी जानी चाहिए।
      • अधिक जटिल कंपोनेंट्स के विनिर्माण में हाइब्रिड सपोर्ट: SMD ग्रेड, 8 लेयर+ PCB पैसिव आदि के लिए।
    • भारतीय कंपनियों के SMEs/ R&D केंद्रों को बढ़ावा देने के लिए नवाचार योजना शुरू की गई है। यह योजना भारतीय कंपनियों को अनुसंधान और विकास (R&D) में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
    • बड़े आकार के क्लस्टर विकसित करना, श्रमिकों के लिए आवास सुविधाएं प्रदान करना, स्थानीय नियमों और विनियमों (जैसे- श्रम कानून) को सरल और अनुकूल बनाना, क्लस्टर गवर्नेंस को बढ़ावा देना, आदि।
  • गैर-राजकोषीय यानी अन्य तरह के समर्थन:  
    • इनपुट (कच्चे माल) पर प्रशुल्क को कम करना चाहिए। इससे निर्यातित उत्पाद सस्ते हो जाएंगे और विदेशी बाजारों में इनकी मांग बढ़ेगी।  
    • हाई टेक कंपोनेंट्स के विनिर्माण एवं डिजाइन के लिए विदेशों से कुशल लोगों को आमंत्रित करना चाहिए। स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण देने में भी उनकी मदद ली जा सकती है। विदेशी प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए तुरंत वीजा देने की नीति अपनानी चाहिए।
    • एडवांस्ड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स के विनिर्माण और उच्च तकनीकी कौशल वाली प्रतिभाओं को बढ़ावा देने लिए शिक्षा एवं उद्योग जगत के बीच सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए।
    • कंपोनेंट्स विनिर्माण के लिए मंजूरी प्रक्रिया और उच्च प्रौद्योगिकी प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल बनाना चाहिए। 
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