सुर्ख़ियों में क्यों?
संयुक्त राज्य अमेरिका ने "पारस्परिक प्रशुल्क (Reciprocal Tariff)" योजना की शुरुआत की। इसके तहत अमेरिका ने सभी आयातों पर 10% का बेसलाइन टैरिफ यानी प्रशुल्क लगाया है और अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष वाले देशों पर उच्च टैरिफ लगाने की योजना बनाई है।
अन्य संबंधित तथ्य
- यह कदम पहले की बहिर्मुखी (Outward oriented) नीतियों से हटकर अंतर्मुखी (Inward) विकास रणनीतियों की ओर बदलाव का संकेत देता है।
- यह डी-ग्लोबलाइजेशन की व्यापक प्रवृत्ति को दर्शाता है और इसे विशेष रूप से अमेरिका एवं चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्धों के पीछे एक प्रमुख कारक के रूप में देखा जा रहा है।
- अंतर्मुखी विकास रणनीतियों के अन्य प्रमुख उदाहरण:
- चीन द्वारा रणनीतिक आधार पर जर्मेनियम जैसे दुर्लभ भू-धातुओं पर लगाया गया निर्यात नियंत्रण।
- भारत की रणनीतियां, जैसे- मेक इन इंडिया, उत्पादन-से-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, आत्मनिर्भर भारत अभियान, आदि।
अंतर्मुखी विकास रणनीतियां
- परिभाषा: अंतर्मुखी विकास रणनीति का फोकस स्वदेशी कच्चे माल और घरेलू बाजार की आवश्यकताओं पर आधारित उत्पादन पर होता है।। यह रणनीति स्थानीय उद्योगों को संरक्षण देने और बाहरी निर्भरता को कम करने वाली नीतियों के माध्यम से घरेलू आर्थिक विकास को प्राथमिकता देती है।
- ये ऐसी नीतियां होती हैं जिनमें देश घरेलू संसाधनों पर आधारित होकर तथा विदेशी व्यापार, निवेश और तकनीकी निर्भरता को कम कर घरेलू उत्पादन, आत्मनिर्भरता, और आयात प्रतिस्थापन को बढ़ावा देती है।
- उत्पत्ति: विविध देशों ने ऐतिहासिक रूप से अलग-अलग समय अवधि में इन रणनीतियों को अपनाया है। उदाहरण के लिए-
- प्रथम विश्व युद्ध एवं आर्थिक महामंदी के बाद, लैटिन अमेरिका के देशों ने आर्थिक संकटों से निपटने के लिए अंतर्मुखी विकास रणनीति की ओर रुख किया था। ये आर्थिक संकट 19वीं शताब्दी में शुरू हुए मुक्त व्यापार के कारण उत्पन्न हुए थे।
- स्वतंत्रता के बाद, औपनिवेशिक शोषण के अनुभव और आर्थिक स्वायत्तता की इच्छा से, भारत सरकार ने घरेलू उद्योगों के विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक मजबूत संरक्षणवादी रुख अपनाया था।

अंतर्मुखी विकास रणनीतियों के प्रमुख उद्देश्य और पद्धतियां क्या हैं?
उद्देश्य | पद्धतियां |
राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक स्वायत्तता |
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आर्थिक संप्रभुता को पुनः प्राप्त करना |
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घरेलू विनिर्माण से संबंधित रोजगार को पुनर्जीवित करना और आर्थिक प्रतिस्पर्धा को मजबूत करना |
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व्यापार असंतुलन का समाधान करना |
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अंतर्मुखी विकास रणनीतियों के संभावित नकारात्मक प्रभाव क्या हो सकते हैं?
- उपभोक्ता वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि: टैरिफ और आयात प्रतिबंध जैसी संरक्षणवादी नीतियों के कारण अक्सर उत्पादन लागत में वृद्धि होती है और प्रतिस्पर्धा में कमी आती है।
- यह लागत अंततः उपभोक्ताओं पर आरोपित कर दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप, घरेलू बाजारों में कीमतें बढ़ जाती हैं और उत्पादों के विकल्प सीमित हो जाते हैं।
- दक्षता में कमी: उत्पादन को वापस अपने देश (रीशोरिंग) या सहयोगी देशों (फ्रेंडशोरिंग) में ले जाने का उद्देश्य भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर निर्भरता को कम करना है, लेकिन इससे अवसंरचना का दोहराव होता है और दक्षता में कमी आती है।
- यह बदलाव महंगा हो सकता है और इससे हमेशा लचीलेपन या रोजगार सृजन में अपेक्षित लाभ नहीं मिल सकता है।
- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का विखंडन: इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल जैसे जटिल व बहु-देशीय इनपुट पर निर्भर उद्योगों को कमजोर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के कारण देरी, उच्च लागत और नवाचार में कमी का सामना करना पड़ता है।
- व्यापार तनाव और व्यापार युद्धों में वृद्धि: संरक्षणवादी रणनीतियां अक्सर व्यापार भागीदारों से जवाबी कार्रवाई को बढ़ावा देती हैं, जो व्यापार युद्धों में बदल जाती हैं।
- व्यापार गुटों और द्विपक्षीयता का उदय: जैसे-जैसे बहुपक्षवाद कमजोर होता जा रहा है, विश्व के अलग-अलग देश तेजी से क्षेत्रीय व्यापार गुटों और द्विपक्षीय समझौतों की ओर रुख कर रहे हैं।
- यह खंडित व्यापार परिवेश लघु या विकासशील देशों को बाहर कर सकता है और वैश्विक व्यापार मानदंडों की प्रभावशीलता को कम कर सकता है।
निष्कर्ष
अंतर्मुखी-रणनीतियां कमजोर उद्योगों की रक्षा और आर्थिक संप्रभुता सुनिश्चित कर सकती हैं, किंतु वे उपभोक्ताओं के लिए आर्थिक दक्षता में कमी एवं उच्च कीमतों का कारण भी बन सकती हैं। अंतर्मुखी रणनीतियों के सफल कार्यान्वयन के लिए आमतौर पर घरेलू उत्पादक क्षमता, तकनीकी क्षमताओं और मानव पूंजी विकास को बढ़ाने हेतु पूरक नीतियों की आवश्यकता होती है। बेहतर परिणाम के लिए अक्सर पूरी अर्थव्यवस्था को अलग रखने के बजाय रणनीतिक क्षेत्रों में ही चयनात्मक संरक्षणवाद अपनाया जाता है।