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5.4. फंक्शनल डी-एक्सटिंक्शन (FUNCTIONAL DE-EXTNICTION)

Posted 01 Jun 2025

Updated 27 May 2025

21 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

एक अमेरिकी बायोटेक कंपनी कोलोसल बायोसाइंसेस का दावा है कि उसने आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीक का उपयोग करके ग्रे वुल्फ से जन्मे तीन बच्चों में विलुप्त डायर वुल्फ की विशेषताओं को शामिल किया है। इसलिए इसे दुनिया का पहला सफल फंक्शनल डी-एक्सटिंक्शन कहा जा रहा है।

फंक्शनल डी-एक्सटिंक्शन क्या होता है?

  • डी-एक्सटिंक्शन के तहत किसी प्रजाति को ठीक उसी रूप में वापस लाया जाता है, जैसी वह अस्तित्व में थी। हालांकि, फंक्शनल डी-एक्सटिंक्शन में जीन एडिटिंग और क्लोनिंग तकनीकों का उपयोग करके विलुप्त प्रजातियों की पारिस्थितिक भूमिकाओं और लक्षणों को पुनर्जीवित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है ।
  • इन पुनर्जीवित जीवों को सटीक प्रतिरूप नहीं माना जाता, बल्कि इन्हें विलुप्त प्रजातियों से मिलते-जुलते रूप या कार्यों के लिए आनुवंशिक रूप से इंजीनियर किया जाता है। 
  • इसमें CRISPR जीन एडिटिंग, क्लोनिंग और जीनोम मैपिंग जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग किया जाता है।

डायर वुल्फ के बारे में

  • डायर भेड़िये (Aenocyon dirus): ये बड़े आकर के भेड़िये थे, जो दक्षिणी कनाडा और अमेरिका में छाए हुए थे, ये आज से लगभग 13,000 साल पहले विलुप्त हो गए।
  • शारीरिक विशेषताएं: ये 3.5 फीट तक ऊंचे, 6 फीट से ज्यादा लंबे और लगभग 68 किलोग्राम वजन के होते थे।
  • ग्रे वुल्फ के साथ तुलना: डायर वुल्फ आज के ग्रे वुल्फ (कैनिस ल्यूपस ) जैसे दिखते थे। हालांकि ग्रे वुल्फ की तुलना में इनका आकार बड़ा, सफेद फर वाला बाहरी आवरण, चौड़ा सिर, बड़े दांत, अधिक शक्तिशाली कंधे और मांसल पैर आदि थे।
  • विलुप्त होने के कारण: इनकी विलुप्ति के पीछे इनका आहार बनने वाली बड़ी शिकार प्रजातियों का विलुप्त होना और मानवीय गतिविधियों को माना जा सकता है।

कोलोसल बायोसाइंसेस कैसे डायर वुल्फ को वापस लाया?

डायर वुल्फ के शावकों के जन्म के लिए क्लोनिंग और जीन-एडिटिंग तकनीक का उपयोग किया गया है। यह तकनीक डायर वुल्फ के DNA के दो प्राचीन नमूनों के आधार पर काम करती है।

  • प्राचीन DNA प्राप्त करना: डायर वुल्फ के दो प्राचीन अवशेषों यथा ओहायो से 13,000 साल पुराना एक दांत और आइडाहो से 72,000 साल पुरानी एक कान की हड्डी से DNA प्राप्त किया गया।
  • जीनोम मैपिंग: डायर वुल्फ के जीनोम का अनुक्रमण किया गया और इसकी आधुनिक ग्रे वुल्फ के साथ तुलना करके कार्यात्मक जीन पहचाने गए।
  • CRISPR जीन एडिटिंग: डायर वुल्फ के सबसे करीबी जीवित जीव ग्रे वुल्फ के जीन को एडिट  किया गया, ताकि पूर्व में विलुप्त हो चुके इस डायर वुल्फ के विशिष्ट जीन वेरिएंट को इसमें शामिल किया जा सके।
  • क्लोनिंग एवं जन्म: एडिटेड DNA को केन्द्रक रहित अंडाणु (Enucleated ova) में प्रत्यारोपित किया गया और इन्हें घरेलू मादा कुत्ते के गर्भ में प्रतिस्थापित किया गया। इससे रोमुलस, रेमस और खलेसी नामक तीन शावकों का जन्म हुआ।
    • पारंपरिक क्लोनिंग तकनीक के बजाय, वैज्ञानिकों ने एक कम इनवेसिव विधि का उपयोग किया जिसमें ग्रे वुल्फ से एंडोथेलियल प्रोगेनिटर कोशिकाओं (EPCs) का उपयोग किया गया।

फंक्शनल डी-एक्सटिंक्शन के बारे में चिंताएं

  • पारिस्थितिकीय विघटन: "डी-एक्सटिंक्ट" प्रजातियां पूर्णतः विलुप्त प्रजातियों की भूमिका को पूरी तरह से दोहरा नहीं सकती हैं। साथ ही ये आक्रामक भी हो सकती हैं, तथा मौजूदा पारिस्थितिकीय संतुलन को बिगाड़ भी सकती हैं।
    • यह आनुवंशिक रूप से मिलते-जुलते जीव हैं, विलुप्त प्रजातियों का वास्तविक रूप में पुनर्जीवन नहीं है।
  • नैतिक चिंताएं: डी-एक्सटिंक्शन प्रक्रिया में गंभीर आनुवंशिक परिवर्तन शामिल हो सकते हैं, या यह हो सकता है कि यह जीव वर्तमान पर्यावरण के लिए उपयुक्त न हो।
  • संसाधनों पर दबाव: आलोचक यह तर्क देते हैं कि डी-एक्सटिंक्शन परियोजनाओं पर खर्च किए गए संसाधन को वर्तमान संकटों का सामना कर रहे मौजूदा संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण में बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • विनियमन का अभाव: डी-एक्सटिंक्शन के लिए कोई स्पष्ट वैश्विक नैतिक या कानूनी फ्रेमवर्क की कमी है।

निष्कर्ष

कोलोसल बायोसाइंसेज द्वारा डायर वुल्फ जैसे जीवों को वापस लाना एक्सटिंक्शन साइंस में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह विलुप्त प्रजातियों के संरक्षण और समझ के लिए नए रास्ते खोलता है। साथ ही, इस संबंध में नैतिक, पारिस्थितिकी और वैज्ञानिक निहितार्थों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की भी आवश्यकता है। जैसे-जैसे तकनीक आगे बढ़ती है वैसे-वैसे नवाचार और जिम्मेदारी के बीच संतुलन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

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  • फंक्शनल डी-एक्सटिंक्शन
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  • डायर वुल्फ
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