राज्य के विधेयकों को स्वीकृति (ASSENT TO STATE BILLS) | Current Affairs | Vision IAS
Monthly Magazine Logo

Table of Content

राज्य के विधेयकों को स्वीकृति (ASSENT TO STATE BILLS)

Posted 01 Jun 2025

Updated 28 May 2025

34 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल मामले में राज्य विधान सभा द्वारा पारित विधेयकों को समय पर मंजूरी सुनिश्चित करने के निर्देश जारी किए।

अन्य संबंधित तथ्य

  • पृष्ठभूमि: नवंबर 2020 और अप्रैल 2023 के बीच, तमिलनाडु राज्य विधान सभा ने 13 विधेयक पारित किए थे। 
    • इनमें से 10 विधेयकों को राज्यपाल ने बिना किसी सूचना के या तो मंजूरी देने से मना कर दिया या विधान सभा को वापस भेज दिया।
  • जब विधान सभा ने बिना किसी परिवर्तन के इन्हें पुनः पारित कर दिया, तो राज्यपाल ने इन्हें स्वीकृति देने की बजाय राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर दिया।
  • इसकी प्रतिक्रिया में, तमिलनाडु सरकार ने महत्वपूर्ण विधेयकों पर राज्यपाल की लंबे समय से चली आ रही निष्क्रियता को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की।
  • सुप्रीम कोर्ट ने माना कि विधेयकों को मंजूरी देने में राज्यपाल की निष्क्रियता और विधानसभा द्वारा विधेयकों को पुनः पारित करने के बाद उन्हें राष्ट्रपति के लिए आरक्षित  रखना, कानूनी रूप से अमान्य था। इसलिए, उन विधेयकों पर राष्ट्रपति की कार्रवाई को भी अमान्य घोषित कर दिया गया।
  • न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग किया: सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करता है। यह अनुच्छेद  सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक डिक्री/ आदेश पारित करने का अधिकार देता है।

निर्णय से संबंधित मुख्य बिंदु

  • विधेयक पर राज्यपाल की निष्क्रियता असंवैधानिक है: विधायिका द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा मंजूरी देने के लिए भारतीय संविधान में भले ही कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है, लेकिन अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के पास कोई पॉकेट या आत्यंतिक वीटो (Absolute Veto) भी उपलब्ध नहीं हैं।
    • यदि राज्यपाल/ राष्ट्रपति विधेयकों को मंजूरी देने में निष्क्रियता प्रदर्शित करता है, तो राज्य सरकार सक्षम न्यायालय से परमादेश (Mandamus) रिट जारी करने की याचिका दायर कर सकती है।
      • परमादेश रिट वह आदेश है जो सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट किसी सरकारी अधिकारी को उसके वैधानिक कर्तव्यों को सही ढंग से निभाने या उसके विवेकाधिकार के दुरुपयोग को रोकने के लिए जारी करता है।
  • विधान सभा द्वारा फिर से पारित विधेयक को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित नहीं किया जा सकता: विधेयक को पहले चरण में ही राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित किया जा सकता है।
    • यदि राज्यपाल विधेयक पर अपनी सहमति नहीं देना चाहता है, तो उसे अनिवार्य रूप से इसे राज्य विधान सभा को वापस भेजना होगा।
    • जब विधान सभा विधेयक को पुनः पारित करता है, तो राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के लिए आरक्षित नहीं रख सकता।
      • इस सामान्य नियम का एकमात्र अपवाद तब है, जब दूसरी बार में प्रस्तुत किया गया विधेयक पहली बार में राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किए गए विधेयक से मूल रूप से भिन्न हो।
  • विधेयकों को मंजूरी देने के लिए निर्धारित समय-सीमा: सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित ये समय-सीमाएं संविधान में संशोधन नहीं हैं, बल्कि समय पर कार्रवाई सुनिश्चित करने और मनमानी से बचने के लिए न्यायिक मानक हैं। न्यायालय ने शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने हेतु समय-सीमा निर्धारित की है।
  • अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास पूर्ण विवेकाधिकार नहीं है: अनुच्छेद 163(1) मंत्रिपरिषद द्वारा राज्यपाल को सहायता और सलाह देने का प्रावधान करता है, सिवाय उन परिस्थितियों के जहां राज्यपाल को संवैधानिक रूप से अपने विवेकाधिकार से कार्य करना आवश्यक हो।
    • अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल को अपने कार्यों के निष्पादन में कोई विवेकाधिकार प्राप्त नहीं है और उसे मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह का अनिवार्य रूप से पालन करना होता है, सिवाय निम्नलिखित स्थितियों के:
      • यदि राज्य विधान सभा द्वारा पारित किसी विधेयक से हाई कोर्ट की शक्तियों का हनन होता है तो, राज्यपाल अनुच्छेद 200 के तहत ही उस विधेयक को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रखेगा। 
      • वैसे राज्य विधेयक जो राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना प्रभावी नहीं होंगे:
        • कुछ मामलों में पानी या बिजली पर कर लगाने वाले विधेयक (अनुच्छेद 288)।
        • राज्य विधान सभा द्वारा पारित धन विधेयक या वित्त विधेयक, जिन पर वित्तीय आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 207 के विशेष प्रावधान लागू होते हैं (अनुच्छेद 360)।
        • समवर्ती सूची में सूचीबद्ध विषयों से संबंधित विधेयक: यदि विधेयक संघीय कानून या उस मामले के संबंध में मौजूदा कानून से असंगत है {अनुच्छेद 254(2)}।
        • अंतर्राज्यीय व्यापार, वाणिज्य, आदि पर प्रतिबंध से संबंधित विधेयक: व्यापार और वाणिज्य पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी की आवश्यकता होती है (अनुच्छेद 304(b) को अनुच्छेद 255 के साथ पढ़ा जाए)।
      • राज्य विधेयक जिन्हें अनुच्छेद 14 और 19 से छूट प्राप्त करने के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति की आवश्यकता होती है:
        • अनुच्छेद 31A (संपत्ति आदि के अधिग्रहण के लिए प्रावधान) से संबद्ध विधेयक; तथा 
        • अनुच्छेद 31C (कुछ नीति निदेशक सिद्धांतों को प्रभावी करना) से संबद्ध विधेयक।
      • जहां विधेयक इस प्रकृति का है कि यदि उसे प्रभावी होने दिया गया तो वह संविधान को कमजोर करेगा।
  • अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति न्यायिक समीक्षा के अधीन है: राज्यपाल या राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति प्रदान करना (आमतौर पर मंत्रिपरिषद की सलाह पर) न्यायालय के विचार योग्य नहीं हो सकता है।
    • हालांकि, राज्यपाल द्वारा अपने विवेकाधिकार का उपयोग करके किसी विधेयक को मंजूरी न देने या उसे आरक्षित रखने के फैसले को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, क्योंकि संविधान द्वारा इस विवेकाधिकार को सीमित किया गया है।
      • यदि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह के विरुद्ध कार्य करता है और किसी विधेयक को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रखता है, तो राज्य सरकार उसे हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती है।
      • यदि राष्ट्रपति अपनी सहमति नहीं देता है, तो उस कार्रवाई को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
  • राष्ट्रपति को आरक्षित विधेयकों की असंवैधानिकता के आधार पर पर सुप्रीम कोर्ट से परामर्श करना चाहिए: यदि राज्यपाल किसी विधेयक को असंवैधानिक होने की आशंका के कारण राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रखता है तो:
    • राष्ट्रपति को अनुच्छेद 143 (कानून या तथ्य के प्रश्नों पर सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेने की राष्ट्रपति की शक्ति) के तहत सुप्रीम कोर्ट की राय लेनी चाहिए।
      • राष्ट्रपति न्यायालय की राय से केवल वैध नीतिगत कारणों से ही असहमत हो सकता है और इस असहमति के लिए उसे स्पष्ट औचित्य प्रदान करना होगा।
    • ऐसा परामर्श महत्वपूर्ण है क्योंकि:
      • राज्यपाल ऐसे मामलों को न्यायालयों को नहीं भेज सकता। 
      • सुप्रीम कोर्ट संविधान और कानूनों की व्याख्या करने के लिए अंतिम प्राधिकारी है।
      • अनुच्छेद 143 के अंतर्गत न्यायालय की राय का बहुत अधिक महत्व है तथा सामान्यतः संसद और राष्ट्रपति, दोनों को इसका पालन करना चाहिए।
  • Tags :
  • अनुच्छेद 142
  • अनुच्छेद 14
  • अनुच्छेद 200
  • अनुच्छेद 143
  • अनुच्छेद 207
Download Current Article
Subscribe for Premium Features