वित्त मंत्रालय की तिमाही विदेशी ऋण रिपोर्ट (दिसंबर 2024) के अनुसार, दिसंबर 2023 की तुलना में विदेशी ऋण में 10.7% की वृद्धि हुई है। इस वृद्धि के लिए मुख्य रूप से मूल्यांकन प्रभाव जिम्मेदार है।
- मूल्यांकन प्रभाव तब होता है, जब अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत घटती है।
इस रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र
- सकल घरेलू उत्पाद और विदेशी ऋण का अनुपात: यह सितंबर, 2024 के 19.0% से बढ़कर दिसंबर, 2024 में 19.1% हो गया है।
- संरचना: इसमें सर्वाधिक हिस्सेदारी अमेरिकी डॉलर के रूप में मूल्य-वर्गित (Denominated) ऋण की है।
- डेब्ट सर्विस (मूलधन तथा ब्याज का भुगतान): इसमें 0.1% की गिरावट (सितंबर-दिसंबर, 2024) आई है।
- दीर्घकालीन बनाम अल्पकालीन ऋण: दीर्घकालीन ऋण में मामूली वृद्धि और अल्पकालीन ऋण में मामूली गिरावट देखी गई है।
विदेशी ऋण के बारे में

- अर्थ: यह वह धन है, जो भारत सरकार और कंपनियों द्वारा देश से बाहर के स्रोतों से उधार लिया जाता है (जैसे बाह्य वाणिज्यिक उधारी)।
- यह आमतौर पर अमेरिकी डॉलर, विशिष्ट आहरण अधिकार (SDR) आदि के रूप में लिया जाता है।
- स्रोत: इसमें विदेशी वाणिज्यिक बैंक, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान (जैसे IMF, विश्व बैंक आदि) या कोई अन्य देश हो सकते हैं।
बढ़ते विदेशी ऋण से जुड़ी चुनौतियां
- ऋण चुकाने का बोझ: यह आमतौर पर अन्य मुद्राओं में लिया जाता है। इसलिए, विनिमय दर में बदलाव से ऋण के बोझ में भी वृद्धि हो सकती है।
- बढ़ती मुद्रास्फीति: दीर्घकालिक मुद्रास्फीति के चलते ब्याज दरें भी बढ़ सकती हैं। इससे आर्थिक संवृद्धि धीमी हो सकती है और GDP के अनुपात में विदेशी ऋण भी बढ़ सकता है।
- वैश्विक परिदृश्य: वैश्विक स्तर पर स्टैगफ्लेशन का खतरा भारत से निर्यात की मांग को घटा सकता है, जो डेब्ट सर्विस अनुपात को प्रभावित कर सकता है।
‘निजी क्षेत्रक के पूंजीगत व्यय निवेश लक्ष्यों पर फॉरवर्ड-लुकिंग सर्वेक्षण (कैपेक्स सर्वेक्षण)’ सांख्यिकी संग्रह अधिनियम, 2008 के तहत आयोजित किया गया था। यह राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा आयोजित अपनी तरह का पहला सर्वेक्षण था।
- ध्यातव्य है कि NSO, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) की एक सांख्यिकीय शाखा है।
सर्वेक्षण के मुख्य निष्कर्ष
- वित्त वर्ष 2022 से 2025 तक निजी क्षेत्रक का पूंजीगत व्यय (CAPEX) 66% बढ़कर लगभग 6.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
- वित्त वर्ष 24-25 में निजी क्षेत्रक के कुल पूंजीगत व्यय में विनिर्माण उद्यमों का योगदान 48% था।
- 2024-25 में, अधिकांश उद्यमों ने पूंजीगत व्यय को मुख्य परिसंपत्तियों पर केंद्रित किया था, जबकि अन्य ने मूल्यवर्धन, अवसरवादी परिसंपत्तियों और विविध रणनीतियों में निवेश किया था।
पूंजीगत व्यय (CAPEX) का महत्त्व
- पूंजीगत व्यय में परिसंपत्तियों पर खर्च करना शामिल है: इससे व्यवसाय को दीर्घकालिक लाभ होता है। उदाहरण के लिए- संपत्ति, उपकरण, नई तकनीक हासिल करना आदि।
- रणनीतिक निर्णय लेना: पूंजीगत व्यय संबंधी निर्णय रणनीतिक प्राथमिकताओं को दर्शाते हैं। ये प्राथमिकताएं भविष्य की संवृद्धि को गति देने के लिए संसाधनों के आवंटन को निर्धारित करती हैं।
- प्रतिस्पर्धात्मक लाभ: पूंजीगत व्यय में निवेश करके, कंपनियां अपनी परिचालन दक्षता बढ़ा सकती हैं, उत्पादों या सेवाओं में नवीनता ला सकती हैं तथा प्रतिस्पर्धियों से आगे रह सकती हैं।
- परिसंपत्ति रखरखाव और उन्नयन: मौजूदा परिसंपत्तियों को बनाए रखने, प्रौद्योगिकी को उन्नत करने, या उत्पादन क्षमता का विस्तार करने के लिए पूंजीगत व्यय की आवश्यकता होती है।
- निवेशकों का विश्वास: पूंजीगत व्यय निवेशकों को यह संकेत देता है कि कंपनी दीर्घकालिक विकास और मूल्य सृजन के लिए प्रतिबद्ध है।
निजी क्षेत्रक के पूंजीगत व्यय में आने वाली प्रमुख चुनौतियां
- बड़ी इक्विटी और किफायती कर्ज जुटाने में कठिनाई आती है;
- जोखिम आकलन और शमन से संबंधित परियोजना संरचना संबंधी मुद्दे;
- मंजूरी और भूमि अधिग्रहण में देरी आदि।
पूंजीगत व्यय के बारे में
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1 sourceहाल ही में, लोक सभा ने तटीय पोत परिवहन विधेयक, 2025 पारित किया।
तटीय पोत परिवहन विधेयक, 2025 का उद्देश्य
- तटीय पोत परिवहन के विनियमन से संबंधित कानूनों को समेकित करना।

- सभी प्रकार के जलयानों, जिनमें पोत, नाव, नौकायन पोत, मोबाइल अपतटीय ड्रिलिंग यूनिट्स शामिल हैं, को विनियमित करना।
- मर्चेंट शिपिंग अधिनियम, 1958 के भाग XIV को निरस्त करना, जो तटीय जल के भीतर व्यापार में संलग्न नौकायन पोतों के अलावा अन्य जलयानों को विनियमित करता है।
तटीय पोत परिवहन विधेयक, 2025 के मुख्य प्रावधान
- तटीय व्यापार के लिए लाइसेंस: विदेशी जलयानों के लिए नौवहन महानिदेशालय (Director General of Shipping: DGS) द्वारा जारी लाइसेंस लेना अनिवार्य है, जबकि भारतीय जलयानों को इससे छूट दी गई है।
- तटीय व्यापार से आशय भारत में एक स्थान या बंदरगाह से दूसरे स्थान या बंदरगाह तक समुद्री मार्ग से माल या यात्रियों के परिवहन या तटीय जल के भीतर कोई सेवा प्रदान करने से है। हालांकि इसमें किसी भी तरह से मछली पकड़ना शामिल नहीं है।
- रणनीतिक योजना और डेटा संग्रह: विधेयक में राष्ट्रीय तटीय और अंतर्देशीय पोत-परिवहन रणनीतिक योजना तथा राष्ट्रीय तटीय पोत-परिवहन डेटाबेस बनाना अनिवार्य किया गया है।
- राष्ट्रीय तटीय और अंतर्देशीय पोत-परिवहन रणनीतिक योजना को प्रत्येक दो वर्षों में अपडेट करना होगा।
- नौवहन महानिदेशालय (DGS) के अधिकार: DGS को सूचना प्राप्त करने, निर्देश जारी करने और नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने जैसे अधिकार प्रदान किए गए हैं।
- केंद्र सरकार का नियंत्रण: यह विधेयक केंद्र सरकार को नियमों में छूट देने और नियमों के अनुपालन की निगरानी करने की शक्ति प्रदान करता है, ताकि भारत में तटीय पोत-परिवहन के संचालन को सुविधाजनक और प्रभावी बनाया जा सके।
- अन्य प्रावधान: यह विधेयक भारतीय संस्थाओं द्वारा किराए पर लिए गए विदेशी जलयानों को विनियमित करता है। साथ ही नियमों के उल्लंघन के लिए दंड का प्रावधान करता है तथा जलयान विनियमन से जुड़े प्रमुख तंत्रों में राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को भागीदारी प्रदान करता है।
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1 sourceकेंद्रीय इस्पात मंत्रालय ने संशोधित ‘घरेलू स्तर पर विनिर्मित लौह और इस्पात उत्पाद (Domestically Manufactured Iron & Steel Products: DMI&SP) के लिए नीति-2025’ को अधिसूचित किया है।
DMI&SP नीति क्या है?
- इसे 2017 में जारी किया गया तथा 2019, 2020 और अब 2025 में संशोधित किया गया।
- इस नीति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी संस्थाएं अपनी खरीद में देश में निर्मित स्टील को प्राथमिकता दें, जिससे घरेलू इस्पात उद्योग को बढ़ावा मिल सके।
संशोधित नीति की मुख्य विशेषताएं
- नोडल मंत्रालय: केंद्रीय इस्पात मंत्रालय
- किन पर लागू होगी: सरकार के सभी मंत्रालय, विभाग और संबद्ध एजेंसियां - जिनमें सार्वजनिक क्षेत्रक के उपक्रम (PSUs), सोसायटी, ट्रस्ट और वैधानिक संस्थाएं शामिल हैं।
- 5 लाख रुपये से अधिक की सभी प्रकार की सरकारी खरीद पर लागू होगी।
- शामिल की गई सामग्री: “मेल्ट एंड पोर” स्थिति में इस्पात, जैसे कि फ्लैट-रोल्ड स्टील, बार, आदि।
- मेल्ट एंड पोर से तात्पर्य उस इस्पात से है जिसे इस्पात बनाने वाली भट्टी में तैयार किया गया है और पहली बार ठोस आकार में ढ़ाला गया है।
- वैश्विक निविदाओं पर प्रतिबंध: कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकतर लौह और इस्पात उत्पादों के लिए कोई ग्लोबल टेंडर इंक्वायरी (GTE) नहीं होगी। इसका मतलब है कि वैश्विक कंपनियों से खरीदने के लिए टेंडर आमंत्रित नहीं किए जाएंगे।
- देश में मूल्य संवर्धन (DVA) पर जोर: भट्टियों (Furnaces) और रोलिंग मिल्स जैसी पूंजीगत वस्तुओं में देश में कम-से-कम 50% मूल्य संवर्धन अनिवार्य किया गया है।
- रेसिप्रोकल क्लॉज: यह उन देशों के आपूर्तिकर्ताओं पर प्रतिबंध लगाता है जो भारतीय कंपनियों को अपनी सरकारी संस्थाओं द्वारा इस्पात खरीद में तब तक रोक लगाते हैं। हालांकि, केंद्रीय इस्पात मंत्रालय कुछ मामलों में इसकी अनुमति दे सकता है।
नीति में संशोधन क्यों किया गया?
- इस्पात आयात से घरेलू उद्योगों के लिए बढ़ता खतरा: भारत तैयार इस्पात का शुद्ध आयातक है। चीन, जापान और दक्षिण कोरिया से सस्ते इस्पात के आयात में वृद्धि दर्ज की गई है जबकि निर्यात में गिरावट आई है।
- वैश्विक बाजारों में मंदी: देश में इस्पात उत्पादन क्षमता में अत्यधिक वृद्धि दर्ज की गई है जबकि विश्व में इस्पात की मांग में गिरावट दर्ज की जा रही है।
- सरकारी खरीद की रणनीतिक भूमिका: भारत में तैयार इस्पात के 25-30% हिस्से को सरकार बुनियादी ढांचे, रेलवे और रक्षा के लिए खरीदती है।
- संशोधित नीति सरकारी मांग बढ़ाकर स्थानीय उद्योग को समर्थन प्रदान करेगी।
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1 sourceहाल ही में, आयकर विभाग ने विलासिता की उन वस्तुओं की सूची अधिसूचित की है, जिन पर करदाताओं को 1% टैक्स कलेक्टेड ऐट सोर्स का भुगतान करना होगा।
टैक्स कलेक्टेड ऐट सोर्स (TCS) के बारे में
- यह विक्रेता द्वारा देय कर है, जिसे वह वस्तु की बिक्री के समय क्रेता से एकत्र करता है।
- आयकर अधिनियम की धारा 206 में उन वस्तुओं की सूची दी गई है, जिन पर विक्रेता को क्रेता से कर एकत्र करना चाहिए।
- CGST अधिनियम, 2017 की धारा 52 में कर योग्य आपूर्ति के संबंध में ई-कॉमर्स ऑपरेटर द्वारा टैक्स कलेक्टेड ऐट सोर्स का प्रावधान किया गया है।
- विक्रेता को TCS के तहत अधिकृत किसी भी व्यक्ति या संगठन के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। इसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय प्राधिकरण, साझेदारी फर्म आदि शामिल हैं।
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने आयकर नियमावली, 1962 में संशोधनों को अधिसूचित किया है। नए संशोधनों के जरिए सेफ हार्बर नियमों के दायरे का विस्तार किया गया है।
- इन संशोधनों के तहत सेफ हार्बर नियमों के दायरे का निम्न रूप में विस्तार किया गया है:
- सेफ हार्बर से संबंधित प्रावधान का लाभ उठाने की सीमा 200 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 300 करोड़ रुपये कर दी गई है।
- मुख्य ऑटो कंपोनेंट्स की परिभाषा में इलेक्ट्रिक या हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों में उपयोग होने वाली लिथियम-आयन बैटरियों को शामिल किया गया है।
‘सेफ हार्बर’ क्या है?
- तकनीकी रूप से, “सेफ हार्बर” वह स्थिति है जिसमें कर-एजेंसियां करदाता द्वारा घोषित ट्रांसफर प्राइसिंग को आर्म्स लेंथ प्राइस (स्वतंत्र बाजार मूल्य) मानकर स्वीकार करती हैं।
- ट्रांसफर प्राइसिंग वह मूल्य है जिस पर किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी समूह की संबद्ध संस्थाओं के बीच लेन-देन होता है।
- आर्म्स लेंथ प्राइस वह मूल्य होता है जो दो संबद्ध संस्थाओं के बीच लेन-देन को इस तरह सुनिश्चित करता है जैसे वह स्वतंत्र संस्थाओं के बीच हो रहा हो। इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में निष्पक्षता बनाए रखना है।
- आयकर अधिनियम, 1961 में CBDT को सेफ हार्बर नियम बनाने का अधिकार प्रदान किया गया है।
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने लिक्विडिटी कवरेज रेशियो को लेकर नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
- RBI ने यह भी कहा कि बैंकों को खुदरा ग्राहकों की जमाओं (retail deposits) पर कम रन-ऑफ फैक्टर निर्धारित करना होगा।
- रन-ऑफ फैक्टर वास्तव में किसी संकट की स्थिति में जमाकर्ताओं द्वारा बैंकों में जमा धनराशि में से निकाली जा सकने वाली प्रतिशत राशि है।
लिक्विडिटी कवरेज रेशियो (LCR) के बारे में
- यह उच्च गुणवत्ता वाली लिक्विड एसेट (High-Quality Liquid Assets) की मात्रा है। इन्हें वित्तीय संस्थानों को अपने पास सुरक्षित रखना अनिवार्य होता है, ताकि वे बाजार में उथल-पुथल या संकट की स्थिति में अपनी अल्पकालिक देनदारियों को पूरा कर सकें।
- LCR को बेसल समझौते (Basel Accords) में नए संशोधन द्वारा जोड़ा गया है।
- बेसल समझौते ‘बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति’ द्वारा तैयार किए गए नियम या मानक हैं।
- उच्च LCR बैंकों को अधिक तरल परिसंपत्तियां रखने के लिए बाध्य करता है। इससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति में कमी आती है।
IMF की ‘वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट’ में भू-राजनीतिक जोखिमों का वैश्विक वित्तीय स्थिरता पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन किया गया।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की इस रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक भू-राजनीतिक जोखिमों का उच्च स्तर बना हुआ है। इन जोखिमों के व्यापक वित्तीय स्थिरता पर बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंताएं भी बढ़ रही हैं।
मुख्य भू-राजनीतिक जोखिम
- आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित करने वाले विविध जोखिम: देशों के बीच प्रतिस्पर्धा और संघर्ष, संसाधन प्राप्त करने की होड़, साइबर अटैक जैसी चुनौतियों के कारण वस्तुओं की आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हो सकती हैं।
- वैश्विक शक्ति संतुलन, आर्थिक केंद्रों तथा व्यापार में व्यापक बदलाव: नए व्यापारिक समूह बन रहे हैं और निवेश के नए केंद्र उभरकर सामने आ रहे हैं। इससे पारंपरिक वैश्विक शक्ति संतुलन में भी बदलाव देखे जा रहे हैं।
- कर व्यवस्था में एकरूपता का अभाव: उदाहरण के लिए, जहां एक ओर कई देश मिनिमम ग्लोबल टैक्स को अपना रहे हैं, तो दूसरी ओर कुछ देश बहुपक्षीय टैक्स समझौतों से बाहर निकल रहे हैं।
- कार्यबल पर जनसांख्यिकीय, तकनीकी और सांस्कृतिक दबाव: विकसित देशों की आबादी में जहां एक ओर वृद्ध लोगों का अनुपात और सेवानिवृत्त होने वाले लोगों की जनसंख्या बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर इन देशों में जन्म दर कम हो रही है।
- देशों और समुदायों के बीच सांस्कृतिक संघर्ष में वृद्धि हुई है। इसी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के बढ़ते उपयोग से भी जोखिम में वृद्धि हुई है।
भू-राजनीतिक जोखिमों के प्रभाव
- सॉवरेन जोखिम: सैन्य खर्च में बढ़ोतरी और आर्थिक मंदी के चलते कई देशों का सरकारी ऋण, उनके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है। इससे उनकी वित्तीय स्थिरता पर संकट गहराता जा रहा है और बढ़ते कर्ज भार के कारण डिफॉल्ट (ऋण न चुकाने) होने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है।
- वित्तीय खतरों की चपेट में अन्य देशों का आना: भू-राजनीतिक जोखिम व्यापार और वित्तीय संबंधों के माध्यम से अन्य देशों में फैल सकते हैं। इससे विश्व के कई देश आर्थिक संकट की चपेट में आ सकते हैं।
- मैक्रोइकॉनॉमिक प्रभाव: जोखिमों के बढ़ने से आर्थिक व्यवधान उत्पन्न हो सकते हैं। इनमें आपूर्ति श्रृंखला का बाधित होना और पूंजी का देश से बाहर निकलना जैसे आर्थिक व्यवधान शामिल हैं।
- निवेशकों का विश्वास कम होना: आमतौर पर भू-राजनीतिक जोखिम निवेशकों के विश्वास को कम करते हैं। इससे बाजार में अनिश्चितता और अस्थिरता बढ़ती है।
- उदाहरण के लिए, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध की वजह से हाल में दोनों देशों के शेयर बाजारों में भारी गिरावट दर्ज की गई।

यह रिपोर्ट विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने जारी की है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र
- वर्तमान परिस्थितियों में, वर्ष 2025 में विश्व पण्य व्यापार (Merchandise Trade) की मात्रा में 0.2% की गिरावट दर्ज होने का अनुमान है।
- यह गिरावट विशेष रूप से उत्तरी अमेरिका में अधिक दर्ज की जाएगी। इस क्षेत्र से निर्यात में 12.6% की गिरावट होने का अनुमान है।
- रिपोर्ट में विश्व व्यापार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाले कई गंभीर खतरों का उल्लेख किया गया है। इनमें रेसिप्रोकल टैरिफ का प्रयोग और नीतिगत अनिश्चितता के प्रभाव शामिल हैं।
- इस रिपोर्ट में पहली बार पण्य (वस्तु) व्यापार अनुमान के साथ-साथ सेवाओं के व्यापार के लिए भी पूर्वानुमान शामिल किया गया है।
- सेवाओं के व्यापार की मात्रा में 2025 में 4.0% की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
Article Sources
1 sourceभारत को 2025–2027 के कार्यकाल के लिए संयुक्त राष्ट्र-अंतर्राष्ट्रीय लेखांकन और रिपोर्टिंग मानकों पर विशेषज्ञों के अंतर-सरकारी कार्यदल (ISAR) में निर्विरोध चुना गया।
ISAR के बारे में
- ISAR एक स्थायी अंतर-सरकारी कार्यदल है। इसका उद्देश्य सदस्य देशों को वित्तीय रिपोर्टिंग और गैर-वित्तीय डिस्क्लोजर की गुणवत्ता में सुधार करने तथा उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने में सहायता करना है।
- इनमें पर्यावरणीय मुद्दे, कॉर्पोरेट गवर्नेंस और कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) जैसे पहलू शामिल होते हैं।
- ISAR का प्रत्येक वर्ष जिनेवा में सत्र आयोजित होता है। इसमें कंपनियों के लेखांकन और रिपोर्टिंग से जुड़े नए मुद्दों पर चर्चा की जाती है।
- सदस्य: ISAR में 34 औपचारिक सदस्य होते हैं। ये तीन वर्षों के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं।
- इन सदस्यों में शामिल हैं: 9 अफ्रीकी देश, 7 एशियाई देश, 6 लैटिन अमेरिकी देश, 3 पूर्वी यूरोपीय देश तथा 9 पश्चिमी यूरोपीय और अन्य देश।
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) साल 2025 में अपनी स्थापना की 150वीं वर्षगांठ मना रहा है।
BSE के बारे में
- इसकी स्थापना वर्ष 1875 में 'द नेटिव शेयर एंड स्टॉक ब्रोकर्स एसोसिएशन' के रूप में हुई थी।
- BSE एशिया का पहला स्टॉक एक्सचेंज है।
- साथ ही, खरीद-बिक्री में लगने वाले समय के मामले में यह दुनिया का सबसे तेज स्टॉक एक्सचेंज भी है।
- वर्ष 2017 में BSE, शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने वाला (लिस्टेड) भारत का पहला स्टॉक एक्सचेंज बना था।
- कार्य: BSE इक्विटी, करेंसी, डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स, डेरिवेटिव्स और म्यूचुअल फंड्स में कारोबार के लिए प्रभावी एवं पारदर्शी बाजार प्रदान करता है।
- विनियामक संस्था: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI/सेबी)।
- सेबी एक वैधानिक संस्था। इसे सेबी अधिनियम, 1992 के तहत स्थापित किया गया है।
Article Sources
1 sourceऊर्जा और संसाधन संस्थान (टेरी/ TERI) के वैज्ञानिकों का दावा है कि इसका नैनो सल्फर पारंपरिक सरसों की किस्मों का उपयोग करके DMH-11 के समान उपज वृद्धि देता है।
- DMH-11 आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों की एक किस्म है।
TERI के नैनो-सल्फर के बारे में
- यह एक पूरी तरह से हरित (ग्रीन) उत्पाद है। इसमें पादप संवर्धन करने वाले जीवाणु का उपयोग किया जाता है, जो एंजाइम्स और मेटाबोलाइट्स स्रावित करते हैं।
- यही गुण इसे नैनो यूरिया और नैनो डाई-अमोनियम फॉस्फेट जैसे अन्य नैनो-उर्वरकों से अलग बनाता है।
- नैनो-सल्फर में जीवाणुरोधी और कीटनाशक गुण होते हैं।
- लाभ:
- यह पादप वृद्धि को बढ़ावा देता है।
- यह पादपों को तनाव (जैसे सूखा, गर्मी आदि) सहन करने में सक्षम बनाता है।
- यह पादप पोषण की गुणवत्ता में सुधार करता है।
सरकार हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में लवणीय जलीय कृषि केंद्रों की स्थापना पर जोर दे रही है।
लवणीय जलीय कृषि के बारे में

- अर्थ: इसके तहत अंतर्देशीय लवणीय जलीय कृषि के लिए लवणता प्रभावित भूमि (जो प्रायः पारंपरिक कृषि के लिए अनुपयुक्त होती है) का उपयोग किया जाता है।
- जलीय कृषि: इसमें जलीय सजीवों जैसे मछली, घोंघे, क्रस्टेशियंस आदि का पालन किया जाता है और जलीय पादपों की खेती की जाती है, ताकि उनका उत्पादन बढ़ाया जा सके।
- महत्त्व: जलीय कृषि के लिए लवणीय भूमि संसाधनों की क्षमता का उपयोग करके रोजगार और आजीविका के अवसर उत्पन्न होगें; जलीय कृषि संबंधी उत्पादकता को बढ़ावा मिलेगा आदि।
- भारत में संभावनाएं:
- उपर्युक्त 4 राज्यों के 58,000 हेक्टेयर चिन्हित लवणीय क्षेत्रों में से केवल 2,608 हेक्टेयर का ही वर्तमान में उपयोग किया जा रहा है।
- भारत विश्व स्तर पर संवर्धित झींगों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। साथ ही, समुद्री खाद्य निर्यात मूल्य में 65% हिस्सेदारी अकेले झींगों की है, जिसे लवणीय जल-कृषि के माध्यम से और बढ़ाया जा सकता है।
लवणीय जलीय कृषि की क्षमता का उपयोग करने हेतु किए जाने वाले उपाय
- नीतिगत सुधार: क्षेत्र संबंधी सीमा को 2 हेक्टेयर से बढ़ाकर 5 हेक्टेयर किया जाना चाहिए। साथ ही, उत्तर भारतीय राज्यों में लवणीय जलीय कृषि के संधारणीय विकास के लिए रोडमैप तैयार करने हेतु एक राष्ट्रीय स्तर की समिति का भी गठन किया जाना चाहिए।
- बेहतर विपणन माध्यम: सिरसा में एक इंटीग्रेटेड एक्वा पार्क स्थापित करने की सिफारिश की गई है, ताकि विपणन माध्यमों को बेहतर किए जा सके।
- तकनीकी ज्ञान का प्रसार: राज्यों द्वारा लवणीय जलीय कृषि के लिए नए क्षेत्रों की पहचान करने तथा आउटरीच आधारित अनुसंधान करने हेतु कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) का उपयोग किया जाना चाहिए।
