सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, भारत के प्रधान मंत्री सऊदी अरब की राजकीय यात्रा पर गए थे।
प्रधान मंत्री की सऊदी अरब यात्रा के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र

- रणनीतिक भागीदारी परिषद (Strategic Partnership Council: SPC): द्वितीय भारत-सऊदी अरब रणनीतिक भागीदारी परिषद ने रक्षा सहयोग तथा पर्यटन एवं सांस्कृतिक सहयोग पर दो नई मंत्रिस्तरीय समितियां गठित कीं।
- इस परिषद का गठन 2019 में किया गया था। भारत चौथा देश है जिसने सऊदी अरब के साथ ऐसी परिषद गठित की है। अन्य तीन देश हैं; यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और चीन।
- निवेश पर उच्च स्तरीय टास्क फोर्स (High Level Task Force on Investment: HLTF): इसका उद्देश्य भारत में ऊर्जा, तकनीक, अवसंरचना और अन्य प्रमुख क्षेत्रकों में सऊदी अरब के 100 बिलियन डॉलर के निवेश को तेजी से आगे बढ़ाना है।
- इसके अलावा, दोनों पक्ष भारत में दो रिफाइनरियां स्थापित करने पर सहयोग करने पर भी सहमत हुए।
- हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन/ समझौते: इनमें शामिल हैं; अंतरिक्ष (शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए), डोपिंग-रोधी शिक्षा और डोपिंग रोकथाम, स्वास्थ्य-देखभाल, आदि।
भारत-सऊदी अरब द्विपक्षीय संबंधों का महत्त्व
दोनों देशों के लिए महत्त्व
- भारत-सऊदी अरब संबंध भारत की मध्य पूर्व नीति में बदलाव का परिचायक है: पहले दोनों पक्षों के बीच संबंध विप्रेषण (रेमिटेंस) और धार्मिक कूटनीति तक ही सीमित था, लेकिन अब भारत ने निवेश, रणनीतिक वार्ता, संयुक्त रक्षा मंच आदि क्षेत्रकों में सबंधों को बढ़ावा देकर एक नए युग में प्रवेश किया है।
- इसलिए, सऊदी अरब के साथ भारत का संबंध कोई नया प्रयास या आउटरीच नहीं है बल्कि यह पुराने संबंधों को ही नया परिप्रेक्ष्य और व्यापक रूप देना है।
- उदाहरण के लिए, दोनों देशों के बीच की "हाइड्रोकार्बन ऊर्जा साझेदारी" को "व्यापक ऊर्जा साझेदारी" में बदल दिया गया है और इस साझेदारी में नवीकरणीय ऊर्जा, पेट्रोलियम और रणनीतिक भंडारों की स्थापना को भी शामिल किया गया है।
- द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना: भारत और सऊदी अरब के बीच राजनयिक संबंध 1947 में स्थापित हुए थे।
- बाद में रियाद घोषणा-पत्र (2010) के द्वारा द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी में बदल (अपग्रेड) दिया गया।
- द्विपक्षीय रक्षा संबंध: दोनों देशों के बीच अल-मोहद-अल हिंदी (नौसैनिक अभ्यास), सदा तनसीक (थल सेना) जैसे संयुक्त अभ्यास आयोजित किए जाते हैं।
- दोनों देश क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा और व्यापार गलियारे में साझेदार हैं: इनके उदाहरण हैं; हिंद महासागर नौसैनिक संगोष्ठी (Indian Ocean Naval Symposium: IONS), कंबाइंड मेरीटाइम फोर्स (CMF), एशिया में संवाद और विश्वास निर्माण उपायों पर सम्मेलन (Conference on Interaction and Confidence Building Measures in Asia: CICA)।
भारत के लिए महत्त्व
- सऊदी अरब कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है: उदाहरण के लिए, 2023-24 में सऊदी अरब भारत के लिए कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता स्रोत बना रहा। साथ ही, वह 2023-24 में भारत में तीसरा सबसे बड़ा LPG आपूर्तिकर्ता भी था।
- मजबूत होती और निरंतर बढ़ती आर्थिक साझेदारी: उदाहरण के लिए, 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार लगभग 43 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। इसके अलावा, वर्तमान में सऊदी अरब भारत का पांचवां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
- खलीजी कैपिटल और निवेश: भारत का लक्ष्य अपनी आर्थिक संवृद्धि के लिए सऊदी अरब के खलीजी कैपिटल (सॉवरिन वेल्थ फंड) का लाभ उठाना है।
- उदाहरण के लिए, सऊदी अरब ने अब तक भारत में लगभग 10 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश किया है। साथ ही, 2019 में उसने 100 बिलियन अमरीकी डॉलर का अतिरिक्त निवेश करने की योजना की घोषणा की थी।
- लोगों के बीच आपसी और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना:
- विप्रेषण (रेमिटेंस): 2024 में, भारत को प्राप्त कुल विप्रेषण का 6.7% हिस्सा सऊदी अरब से आया।
- धार्मिक संबंध: वर्ष 2025 के लिए भारत का हज कोटा बढ़ा दिया गया है, जो धार्मिक मामले में दोनों देशों के बीच बढ़ते सहयोग को दर्शाता है।
- आतंकवाद-रोधी और रणनीतिक सहयोग: सऊदी अरब ने आतंकवाद और अंतर्राष्ट्रीय अपराध के खिलाफ भारत की लड़ाई का लगातार समर्थन किया है। उदाहरण के लिए:
- 2008 के मुंबई हमले का आरोपी जबीउद्दीन अंसारी की गिरफ्तारी और अब्दुल सलाम (नकली मुद्रा रैकेट) को निर्वासित करने में सहायता की।
- इसके अलावा, "ऑपरेशन कावेरी" के दौरान, सऊदी अरब ने गृह युद्ध से प्रभावित सूडान से 3,500 भारतीयों की सुरक्षित निकासी में सहायता की।
- उदारवादी इस्लाम और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए समर्थन: मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के बीच धार्मिक और राजनीतिक अंतर्संबंधों को देखते हुए, क्राउन प्रिंस के सुधारों के तहत सऊदी अरब द्वारा 'उदारवादी इस्लाम' को बढ़ावा देना भारत के लिए काफी मायने रखता है।
- उदाहरण के लिए, मध्य पूर्व से कट्टरपंथी विचारधाराएं अक्सर दक्षिण एशिया में फैल जाती हैं। गौरतलब है कि दक्षिण एशिया में 600 मिलियन (60 करोड़) मुसलमान रहते हैं, जिनमें से 400 मिलियन भारत में रहते हैं।
सऊदी अरब के लिए महत्त्व
- भारत-सऊदी अरब आर्थिक संबंध: भारत सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। हाल के वर्षों में सऊदी अरब में भारतीय निवेश में भी वृद्धि हुई है, जो 2023 तक लगभग 3 बिलियन अमरीकी डॉलर के संचयी आंकड़े तक पहुंच गया।
- विज़न 2030 सिनर्जी: सऊदी अरब के विज़न 2030 का लक्ष्य अपनी अर्थव्यवस्था को पेट्रोलियम तक सीमित नहीं रखते हुए उसमें विविधता लाने की है और भारत को इस मामले में सऊदी अरब के प्रमुख भागीदार के रूप में देखा जाता है।
भारत-सऊदी अरब संबंधों में चुनौतियां
- श्रम और प्रवासन नीतियां: सऊदी अरब की "सऊदीकरण" नीति रोजगार में स्थानीय लोगों के लिए कोटा को अनिवार्य बनाती है। इससे भारतीयों सहित कई अन्य देशों के प्रवासियों के लिए रोजगार के अवसर सीमित हो गए हैं।
- व्यापार असंतुलन: वित्त वर्ष 2022-23 में सऊदी अरब के साथ भारत का व्यापार घाटा लगभग 31.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया।
- रणनीतिक परियोजनाओं में विलंब होना: सऊदी कंपनी 'अरामको' के साथ संयुक्त उद्यम के रूप में प्रस्तावित 50 अरब डॉलर की वेस्ट कोस्ट रिफाइनरी परियोजना को महाराष्ट्र में भूमि अधिग्रहण चुनौतियों और पर्यावरण मंजूरी के मुद्दों के कारण देरी का सामना करना पड़ रहा है।
- मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर वार्ता रुकी हुई है: भारत और खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council: GCC) के बीच मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के प्रयास 2004 से चल रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई है। सऊदी अरब GCC का एक प्रमुख सदस्य है।
- भू-राजनीतिक मतभेद: क्षेत्र में भारत की रणनीतिक चिंताओं को देखते हुए, सऊदी अरब द्वारा पाकिस्तान को निरंतर आर्थिक सहायता देना संबंधों में जटिलता लाता है।
- भू-राजनीतिक विसंगतियां: ईरान के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध हैं जिनका सऊदी अरब के संबंध अच्छा नहीं है, वहीं सऊदी अरब का चीन के साथ साझेदारी गहरी होती जा रही है। इससे दोनों देशों के बीच कई बार रणनीतिक मतभेद उत्पन्न हो जाती है।
निष्कर्ष
पिछले एक दशक में भारत और सऊदी अरब के बीच हुए सहयोग ने रक्षा और सुरक्षा सहयोग, खाद्य और पर्यावरणीय सुरक्षा, तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे पारंपरिक से इतर क्षेत्रों के बढ़ते महत्व को उजागर किया है। इसके साथ ही पारंपरिक क्षेत्रों के महत्त्व को दोहराते हुए दोनों पक्षों ने रणनीतिक साझेदारी को भी मजबूत किया है।