भारत का रक्षा निर्यात (India’s Defence Exports) | Current Affairs | Vision IAS
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भारत का रक्षा निर्यात (India’s Defence Exports)

Posted 01 Jun 2025

Updated 27 May 2025

28 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का रक्षा निर्यात 23,622 करोड़ रुपये (लगभग 2.76 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया।

भारत के रक्षा निर्यात में रुझान

  • क्षेत्रगत योगदान: निजी क्षेत्रक और रक्षा सार्वजनिक क्षेत्रक के उपक्रमों (DPSUs) ने 2024-25 के रक्षा निर्यात में क्रमशः 15,233 करोड़ रुपये (64.5%) और 8,389 करोड़ रुपये का योगदान दिया है।
    • DPSUs ने वित्त वर्ष 2024-25 में अपने निर्यात में 42.85% की उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाई है।
  • दीर्घकालिक रुझान: पिछले 10 वर्षों में यानी 2015 से 2025 तक, भारत ने संचयी रूप से 1,09,997 करोड़ रुपये मूल्य के रक्षा सामान एवं उपकरण निर्यात किए हैं।
  • लक्ष्य: भारत का लक्ष्य 2029 तक अपने रक्षा निर्यात को बढ़ाकर 50,000 करोड़ रुपये करना है।
  • निर्यात गंतव्य: भारत अब 100 से अधिक देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात करता है। इन देशों में 2023-24 में संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस और आर्मेनिया शीर्ष खरीदारों के रूप में उभरे हैं।
  • निर्यात पोर्टफोलियो: इसमें सतह से हवा में मार करने वाली आकाश मिसाइल (SAM), एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (ATAGS) जैसी मिसाइल प्रणाली, फास्ट अटैक क्राफ्ट और अपतटीय गश्ती जहाजों जैसे नौसैनिक प्लेटफॉर्म शामिल हैं। साथ ही, हल्के लड़ाकू विमान (LCA) तेजस और एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (ALH ध्रुव) जैसे एयरोस्पेस एसेट्स भी शामिल हैं।

रक्षा निर्यात में सुधार हेतु शुरू की गई पहलें 

  • रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (iDEX): इसे 2018 में लॉन्च किया गया था। यह पहल MSMEs, स्टार्ट-अप्स, व्यक्तिगत नवप्रवर्तकों, अनुसंधान एवं विकास संस्थानों और शिक्षाविदों को शामिल करके रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्रक में नवाचार को बढ़ावा देती है। iDEX ने नवोन्मेषी प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए 1.5 करोड़ रुपये तक का अनुदान प्रदान किया है।
  • रक्षा औद्योगिक गलियारे (DICs): रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो DICs स्थापित किए गए हैं।
  • रक्षा क्षेत्रक में व्यवसाय करने में सुगमता:
    • लाइसेंस व्यवस्था से कलपुर्जों और घटकों को हटाकर औद्योगिक लाइसेंसिंग प्रक्रिया का सरलीकरण किया गया है। साथ ही, लाइसेंस की आवश्यकता वाली वस्तुओं को कम किया गया है और लाइसेंस की वैधता को 15 साल तक बढ़ा दिया गया है। 
    • निर्यात प्राधिकार प्रदान करने के लिए मानक परिचालन प्रक्रिया (SOP) का सरलीकरण किया गया है। इसके अलावा, एंड-टू-एंड डिजिटल निर्यात प्राधिकार प्रणाली की शुरुआत की गई है।
  • उदारीकृत FDI नीति: विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए 2020 से रक्षा क्षेत्रक में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को उदार बनाया गया है। इसमें स्वचालित मार्ग से 74% तक FDI और सरकारी मार्ग से 74% से अधिक की अनुमति दी गई है।
    • अप्रैल 2000 से, रक्षा उद्योगों में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 5,516.16 करोड़ रुपये हुआ है।
  • प्रौद्योगिकी विकास कोष (TDF): DRDO द्वारा क्रियान्वित इस कोष का उद्देश्य MSMEs और स्टार्ट-अप्स सहित भारतीय उद्योगों को अनुदान सहायता प्रदान करना है।

●    सृजन पोर्टल: यह एक वन-स्टॉप शॉप ऑनलाइन पोर्टल है। यह विक्रेताओं को उन वस्तुओं को को प्राप्त करने हेतु उन तक पहुंच प्रदान करता है, जिनका स्वदेशीकरण किया जा सकता है।

भारत के रक्षा निर्यात में चुनौतियां

  • आयात निर्भरता: भारतीय उद्योग रक्षा प्लेटफॉर्म्स के लिए महत्वपूर्ण घटकों जैसे इंजन, एवियोनिक्स और सेंसर हेतु आयात पर निर्भर हैं। 
  • अनुसंधान एवं विकास का अभाव: एआई-संचालित सिस्टम, हाइपरसोनिक मिसाइल और स्टील्थ प्रौद्योगिकियों सहित उन्नत प्रौद्योगिकियों के लिए अनुसंधान एवं विकास का अभाव है।
  • वैश्विक अभिकर्ताओं से प्रतिस्पर्धा: भारत के रक्षा निर्यात को संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और फ्रांस जैसे स्थापित वैश्विक अभिकर्ताओं से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।
    • चुनौतियों में गुणवत्ता संबंधी धारणाओं पर नियंत्रण पाना तथा स्टील्थ लड़ाकू विमानों और अत्याधुनिक मानव रहित हवाई वाहनों (UAVs) जैसे उन्नत प्लेटफॉर्म्स में तकनीकी अंतराल को दूर करना शामिल है।
  • नौकरशाही की बाधाएं: खरीद और परियोजना अनुमोदन में नौकरशाही संबंधी विलंब सहित विनियामक बाधाएं प्रगति में बाधा डालती हैं।

आगे की राह 

  • सम्पूर्ण रक्षा प्रणालियों/ प्लेटफॉर्म्स के निर्यात को बढ़ावा देना: अफ्रीकी महाद्वीप, दक्षिण-पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिकी क्षेत्र के देश सम्पूर्ण रक्षा प्रणालियों/ प्लेटफॉर्म्स के निर्यात हेतु संभावित बाजार हैं।
    • ऐसे देशों के लिए निर्यात को बढ़ावा देने हेतु एक्जिम बैंक से एक वित्त-पोषण तंत्र- क्रेडिट लाइन प्रदान करने/ बढ़ाने की आवश्यकता हो सकती है।
  • उभरते रक्षा केंद्रों के साथ दीर्घकालिक साझेदारी बनाना: ये ऐसे देश हैं, जिन्होंने पिछले कुछ दशकों में अपने रक्षा उद्योग में मजबूत वृद्धि दिखाई है और अब स्वदेशी क्षमताओं को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जैसे ऑस्ट्रेलिया, UAE, सऊदी अरब, दक्षिण कोरिया, आदि।
    • रक्षा मंत्रालय को घरेलू रक्षा उद्योग के साथ मिलकर इन देशों में ऐसे अवसरों की पहचान करनी चाहिए तथा संयुक्त विनिर्माण के लिए साझेदारी बनाने में भारतीय कंपनियों की सहायता करनी चाहिए।
  • रक्षा निर्यात क्षितिज का विस्तार: भारत के रक्षा विनिर्माताओं को वैश्विक उपस्थिति मजबूत करने के लिए प्रमुख रणनीतिक देशों में विदेशी कार्यालयों की स्थापना करनी चाहिए। इससे भारतीय रक्षा उत्पादों की पहुंच और ब्रांड मूल्य में वृद्धि होगी।
  • घटकों/ उप-प्रणालियों की आपूर्ति पर ध्यान केंद्रित करना: अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों का निर्माण करने वाले विकसित राष्ट्र अक्सर अपनी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को उन देशों में स्थापित करते हैं, जहां उत्पादन लागत कम होती है।

भारत के लघु और मध्यम रक्षा विनिर्माता अपनी उत्पादन गुणवत्ता, तकनीकी दक्षता और प्रमाणन में सुधार कर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बन सकते हैं। साथ ही ये प्रमुख रक्षा विनिर्माताओं के ऑफसेट दायित्वों को पूरा करने में सहयोग कर सकते हैं।

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  • iDEX
  • भारत का रक्षा निर्यात
  • DPSUs
  • प्रौद्योगिकी विकास कोष
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