लोक सभा में उपाध्यक्ष का पद (DEPUTY SPEAKER OF THE LOK SABHA) | Current Affairs | Vision IAS
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संक्षिप्त समाचार

Posted 01 Jun 2025

Updated 29 May 2025

33 min read

लोक सभा में उपाध्यक्ष का पद (DEPUTY SPEAKER OF THE LOK SABHA)

वर्ष 2019 से लोक सभा में उपाध्यक्ष का पद रिक्त रहना एक संवैधानिक विसंगति का संकेत देता है।  

लोक सभा के उपाध्यक्ष पद के बारे में 

  • पृष्ठभूमि: यह पद भारत शासन अधिनियम, 1919 के तहत 1921 में अस्तित्व में आया था।
    • सर्वप्रथम सचिदानंद सिन्हा केंद्रीय विधान सभा में इस पद पर आसीन हुए थे। 
    • एम. ए. अय्यंगर स्वतंत्रता के बाद पहले निर्वाचित उपाध्यक्ष थे। 
  • चुनाव: संविधान के अनुच्छेद 93 में प्रावधान किया गया है कि लोक सभा जल्द-से-जल्द सदन के दो सदस्यों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुनेगी। 
    • लंबे समय से चली आ रही परंपरा के अनुसार, उपाध्यक्ष का पद विपक्ष के सांसद को दिया जाता है। 
  • पद त्याग और पद से हटाया जाना: अनुच्छेद 94 में पद के रिक्त होने, पद त्याग और हटाने की प्रक्रिया का उल्लेख है। ध्यातव्य है कि लोक सभा उपाध्यक्ष को सदन के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा ही हटाया जा सकता है।
    • अध्यक्ष अपना त्याग-पत्र उपाध्यक्ष को सौंपता है, जबकि उपाध्यक्ष अपना त्याग-पत्र अध्यक्ष को सौंपता है। 
  • कर्तव्य: अनुच्छेद 95 के अनुसार, अध्यक्ष की अनुपस्थिति या रिक्ति की स्थिति में उपाध्यक्ष उसके कर्तव्यों का निर्वहन करेगा। 

उपाध्यक्ष के पद का महत्त्व

  • संवैधानिक अनिवार्यता: यह केवल औपचारिक पद नहीं है, क्योंकि संविधान में इसे अध्यक्ष पद के समकक्ष स्थान दिया गया है।
  • निरंतरता, स्थिरता और संस्थागत संतुलन के लिए आवश्यक: यह पद आपातकाल की स्थिति में द्वितीय नेतृत्व प्रदान करता है।
    • 1956 में अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर के आकस्मिक निधन के बाद एम. ए. अय्यंगर ने कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था।
  • विधायी कर्तव्य: उपाध्यक्ष महत्वपूर्ण सत्रों की अध्यक्षता करता है, समितियों का नेतृत्व करता है और गंभीर वाद-विवाद का संचालन निष्पक्षता एवं प्राधिकार के साथ करता है।

निष्कर्ष

एक निश्चित समय सीमा (जैसे, नई लोक सभा की पहली बैठक के 60 दिन) या एक वैधानिक व्यवस्था की शुरुआत की जा सकती है, ताकि समय सीमा के भीतर उपाध्यक्ष का चयन किया जा सके।

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  • अनुच्छेद 93
  • लोक सभा में उपाध्यक्ष का पद

दल-बदल की याचिकाओं पर अध्यक्ष की निष्क्रियता (INACTION BY SPEAKERS ON DEFECTION PETITIONS)

सुप्रीम कोर्ट ने दल-बदल याचिकाओं पर अध्यक्ष की लंबे समय तक निष्क्रियता की निंदा की।

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अध्यक्ष द्वारा दल-बदल याचिकाओं के संबंध में निर्णय देने में देरी से संविधान की दसवीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी कानून) के सार्थक उद्देश्य विफल हो सकते हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कानूनी प्रश्न: क्या कोर्ट अर्ध-न्यायिक अधिकरण के रूप में कार्य करने वाले अध्यक्ष को दल-बदल विरोधी याचिकाओं पर एक तय समय-सीमा के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दे सकता है?

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां

  • अध्यक्ष द्वारा निर्णय न देने के मामले में कोर्ट की शक्ति: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि अध्यक्ष दल-बदल याचिकाओं पर "अपनी स्थिति को स्पष्ट नहीं करता है" तो कोर्ट उस पर निर्णय देने में सक्षम है।
  • उचित समय-सीमा निर्धारित करने का कोर्ट का अधिकार: यद्यपि कोर्ट दल-बदल याचिकाओं के परिणाम निर्धारित नहीं कर सकती, फिर भी कोर्ट अध्यक्ष को उचित अवधि के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दे सकती है।
  • उदाहरण के लिए- केशम मेघचंद्र सिंह बनाम मणिपुर विधान सभा के माननीय अध्यक्ष और अन्य वाद (2020)।
  • यदि अध्यक्ष कार्यवाही करने में विफल रहता है, तो सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।

दल-बदल विरोधी कानून के कार्यान्वयन में सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई अन्य टिप्पणियां

  • अध्यक्ष के निर्णयों पर न्यायिक समीक्षा: यदि अध्यक्ष कार्यवाही में देरी करता है, तो कोर्ट  को हस्तक्षेप करने का अधिकार होना चाहिए (किहोतो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हु वाद 1992)।
  • अध्यक्ष की निष्पक्षता: अध्यक्ष को एक राजनीतिक व्यक्ति की बजाय एक तटस्थ निर्णायक के रूप में कार्य करना चाहिए (रवि एस. नाइक बनाम भारत संघ वाद 1994)।
  • दल-बदल संबंधी मामलों के लिए स्वतंत्र अधिकरण: इस संबंध में अध्यक्ष द्वारा शक्तियों को एक स्वतंत्र अधिकरण को हस्तांतरित करने पर विचार किया जाना चाहिए (कर्नाटक विधायकों की अयोग्यता से संबंधित वाद 2020)।
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  • अध्यक्ष

आप्रवास और विदेशी विषयक विधेयक, 2025 (IMMIGRATION AND FOREIGNERS BILL, 2025)

हाल ही में, संसद ने आप्रवास और विदेशी विषयक विधेयक, 2025 पारित किया। 

विधेयक के मुख्य प्रावधानों पर एक नज़र

  • उद्देश्य: आप्रवासन कानूनों को आधुनिक बनाना, राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना, और आप्रवासन प्राधिकरणों के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करना।
  • इस विधेयक द्वारा निम्नलिखित अधिनियम निरस्त किए गए हैं:
    • पासपोर्ट अधिनियम, 1920;
    • विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम, 1939;
    • विदेशी विषयक, 1946; तथा 
    • आप्रवासन (वाहकों की देयता) अधिनियम, 2000. 
  • आप्रवासन विनियमन: आप्रवासन ब्यूरो गठित किया जाएगा। इसे वीज़ा जारी करने और विदेशियों के प्रवेश-निकास नियमों की निगरानी करने का कार्य सौंपा जाएगा।
  • दंड: बिना वैध पासपोर्ट या अन्य यात्रा दस्तावेजों के भारत में प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिकों को अधिकतम पांच वर्ष की कैद, पांच लाख रुपये तक का जुर्माना, या दोनों का प्रावधान किया गया है।
  • गिरफ्तार करने का अधिकार: हेड कांस्टेबल या उससे उच्च रैंक के पुलिस अधिकारी भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिकों को बिना वारंट के गिरफ्तार  कर सकते हैं।
  • Tags :
  • आप्रवास और विदेशी विषयक विधेयक
  • आप्रवासन ब्यूरो

पंचायत प्रगति सूचकांक (PANCHAYAT ADVANCEMENT INDEX: PAI)

पंचायती राज मंत्रालय ने ग्राम पंचायतों के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए पंचायत प्रगति सूचकांक जारी किया।

  • देश में 2.5 लाख ग्राम पंचायतें हैं। इनमें से 29 राज्यों की लगभग 2.16 लाख ग्राम पंचायतों के आंकड़ों का आकलन किया गया है।
  • पंचायत का तात्पर्य ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अनुच्छेद 243B के तहत गठित स्वशासन की संस्था से है।

पंचायत प्रगति सूचकांक (PAI) के बारे में

  • अवधारणा: PAI एक बहु-क्षेत्रीय और बहु-क्षेत्रकीय सूचकांक है। इसका पंचायतों के समग्र विकास, प्रदर्शन और प्रगति का आकलन करने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • उद्देश्य: यह ये मापने का प्रयास करता है कि जमीनी स्तर की संस्थाएं स्थानीय सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को कितनी अच्छी तरह प्राप्त कर रही हैं।
  • थीम: सूचकांक स्थानीय विकास से संबंधित 9 प्रमुख थीम्स के आधार पर पंचायतों का मूल्यांकन करता है (चित्र देखें)।
  • पंचायत प्रगति सूचकांक (PAI) में श्रेणियां
    • अचीवर (0%): इस वर्ष के आकलन में भारत की कोई भी पंचायत 'अचीवर' श्रेणी में जगह  नहीं बना पाई है।
    • एस्पिरैंट (आकांक्षी) (61.2%): इस श्रेणी में सर्वाधिक संख्या में पंचायतों ने अपना स्थान हासिल किया है।
    • परफ़ॉर्मर (प्रदर्शनकर्ता) (36%): काफी संख्या में पंचायतों ने मध्यम स्तर की प्रगति हासिल की है।
    • फ्रंट-रनर (अग्रणी): इस श्रेणी में सबसे अधिक पंचायतों के साथ गुजरात शीर्ष पर है।

 

 

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  • पंचायती राज मंत्रालय
  • पंचायत प्रगति सूचकांक
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