गैर-परमाणु हाइड्रोजन बम
चीन ने गैर-परमाणु हाइड्रोजन बम का सफलतापूर्वक विस्फोट किया।
गैर-परमाणु हाइड्रोजन बम की मुख्य विशेषताएं
- रासायनिक अभिक्रिया: यह परमाणु सामग्री के बिना शक्तिशाली विस्फोट करने के लिए मैग्नीशियम हाइड्राइड के साथ रासायनिक अभिक्रिया करता है।
- दूसरी ओर, हाइड्रोजन बम मुख्य रूप से परमाणु संलयन प्रक्रिया पर आधारित होता है।
- मैग्नीशियम हाइड्राइड का उपयोग: हाइड्रोजन बम में ईंधन के रूप में रेडियोधर्मी हाइड्रोजन समस्थानिकों (जैसे- ड्यूटेरियम या ट्रिटियम) का उपयोग किया जाता है। इस गैर-परमाणु हाइड्रोजन बम में मैग्नीशियम हाइड्राइड का उपयोग किया गया है।
- मैग्नीशियम हाइड्राइड एक चांदी जैसा पाउडर होता है, जो ठोस अवस्था में हाइड्रोजन स्टोरेज मटेरियल के रूप में कार्य करता है।
- प्रज्वलित होने पर इसमें हाइड्रोजन उत्सर्जित होती है, जो तेजी से हवा के साथ मिल जाती है और विस्फोटक सीमा तक पहुंचने पर गैस प्रज्वलित हो जाती है। इससे एक स्वतःस्फूर्त दहन चक्र निर्मित होता है।
- विनाश का पैमाना: यह ट्राइनाइट्रो टॉलुईन (TNT) के विस्फोट बल का केवल 40% ही उत्पन्न करता है, लेकिन एल्यूमीनियम मिश्रधातु जैसी सामग्रियों को पिघलाने के लिए पर्याप्त ऊष्मा उत्पादन के साथ अधिक थर्मल डैमेज रेडियस प्रदर्शित करता है।
- थर्मल डैमेज रेडियस: यह विस्फोट के बिंदु के केंद्र से वह दूरी है, जिसके भीतर ऊष्मा के कारण एक निश्चित स्तर का नुकसान होता है।
- इसके लिए न्यूनतम प्रज्वलन ऊर्जा की आवश्यकता होती है तथा इसमें विकिरण उत्पन्न किए बिना तीव्र व निरंतर ऊष्मा उत्पादित करने की क्षमता होती है।

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जेवॉन्स पैराडॉक्स
हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट के CEO ने वैश्विक स्तर पर AI सिस्टम्स के बढ़ते उपयोग के संदर्भ में 'जेवन्स पैराडॉक्स' का ज़िक्र किया।
जेवॉन्स पैराडॉक्स (विरोधाभास) के बारे में
- इस विरोधाभास के अनुसार जो तकनीकी प्रगति किसी संसाधन के उपयोग को अधिक किफायती या अधिक दक्ष बनाती है, तो अक्सर वह उस संसाधन की मांग में वृद्धि का कारण बनती है।
- पृष्ठभूमि: इसका विचार पहली बार विलियम स्टेनली जेवन्स ने 1865 में दिया था। उन्होंने कहा था कि यदि स्टीम इंजन अधिक कुशल हो जाएंगे, तो ब्रिटिश फैक्ट्रियों में कोयले की खपत घटेगी नहीं, बल्कि और बढ़ेगी, क्योंकि कोयले का उपयोग अधिक सस्ता एवं आकर्षक हो जाएगा।
- AI के संदर्भ में, जैसे-जैसे AI प्रणालियां अधिक शक्तिशाली और सुलभ होती जाएंगी, यह संभावना है कि उनका उपयोग काफी बढ़ जाएगा।
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टेंसर प्रोसेसिंग यूनिट
गूगल ने हाल ही में अपना 7वीं पीढ़ी का टेंसर प्रोसेसिंग यूनिट (TPU) लॉन्च किया। इसे आयरनवुड नाम दिया गया है। इसे AI मॉडल के प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है।
TPU के बारे में
- यह एक विशेष प्रोसेसर है, जिसे गूगल ने 2015 में विकसित किया था। यह एक एप्लिकेशन-विशिष्ट एकीकृत सर्किट (ASIC) है, यानी किसी विशेष कार्य जैसे मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के लिए बनाया गया चिप है।
- TPU को टेंसर ऑपरेशन (मशीन लर्निंग मॉडल में उपयोग किए जाने वाले कोर डेटा स्ट्रक्चर) को संभालने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
TPU के लाभ:
- AI वर्कलोड के लिए अनुकूलित: मशीन लर्निंग के लिए विशेष रूप से निर्मित, TPUs AI कार्यों में CPUs और GPUs से बेहतर प्रदर्शन करते हैं
- तीव्रता से प्रशिक्षण: TPUs कुछ घंटों में जटिल न्यूरल नेटवर्क को प्रशिक्षित कर सकते हैं।
सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (CPU) और ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट (GPU) के बारे में:
- CPU: यह सामान्य कार्यों के लिए एक प्रोसेसर होता है, जो कंप्यूटर के कई अलग-अलग काम संभालता है।
- इसमें आमतौर पर 2 से 16 कोर होते हैं। हार्डवेयर में कोर की संख्या जितनी अधिक होगी, उतनी अधिक मल्टीटास्किंग क्षमता होगी।
- GPU: CPU की तुलना में GPU अनुक्रमिक रूप से प्रोसेसिंग की बजाय समानांतर या साथ-साथ प्रोसेसिंग में तेज होता है। इससे यह ग्राफिक्स और AI मॉडल्स में बेहतर बन जाता है।
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मिशन “फ्रैम 2” (MISSION “FRAM2”)
“फ्रैम 2” नामक यह मिशन स्पेसएक्स के ड्रैगन अंतरिक्ष यान द्वारा लॉन्च किया गया है।
- इसमें कई प्रयोग किए जाएंगे जैसे- अंतरिक्ष में X-ray लेना और माइक्रोग्रैविटी में मशरूम उगाने का प्रयोग करना।
- स्पेसएक्स ने पृथ्वी की ध्रुवीय कक्षा के ठीक ऊपर से उड़ान भरने वाला पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन लॉन्च किया।
पृथ्वी की ध्रुवीय कक्षा के बारे में
- ध्रुवीय कक्षा वह होती है, जब कोई उपग्रह या अंतरिक्ष यान उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों के ऊपर से गुजरते हुए पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
- उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर 10 डिग्री तक का विचलन भी ध्रुवीय कक्षा के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- ऊंचाई: ध्रुवीय कक्षाएं आमतौर पर 200 से 1,000 कि.मी. की ऊंचाई के बीच मौजूद निम्न भू-कक्षाएं होती हैं।
- महत्त्व: पृथ्वी के घूर्णन के चलते ध्रुवों के ऊपर से परिक्रमा करने वाला अंतरिक्ष यान पूरे ग्रह का पर्यवेक्षण कर सकता है।
- ध्रुवीय कक्षा का उपयोग विशेष रूप से मौसम, मानचित्रण और जासूसी उपग्रहों के लिए उपयोगी होता है।
- समस्या: ध्रुवीय कक्षाओं में रॉकेट प्रक्षेपित करने के लिए अधिक ईंधन की आवश्यकता होती है। ऐसा इस कारण, क्योंकि इस कक्षा में जाने के लिए रॉकेट पृथ्वी की घूर्णन गति का लाभ नहीं उठा सकता है।
उपग्रह कक्षा | ऊंचाई | आवेदन | विवरण | उदाहरण |
निम्न भू-कक्षा (LEO) | 2000 कि.मी. की ऊंचाई तक | सेटेलाइट इमेजिंग, कम्युनिकेशन, भू-प्रेक्षण, नेविगेशन और वैज्ञानिक अनुसंधान | अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) इसी कक्षा में परिक्रमा करता है, क्योंकि पृथ्वी से कम ऊंचाई होने के कारण अंतरिक्ष यात्रियों के लिए यहां पहुंचना आसान होता है। | रिसैट-2B |
सूर्य-तुल्यकालिक कक्षा (SSO) | यह पृथ्वी से 600 से 800 कि.मी. तक की ऊंचाई के बीच होती है | यह भूमि-उपयोग परिवर्तन, बर्फ पिघलने और मौसम के अध्ययन के लिए आदर्श होती है। | यह एक विशेष प्रकार की ध्रुवीय कक्षा होती है, जिसमें उपग्रह सूर्य के साथ समकालिक होते हैं। | भू-प्रेक्षण के लिए HysIS |
मध्यम भू-कक्षा (MEO) | यह पृथ्वी से 2,000 से 36,000 कि.मी. तक की ऊंचाई के बीच होती है। | यह नेविगेशन उपग्रहों और टेलीफोन संचार के लिए आदर्श होती है।
| MEO में मौजूद उपग्रहों को पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए विशिष्ट पथ की आवश्यकता नहीं होती है। | यूरोपीय गैलीलियो प्रणाली |
भूस्थिर कक्षा (GEO) | 35,786 कि.मी. | दूरसंचार, मौसम उपग्रह, GPS, आदि। | यह कक्षा पृथ्वी के भूमध्य रेखा के ऊपर होती है, और उपग्रह पृथ्वी की घूर्णन गति के साथ पश्चिम से पूर्व की दिशा में गमन करते हैं। | भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इनसैट/ INSAT) |
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आर्यभट्ट सैटेलाइट
भारत के पहले सैटेलाइट ‘आर्यभट्ट’ ने प्रक्षेपण के 50 वर्ष पूरे किए।
आर्यभट्ट सैटेलाइट के बारे में
- कक्षा: लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO)
- इस सैटेलाइट का निर्माण इसरो (ISRO) ने एक्स-रे एस्ट्रोनॉमी, वायुमंडलीय विज्ञान (एरोनॉमिक्स), और सोलर-फिजिक्स में प्रयोग करने के लिए किया था।
- इस सैटेलाइट का नाम प्राचीन भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया है।
- इसे 1975 में सोवियत संघ के कोस्मोस-3M रॉकेट से वोल्गोग्राड प्रक्षेपण केंद्र (वर्तमान रूस) से प्रक्षेपित किया गया था।
- इसने भारत को अंतरिक्ष की कक्षा में सैटेलाइट भेजने वाला विश्व का 11वां देश बना दिया था।
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विलवणीकरण प्रौद्योगिकियां
IIT बॉम्बे के वैज्ञानिकों ने खारे पानी के उपचार के लिए कमल के पत्ते जैसा सोलर एवापोरेटर विकसित किया।
- इसके तहत एक नया हाइड्रोफोबिक ग्राफीन-आधारित पदार्थ विकसित किया गया है। यह पदार्थ जल विलवणीकरण में सहायक हो सकता है। यह विश्व में ताजे जल के संकट को दूर करने में एक महत्वपूर्ण सफलता साबित हो सकती है।
ताजे पानी का संकट
- पृथ्वी के लगभग 71% भाग पर पानी मौजूद है, लेकिन पूरी दुनिया की आबादी केवल 3% उपलब्ध ताजे पानी पर निर्भर है।
- इस 3% ताजे पानी में से केवल 0.06% ही आसानी से सुलभ है, बाकी पानी आर्कटिक एवं अंटार्कटिक हिमावरण, ग्लेशियरों, भूमिगत जल और दलदली क्षेत्रों में मौजूद है।
विलवणीकरण प्रौद्योगिकियां और प्रक्रियाएं
विलवणीकरण प्रौद्योगिकियां | थर्मल प्रौद्योगिकी | मेम्ब्रेन प्रौद्योगिकी |
सिद्धांत |
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उप-श्रेणियां (प्रक्रियाएं) | तीन समूह:
| दो समूह:
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गुण |
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अवगुण |
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उदाहरण | केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में कवरत्ती, मिनिकॉय और अगत्ती द्वीपों में लो टेंपरेचर थर्मल डिसेलिनेशन (LTTD) संयंत्र स्थापित किए गए थे। | रिवर्स ऑस्मोसिस तकनीक पर आधारित नेम्मेली समुद्री जल विलवणीकरण संयंत्र, तमिलनाडु (यह दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा विलवणीकरण संयंत्र है) |
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बैटइकोमोन
बैट इकोलोकेशन मॉनिटरिंग का संक्षिप्त नाम बैटइकोमोन है। यह भारत की पहली स्वचालित चमगादड़ निगरानी प्रणाली है। इसे इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स, बेंगलुरु में विकसित किया गया है।
बैटइकोमोन (BatEchoMon) के बारे में
- यह एक स्वचालित प्रणाली है, जो रियल टाइम में चमगादड़ों की आवाज का पता लगाने और उसका विश्लेषण करने में सक्षम है।
- यह बैट डिटेक्टर के रूप में कार्य करती है, जो एक विशेष रिकॉर्डिंग उपकरण है। यह प्रणाली कीटभक्षी चमगादड़ों की अल्ट्रासोनिक इकोलोकेशन कॉल या आवाज को मनुष्यों के लिए श्रव्य ध्वनियों में परिवर्तित कर सकती है।
- इसमें रास्पबेरी पाई माइक्रोप्रोसेसर और कन्वॉल्यूशनल न्यूरल नेटवर्क एल्गोरिदम का उपयोग किया गया है, जो इकोलोकेशन कॉल्स के माध्यम से चमगादड़ों की प्रजातियों का पता लगाने और उन्हें पहचानने में मदद करता है।
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